भाजपा में शामिल होने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया पर लगाए गए गद्दार और बिकाऊ जैसे आरोप कांग्रेस के गले की ही फांस बनते जा रहे हैं। सिंधिया तो इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हैं, लेकिन उनके गृह क्षेत्र ग्वालियर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हमला बोला, तो कांग्रेस नेता सकते में आ गए। शिवराज ने कांग्रेस के मोतीलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी, अर्जुन सिंह, पी. चिदंबरम जैसे नेताओं के पार्टी छोड़ने और वापस कांग्रेस में महत्वपूर्ण पद पाने का कच्चा चिट्ठा खोल दिया। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ से जवाब मांग लिया।
शिवराज के इस सवाल पर ‘गद्दार’ शब्द की सियासत गरमा गई है और मध्य प्रदेश में उपचुनाव नजदीक होने से दोनों दलों में आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए हैं। कांग्रेस छोड़ने वालों में मध्य प्रदेश के दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और उनके समर्थक भी रहे थे। बमुश्किल दो साल कांग्रेस से बाहर रहने के बाद वे पार्टी में लौट आए। इनमें अर्जुन सिंह के पुत्र और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, महेंद्र सिंह चौहान जैसे कई नेता शामिल हैं, जो आज कांग्रेस में मजबूत स्थान रखते हैं। राष्ट्रीय राजनीति में एके एंटोनी व पी. चिदंबरम ने भी पार्टी छोड़ने के बाद कुछ साल में ही कांग्रेस में लौटकर महत्वपूर्ण भूमिका हासिल की। दिवंगत हो चुके कुछ और नेताओं ने भी कांग्रेस छोड़ी थी। भाजपा ने कांग्रेस से पूछा कि क्या ऐसे सभी नेताओं को वह गद्दार की श्रेणी में रखेगी।
अपनी सहूलियत से गद्दारी की परिभाषा बना रही कांग्रेस
सिंधिया समर्थक और भाजपा नेता पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि गद्दार की परिभाषा कांग्रेस अपनी सहूलियत से परिभाषित कर रही है। मोतीलाल नेहरू से लेकर एके एंटोनी, पी. चिंदबरम, तारिक अनवर, अर्जुन सिंह जैसे लोगों ने भी पार्टी छोड़ी थी तो क्या वे गद्दार हैं। गद्दारी तो कमल नाथ ने दिग्विजय सिंह के साथ मिलकर मध्य प्रदेश के किसानों से की है, जिनका कर्ज माफ नहीं किया। उन युवाओं के साथ की है, जिन्हें बेरोजगारी भत्ता नहीं दिया गया है।
गद्दार की परिभाषा को वैचारिक विचारधारा के नेता से नहीं जोड़ें
मप्र कांग्रेस के प्रवक्ता केके मिश्रा ने सफाई दी कि जिन नेताओं के पार्टी छोड़ने को गद्दारी से जोड़ा जा रहा है, उनकी विचारधारा को लेकर मतभेद नहीं रहा है। वे व्यावसायिक दृष्टि से आर्थिक लाभ के लिए पार्टी छोड़कर नहीं गए और न ही उन्होंने किसी निर्वाचित सरकार को गिराया। गद्दार की परिभाषा को वैचारिक विचारधारा के नेता से नहीं जोड़ना चाहिए।
इन नेताओं ने छोड़ी थी कांग्रेस
अर्जुन सिंह : 1994 में नारायण दत्त तिवारी की अखिल भारतीय कांग्रेस (तिवारी) में शामिल हुए। 1996 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस में आ गए।
एके एंटोनी : 1978 में बनी कांग्रेस देवराज पार्टी में शामिल हुए। 1980 में उन्होंने कांग्रेस ए पार्टी बनाई और 1982 में कांग्रेस में आ गए।
पी. चिदंबरम : 1996 में तमिल मनीला कांग्रेस में शामिल हुए। 2001 में कांग्रेस जननायक पेरवाई बनाई और 2004 तक चलाई। फिर कांग्रेस में आ गए।
तारिक अनवर : 1972 से 1999 तक कांग्रेस के साथ रहे। शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में गए। 2018 में कांग्रेस में आ गए।
शरद पवार : 1999 में कांग्रेस छोड़ी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई।
ममता बनर्जी : 1970 से 1997 तक कांग्रेस में रहीं। इसके बाद तृणमूल कांग्रेस बनाई।
इंदिरा गांधी : इंदिरा गांधी व मोरारजी देसाई के बीच बंटी कांग्रेस 1969 में विभाजित हो गई।
जगजीवन राम : 1937 से 1977 तक कांग्रेस में रहे। 18 जनवरी 1977 को कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी पार्टी बनाई। 25 मार्च 1977 को जनता पार्टी में उसका विलय किया। 1980 में जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस जे बनाई।
नारायण दत्त तिवारी : 1963 में कांग्रेस में आए। 1994 में अखिल भारतीय कांग्रेस (तिवारी) बनाई। वर्ष 2000 के बाद कांग्रेस में आए और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने।
प्रणब मुखर्जी : इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पार्टी से अलग होकर राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस पार्टी बनाई। 1989 में फिर कांग्रेस में आए। राष्ट्रपति रहे।