साल 2020 के शुरुआती दिनों की बात है। दुनिया में एक नई बीमारी तेजी से फैल रही थी। इसे कोविड-19 नाम दिया गया। अमेरिका और चीन के साइंटिस्ट्स ने इससे जुड़ा कुछ अहम डेटा जारी किया। इसमें बताया गया था कि यह वायरस कितनी तेजी से फैल रहा है और लोग मारे जा रहे हैं।
तमाम तरह की हेल्थ वॉर्निंग्स और अलर्ट जारी किए किए। मकसद था कि इस वायरस से निपटने के लिए तमाम देश मिलकर काम करें। बहरहाल, चंद दिनों में ही यह रिसर्च पेपर और डेटा गायब हो गया। कहा गया कि रिसर्च रिपोर्ट सही नहीं थी। सच्चाई ये है कि चीन ने इसे हटाया। इसके साथ ही डेटा जारी करने वाले वैज्ञानिकों को भी टॉर्चर किया गया। तब तक कोविड-19 महामारी बन चुका था।
अब यह साफ हो चुका है कि रिसर्च में कोई खामी नहीं थी, बल्कि हकीकत यह थी कि चीन सरकार सच्चाई छिपाना चाहती थी। यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा की प्रोफेसर इरा लोन्गिनी ने कहा- चीन से कोई भी जानकारी जुटाना बेहद मुश्किल है। मैंने भी उस रिसर्च में हिस्सा लिया था। कई बातों को छिपाया गया और कुछ को तो सिरे से गायब ही कर दिया गया।
चीन ने अपने साइंसदानों को परेशान किया, इंटरनेशनल लेवल की कोई इन्वेस्टिगेशन नहीं होने दी और ऑनलाइन डिस्कशन भी बैन कर दिया। इन बातों के तमाम सबूत मौजूद हैं। सेंसरशिप का यह आलम रहा कि इंटरनेशनल जर्नल्स और साइंटिफिक डेटा तक सामने नहीं आ सका। सरकार के दबाव में चीनी वैज्ञानिकों ने ऑनलाइन डेटा ही हटा दिया। इसके अलावा जेनेटिक सीक्वेंसिंग और पब्लिक डेटाबेस जैसे सबूत भी सामने नहीं आ सके। न्यूयॉर्क टाइम्स ने कुछ डॉक्यूमेंट्स जरूर हासिल कर लिए और इनका एनालिसिस भी किया।
कुछ ग्रुप्स के पास फरवरी 2020 में जारी रिसर्च पेपर की जानकारी मौजूद है। हालांकि, इसमें भारी कांटछांट कर दी गई है। इस डेटा और रिसर्च पेपर की जरूरत इसलिए है, क्योंकि फ्यूचर के लिहाज से वैज्ञानिकों को इसकी सख्त जरूरत है। चीन अब भी लगातार कोशिश कर रहा है कि वायरस कहां से और कैसे फैला, इसकी सच्चाई को छिपाया जाए।
उसकी हरकतों की सच्चाई भी सामने आ रही है। जनवरी 2020 में चीन के वुहान मार्केट से वायरस के फैलने के बाद सीक्वेंसिंग डेटा जुटाया गया था। हालांकि, चीन के वैज्ञानिकों द्वारा जुटाया गया यह डेटा तीन साल तक दुनिया के बाकी साइंटिस्ट्स के साथ शेयर नहीं किया गया। एक अमेरिकी रिसर्चर ने कहा- इस हरकत के लिए कोई बहाना नहीं बनाया जा सकता। अब ये साफ होता जा रहा है कि गैरकानूनी मवेशी बाजार से यह वायरस मनुष्यों में फैला। न्यूयॉर्क टाइम्स ने जब वॉशिंगटन में मौजूद चीन की एम्बेसी से इस बारे में पूछा तो वहां से कोई जवाब नहीं मिला।
हैरानी की बात यह है कि इसी महीने चीन की हेल्थ मिनिस्ट्री ने कोविड-19 मामले पर होने वाली आलोचना को गलत बताते हुए धमकी दी थी कि इस तरह की हरकतों को सहन नहीं किया जाएगा।
इसकी कोई एक वजह बताना मुश्किल है। वैसे भी चीन में सेंसरशिप किसी से छिपी नहीं है। महामारी के दौर में भी यही हुआ। वहां भी सवाल उठता रहा है कि क्या वायरस को कंट्रोल करने में जरूरत के मुताबिक, तेजी दिखाई या नहीं। कोई सबूत यह नहीं बताता कि वायरस के ओरिजन को छिपाने के लिए ही सारी कवायद की गई।
कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि कोविड-19 भी दूसरे वायरस की तरह जानवरों से इंसानों में फैला। एक दावा तो वेस्टर्न वर्ल्ड करता रहा है कि वायरल चीन के किसी लैब से फैला। दोनों ही पक्ष इस बारे में कुछ डेटा भी दिखाते हैं। बहरहाल, इन दावों के बीच दोनों पक्ष एक बात पर सहमत हैं कि चीन सरकार ने एक साइंस के मुद्दे पर भी सच छिपाने की साजिश रची।
इस बारे में सिडनी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एडवर्ड होम्स ने कहा- अफसोस की बात है कि साइंस के मामले में भी पॉलिटिकल एजेंडा थोपा जा रहा है। होम्स उन साइंटिस्ट्स में शामिल थे, जिन्होंने वायरस फैलने पर शुरुआती रिसर्च किया था।
दो साल पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिकी खुफिया एजेंसियों से कोरोना के ओरिजन पर बारीकी से जांच करने के लिए कहा था। रिपोर्ट 90 दिन में मांगी थी। बाइडेन ने जांच एजेंसियों को चीन की वुहान लैब से वायरस निकलने की आशंका को लेकर भी जांच करने को कहा था।
उन्होंने कहा था- अमेरिका उन देशों के साथ सहयोग जारी रखेगा, जो वायरस की जांच सही ढंग से कराना चाहते हैं। इससे चीन पर पारदर्शी और अंतर्राष्ट्रीय जांच में भाग लेने का दबाव डालने में आसानी होगी। बहरहाल, इस जांच और उसकी रिपोर्ट का स्टेटस कितने लोगों को पता है, ये अमेरिका ही जानता है।
डोनाल्ड ट्रम्प जब राष्ट्रपति थे, तब उन्होंने कई बार सार्वजनिक तौर पर कहा था कि कोरोनावायरस को चीनी वायरस कहा जाना चाहिए, क्योंकि यह चीन से निकला और चीन ने ही इसे फैलाया। ट्रम्प ने तो यहां तक दावा किया था कि अमेरिकी जांच एजेंसियों के पास इसके सबूत हैं और वक्त आने पर इन्हें दुनिया के सामने रखा जाएगा। हालांकि, ट्रम्प चुनाव हार गए और मामला ठंडा पड़ गया।
WHO को ट्रम्प चीन की कठपुतली कहते रहे। उन्होंने इस संगठन की फंडिंग रोक दी थी। बाइडेन ने इसे फिर शुरू कर दिया। लेकिन, WHO पर आरोप लग रहे हैं कि उसने पूरी जांच किए बगैर ही चीन को क्लीन चिट दे दी और कहा कि वायरस लैब से लीक नहीं हुआ।
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है कि लैब के किसी कर्मचारी की लापरवाही की वजह से वायरस लैब से बाहर निकला, यही महामारी की वजह बना। वुहान की ये लैब हुनान सीफूड मार्केट से भी ज्यादा दूर नहीं है जहां सबसे पहले कोरोना का कहर देखा गया।
अब तक किसी जंगली जानवर में इस संक्रमण का नहीं मिलना और चीन सरकार द्वारा लैब से वायरस लीक होने की आशंका की जांच करने से इनकार करना लैब से वायरस फैलने की थ्योरी को बल देते हैं। हालांकि वुहान की लैब में काम करने वाले वैज्ञानिक कहते हैं कि SARS-CoV-2 को लेकर न तो उनके पास कोई सुराग है, न ही इससे जुड़ी कोई रिसर्च उनकी लैब में हो रही थी।