गुजरात और हिमाचल चुनाव के एग्जिट पोल सामने आ चुके हैं। ये दोनों राज्यों में भाजपा को जिता रहे हैं। उधर, दिल्ली नगर निगम के चुनावों के एग्जिट पोल में आप पार्टी ने भाजपा से सत्ता छीन ली है। ये तीनों संभावित नतीजे कुछ हद तक सही लगते हैं। दिल्ली नगर निगम में आप का आना लगभग तय था और एग्जिट पोल यहाँ आप की जीत बता रहे हैं तो इसमें कोई संशय नज़र नहीं आता।
जहां तक हिमाचल प्रदेश के एग्जिट पोल का सवाल है, इन पर संशय हो रहा है। हालाँकि यहाँ भाजपा और कांग्रेस की सीटों का अंतर काफ़ी कम है। असल नतीजों में पासा पलट सकता है। वैसे भी हिमाचल में तू चल मैं आया वाली सरकारें रहती हैं। यानी एक बार ये, एक बार वो। फ़िलहाल यहाँ भाजपा की सरकार है, इसलिए लगता नहीं कि भाजपा इस बार स्पष्ट बहुमत की ओर बढ़ पाएगी। एग्जिट पोल भी 68 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 37 सीटें दे रहे हैं। यानी बॉर्डर पर। इसलिए यहाँ के एग्जिट पोल के बारे में दावे से कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
अब आते हैं गुजरात चुनावों के एग्जिट पोल पर। यहाँ कोई भी एग्जिट पोल भाजपा को 117 सीटों से कम नहीं दे रहा है। जबकि अधिकतम सीटें 148 तक हैं। लगता है गुजरात में भाजपा 127 सीटों के अंदर ही रहेगी। 127 का आँकड़ा वह है जो 2002 में मोदी लाए थे। लगता नहीं कि इस बार भाजपा 2002 का ये आँकड़ा पार कर पाएगी।
कांग्रेस को गुजरात में ज़रूर बड़ा नुक़सान होने वाला है। हालाँकि चालीस-पैंतालीस सीटें उसकी जो पक्की होती हैं वह उतनी ही उम्मीद रखे तो बेहतर होगा। दरअसल, आम आदमी पार्टी गुजरात में दस के आस-पास या दस के भीतर ही सीट ला पाएगी, लेकिन एग्जिट पोल बताते हैं कि गुजरात में आप सीटें भले ही कमा नहीं पाई हो, लेकिन उसने कांग्रेस को बहुत बड़ा गच्चा दे दिया है। इसका सीधा फ़ायदा भाजपा को होता दिखाई दे रहा है। वर्षों बाद कांग्रेस गुजरात चुनाव में दिखाई ही नहीं दी।
गाँवों में जहां उसका दबदबा रहता था, वहाँ उसे आप ने बुरी तरह नुक़सान पहुँचाया। आप ने नुक़सान भाजपा को भी पहुँचाया, लेकिन इनमें ज़्यादातर सीटें शहरों की थीं इसलिए उन सीटों पर भाजपा की जीत का अंतर कम हो जाएगा, पर उसे सीटों का नुक़सान न के बराबर होगा। शुरू से भाजपा की रणनीति भी यही थी जिसके तहत उसने आप पार्टी जिसका इस बार राज्य में सबसे ज़्यादा हल्ला था, उसे गाँवों तक सीमित कर दिया।
गाँवों में भाजपा को ज़्यादा नुक़सान होना नहीं था, इसलिए उसकी रणनीति सफल हो गई। यही वजह है कि गुजरात में आप पार्टी कांग्रेस के लिए भस्मासुर बन गई। यही भाजपा चाहती थी। कांग्रेस के बड़े नेता बार-बार गुजरात आए नहीं। न राहुल गांधी। न सोनिया गांधी। एक खडगे साहब आए थे वे भी मोदी जिनकी गुजरात में ब्रांड वैल्यू हैं, उन्हें रावण कहकर चले गए। जहां तक अशोक गहलोत का सवाल है, वे अपने राजस्थान के झगड़ों में ही उलझे रहे इसलिए पिछली बार की तरह कोई कमाल नहीं दिखा पाए।