देश की राजनीति का सबसे बड़ा परिवार अब एक हो चुका है। शिवपाल ने भी अपनी पार्टी का सपा में विलय कर दिया है। यूपी के मैनपुरी लोकसभा, खतौली विधानसभा के रिजल्ट ने बता दिया कि मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद पूरा परिवार एक होकर सत्ता के लिए संघर्ष करेगा।
शिवपाल के साथ आने पर मैनपुरी लोकसभा में सभी रिकाॅर्डों को तोड़ते हुए डिंपल यादव ने 2.88 लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीता। शिवपाल की भूमिका की वजह से RLD के उम्मीदवार और सपा के वोट का भी असर खतौली विधान सभा में साफ दिखाई पड़ा।
मैनपुरी संसदीय सीट की सभी 5 विधानसभा सीटों- मैनपुरी सदर, करहल, भोगांव, जसवंत नगर और किशनी में डिंपल को बढ़त मिली। फिलहाल, 2024 से पहले उप चुनाव के रिजल्ट ने शिवपाल सिंह यादव का कद यूपी की राजनीति एक बार फिर बढ़ा दिया है। हालांकि, रामपुर में भाजपा की बड़ी जीत ने आजम खान के पूरे किले को ढहा दिया है।
सपा के जानकार मानते हैं कि शिवपाल यादव ही ऐसे नेता है, जो सपा के संगठन को जमीनी स्तर पर ले जाकर मजबूत कर सकते हैं। मुलायम के बाद दूसरे नेता हैं। जो सपा के लिए गांव-गांव में जाकर संगठन को दोबारा से खड़ा करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
शिवपाल अब तक की राजनीति में जब भी सपा विपक्ष में रही। वह तब संघर्ष करते हुए दिखे। अखिलेश के नेतृत्व को स्वीकार करते हुए शिवपाल ने सपा के लिए निकाय चुनाव। इसके बाद 2024 के चुनाव के लिए पूरा राजनीतिक प्लान तैयार कर चुके हैं।
सपा के वरिष्ठ नेता मानते हैं कि मुलायम पूरे परिवार को एक साथ लेकर चल रहे थे। ऐसे में शिवपाल का अलग होना और अलग पार्टी के बनने से सपा में फूट पड़ी गई। जो चुनाव में कई बार दिखाई भी पड़ रहा था। नेताजी के निधन के बाद परिवार के एक होने पर समाज में बड़ा संदेश, जनता के बीच एक विश्वास कायम होगा।
इससे आने वाले चुनाव में भाजपा के विकल्प के तौर पर सपा को जनता चुनने में बेहिचक वोट कर सकती है। परिवार की एकता का उदाहरण शिवपाल यादव ने जसवंत नगर विधानसभा से सबसे ज्यादा वोट से बहू डिंपल यादव को जीता कर बता भी दिया है।
अखिलेश मैनपुरी लोकसभा चुनाव परिणाम के तुरंत बाद चाचा शिवपाल के साथ इटावा में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए दिखाई दिए। प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबसे अहम बिंदु या निकलकर आया कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का विलय समाजवादी पार्टी में शिवपाल ने तुरंत कर दिया।
सपा के सिंबल में 2022 के विधानसभा चुनाव जीतने वाले शिवपाल यादव ने बेहिचक भतीजे के साथ पार्टी का विलय कर आगे की रणनीति पर चर्चा शुरू कर दी। राजनीतिक जानकर मानते हैं कि बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी की सत्ता में शिवपाल यादव ही समाजवादी पार्टी के लिए सबसे ज्यादा विपक्ष का रोल अदा करने की भूमिका निभाते नजर आते रहे हैं।
शिवपाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और सड़क पर नेता के तौर पर अपने राजनीतिक अनुभव का लाभ यूपी की राजनीति में अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के लिए निभाएंगे।
यूपी की राजनीति में अहम जानकारी रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि शुरू से ही मुलायम सिंह यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर शिवपाल यादव इटावा से लेकर लखनऊ तक राजनीति में सक्रिय रहे। निधन के बाद शिवपाल यादव ने अपनी सबसे बड़ी भूमिका मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव पर दिखाई है।
शिवपाल यादव ने खुलकर सपा को जिताने के लिए BJP पर सवाल उठाए, यहां तक प्रशासन पर दबाव बनाया कि कोई भी गड़बड़ी नहीं की जा सकती है। शिवपाल यादव का रोल कहीं ना कहीं BJP के विकल्प के तौर पर सपा को देखने के लिए मजबूर कर सकता है।
राजनीतिक जानकर मानते हैं कि शिवपाल यादव के प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के बनाए जाने के बाद सपा के मूल वोटो में बिखराव देखने को मिला। सपा का वोटर बीते 6 सालों से कन्फ्यूजन में उम्मीदवारों को जिताने में अपनी भूमिका निभाते हुए देखा गया।
2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने केवल शिवपाल यादव को ही सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ाया। शिवपाल के किसी भी अन्य नेता या किसी भी विधायक की पैरवी को अखिलेश ने स्वीकार नहीं किया था। ऐसे में शिवपाल की पार्टी का समाजवादी पार्टी में विलय होने के बाद वोटर्स की संख्या आगे के चुनाव में बढ़ेगी।
शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी का विलय अखिलेश की मौजूदगी में समाजवादी पार्टी में कर दिया। इटावा के मीडिया के सामने जिस तरीके से शिवपाल यादव की पार्टी का विलय अखिलेश यादव ने किया। उससे यह चर्चा साफ हो गई है कि आने वाले दिनों में शिवपाल यादव को अहम जिम्मेदारी अखिलेश यादव देंगे। डिंपल यादव के चुनाव के दौरान अखिलेश यादव ने आगामी लोकसभा कन्नौज से लड़ने की इच्छा भी मीडिया के सामने जता चुके है।
ऐसे में माना जा रहा है कि शिवपाल यादव को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी अखिलेश यादव दे सकते हैं। राजनीतिक जानकार यह भी मान रहे हैं सपा प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका शिवपाल यादव को अखिलेश यादव दे सकते हैं।
सपा के राजनीतिक जानकार यह भी मानते हैं शिवपाल यादव का संगठन चलाने में बड़ा अनुभव है। जैसा कि उन्होंने सपा से अलग होकर नई पार्टी बना कर संगठन चलाकर दिखाया भी है। ऐसे में संगठन के साथ सदन में भी उनके राजनीतिक अनुभव का लाभ अखिलेश जरूर प्रयोग कर सकते है
मुजफ्फरनगर के खतौली विधानसभा में BJP ने दंगे के आरोपी विक्रम सैनी की पत्नी को उम्मीदवार बनाया। जाटलैंड के क्षेत्र में आरएलडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने मदन भैया को उम्मीदवार बनाकर पूरे चुनाव रोचक बना दिया। पश्चिमी यूपी की राजनीति में अहम जानकारी रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि BJP ने प्रत्याशी के चयन में महिला कार्ड जरूर खेला।
लेकिन, विक्रम सैनी की अहम भूमिका चुनाव में नहीं दिखाई पड़ी। BJP ने मंत्रियों की फौज खतौली विधान सभा में जरूर उतारी। लेकिन, वोटरों को भाजपा की तरफ मोड़ पाने में वह सफल नहीं हो सके। BJP को या विश्वास था कि विक्रम सैनी की पत्नी को वोटर स्वीकार करेंगे। उनको फिर से विधानसभा भेजेंगे।
भारतीय जनता पार्टी के संगठन ने मैनपुरी लोकसभा चुनाव जीतने के लिए दोनों डिप्टी सीएम के अलावा छह मंत्रियों को जिम्मेदारी दी थी।
भारतीय जनता पार्टी के संगठन ने मैनपुरी लोकसभा चुनाव जीतने के लिए दोनों डिप्टी सीएम के अलावा छह मंत्रियों को जिम्मेदारी दी थी।
किसान नेताओं ने भाजपा के खिलाफ वोट के लिए किया प्रचार
पश्चिमी यूपी के रहने वाले अनुज त्यागी बताते हैं कि जिस तरीके से किसान नेताओं ने मुजफ्फरनगर की खतौली विधान सभा के चुनाव में भाजपा का विरोध किया। घर-घर जाकर उनके खिलाफ माहौल बनाया। वह चुनाव हराने में अहम भूमिका रही।
अनुज त्यागी बताते हैं कि ज्यादातर BJP के नेता बाहरी थे जो वहां पर प्रचार करने की अहम जिम्मेदारी निभा रहे थे। किसान यूनियन के नेताओं ने खुलकर भाजपा के खिलाफ आवाज उठाई। जयंत चौधरी ने इसका फायदा उठाते हुए सपा और आरएलडी के कार्यकर्ताओं के साथ पूरी खतौली विधानसभा में जमकर प्रचार किया। पूरा चुनाव जयंत चौधरी ने जाट और पश्चिमी यूपी की साख पर लाकर खड़ा कर दिया।
मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद हो रहा था। मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक पृष्ठभूमि मैनपुरी लोकसभा से शुरू होती है। ऐसे में मुलायम सिंह के सामने सपा और शिवपाल के शिष्य रघुराज सिंह को चुनाव मैदान में उतारकर भाजपा ने जातीय गणित खेलने का प्लान तैयार किया।
मैनपुरी चुनाव में लगाए गए बीजेपी के एक विधायक बताते हैं कि मैनपुरी लोकसभा में 5 विधानसभा आती हैं। जिसमें सबसे प्रमुख रूप से करहल और जसवंत नगर विधानसभा में सपा मजबूत है। इसके अलावा अन्य तीन विधानसभा में BJP फाइट करने की स्थिति में साफ दिखाई पड़ रही थी।
BJP ने मैनपुरी लोकसभा चुनाव जीतने के लिए जातीय संगठन के नेता और जाति के मंत्रियों को उतार दिया था। लोकसभा के वोट प्रतिशत के हिसाब से जिस जाति का जितना वोट उतने ज्यादा नेताओं को लोकसभा के चुनाव में लगाया गया था।
भाजपा के संगठन ने मैनपुरी लोकसभा चुनाव जीतने के लिए दोनों डिप्टी सीएम के अलावा 6 मंत्रियों को जिम्मेदारी दी थी। जौनपुर से चुनाव जीतने वाले गिरीश यादव को पूर्व युवा मोर्चा अध्यक्ष रहे प्रदेश में मंत्री सुभाष यदुवंश को अहम जिम्मेदारी लोकसभा सीट में यादव वोट में सेंध लगाने के लिए लगाई गई थी।
इसके अलावा रघुराज शाक्य खुद शाक्य वोट बैंक भाजपा की तरफ नहीं ला पाए। वह अपने भूत से ही सपा से चुनाव हार गए। इसके अलावा भाजपा ने प्रदेश सरकार के मंत्री अजीत पाल, राकेश सचान, असीम अरुण, प्रतिभा शुक्ला, जयवीर सिंह, संदीप सिंह को मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी रघुराज सिंग शाक्य को जिताने की जिम्मेदारी दी है।