अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने के बाद से सिखों के अस्तित्व पर संकट गहराता जा रहा है। आलम यह है कि उन्हें सुन्नी इस्लाम अपनाने या फिर देश छोड़कर भाग जाने को मजबूर किया जा रहा है। यह दावा एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में किया गया है।
इंटरनेशनल फोरम फॉर राइट्स एंड सिक्योरिटी (आईएफएफआरएएस) की रिपोर्ट का कहना है, अफगानिस्तान में सदियों से रह रहे सिखों की आबादी एक जमाने में दसियों हजार थी, लेकिन बीते कुछ वर्षों में कट्टरता के चलते बढ़ी धार्मिक हिंसा, हत्या, व्यवस्थागत भेदभाव और देश छोड़कर जाने के कारण समुदाय बर्बाद हो गया है। देश में अधिकांश सिख काबुल में तो कुछ गजनी और नंगरहार प्रांतों में रहते हैं।
यह रिपोर्ट ऐसे समय पर आई है, जब कुछ दिनों पहले ही काबुल के कार्त-ए-परवान जिले में एक गुरुद्वारे में घुसे 15 से 20 आतंकवादियों ने सुरक्षाकर्मियों को बंधक बना दिया था। अफगानिस्तान में सिख अक्सर इस तरह के हमलों और हिंसा का सामना करते हैं।
समुदाय पर लगातार हो रहे हैं हमले
अफगानिस्तान में कई सिख विरोधी हिंसक हमले हो चुके हैं। आतंकवादियों ने पिछले साल जून में एक अफगान सिख नेता का अपहरण कर लिया था। लेकिन इस बारे में अधिक खुलासा नहीं हो सका। मार्च 2019 में काबुल में एक और सिख व्यक्ति का अपहरण कर हत्या कर दी गई थी।
वहीं, कंधार में अज्ञात बंदूकधारी ने एक सिख को गोली मार दी थी। आईएफएफआरएएस का कहना है कि 26 मार्च 2020 को काबुल के एक गुरुद्वारे में तालिबान द्वारा समुदाय के नरसंहार के बाद से ही बड़ी संख्या में सिख भारत जा रहे हैं। फोरम का कहना है कि सिख सुन्नी संप्रदाय की कट्टर विचारधारा के खिलाफ हैं इसलिए उन्हें या तो जबरन मुस्लिम बना दिया जाता है या फिर उनकी हत्या कर दी जाती है।
रिपोर्ट का कहना है कि अफगानिस्तान का पूर्व शासन अल्पसंख्यक सिखों के घर बचाने और उन्हें सुरक्षा देने में नाकाम रहा है। अब कट्टरपंथी विचारधारा वाली तालिबान सरकार भी सिखों को पनपने नहीं देगी।