आइये जानते हैं कॉमेडी और एक्टिंग के महारथी कादर खान को

कॉमेडी और एक्टिंग के महारथी कादर खान की आज 86वीं बर्थ एनिवर्सरी है। फिल्मी पर्दे पर अपनी एक्टिंग से सबको हंसाने वाले कादर खान की असल जिंदगी की शुरुआत बहुत दर्दनाक रही। ना रहने की कोई बेहतर जगह थी और ना ही कमाई का कोई जरिया। इन्हीं चीजों ने कम उम्र से ही जिम्मेदार बना दिया, वे कमाने निकल पड़े। तंगी के साथ पेरेंट्स के तलाक और मां की मौत के दर्द से वो टूटे जरूर, लेकिन हार नहीं मानी।
कादर खान का जन्म 22 अक्टूबर 1937 को अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था। उनके पिता अब्दुल रहमान, अफगानिस्तान के रहने वाले थे और उनकी मां इकबाल बेगम, ब्रिटिश इंडिया से थीं।
कादर खान के जन्म के पहले उनके 3 बड़े भाई भी हुए, पर सभी की 8 साल तक मौत हो गई थी। मां इस बात से डरी रहती थीं कि उनकी भी मौत ना हो जाए। मां को लगा कि काबुल की हवा-पानी उनके बच्चों के लिए अच्छी नहीं है।
इसी डर से उन्होंने कादर खान के पिता से किसी दूसरे देश बसने के लिए कहा। परिवार की माली हालात ठीक नहीं थी। एक वक्त खाने का इंतजाम भी बहुत मुश्किल से हो पाता था। दूसरी तरफ अब्दुल रहमान इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे। उन्हें पता था कि यहां पर तो किसी तरह से गुजारा हो जा रहा है। किसी दूसरी जगह हर एक चीज की शुरुआत फिर से करनी पड़ेगी।
इसके बावजूद मां इकबाल बेगम अपनी जिद पर अड़ी रहीं और पूरा परिवार अफगानिस्तान से भारत आ गया। भारत आने के बाद पूरा परिवार मुंबई की कमाठीपुरा बस्ती में जाकर बस गया।
ये वो वक्त जब मुंबई में नए-नए डेवलपमेंट हो रहे थे। बस्ती की हालात बहुत खराब थी। आए दिन यहां पर खून-खराबा और मारपीट होती रहती थी।
बस्ती का ये माहौल कादर खान के पिता को बिल्कुल नहीं पसंद था। इसी बात को लेकर आए दिन उनके माता-पिता में लड़ाइयां होती थीं। हालात बहुत खराब हो गए और उनका तलाक हो गया। उस वक्त कादर खान की उम्र सिर्फ 1 साल थी।
इधर बलूचिस्तान से कादर खान के ननिहाल वाले आ गए। उन्होंने बस्ती की खराब हालत देख कादर की मां की दूसरी शादी कराने की बात की। उस समय समाज में औरत का अकेला रहना भी गलत माना जाता था। दूसरी शादी हो जाने के बाद भी उनके घर के हालात सुधरे नहीं।
तलाक के बाद भी कादर अपने पिता से जुड़े रहे। उधर कादर के प्रति उनके सौतेले पिता का व्यवहार ठीक नहीं था। घर के हालात भी बद से बदतर थे। सौतेले पिता कोई काम नहीं करते थे। वो ये बात जानते थे कि कादर खान अपने पहले पिता के साथ अच्छा बाॅन्ड शेयर करते हैं। इसका फायदा उठाकर सौतेले पिता उन्हें 10 किलोमीटर उनके पहले पिता के पास 2 रुपए मांगने के लिए भेजते थे। इसके साथ ही वो मस्जिद में जाकर भीख भी मांगते थे, पर इन सबसे से भी परिवार का गुजारा नहीं हो पाता था। आलम ये था कि पूरा परिवार सप्ताह में 3 दिन खाता और 3 दिन भूखा रहता।
बचपन से ही मां का सपना था कि कादर खान अच्छे से पढ़ाई-लिखाई करके एक बड़े आदमी बनें, लेकिन घर की गरीबी उनको बहुत परेशान करती थी। उनके दोस्त भी उनसे कहा करते थे- क्या रखा है इस पढ़ाई-लिखाई में। हम लोगों के साथ चलकर मजदूरी करो।
गरीबी से तंग आकर कादर भी दोस्तों की बातों में आ गए और अपनी सारी किताबों को फेंक दिया। जब ये बात उनकी मां को पता चली, तब वो कादर से बहुत नाराज हुईं और कहा- घर की गरीबी तुम्हारी कमाई से कम नहीं होगी। तुम सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो और इसी पढ़ाई से जब बड़े आदमी बन जाओगे, तो गरीबी खुद ही खत्म हो जाएगी।
मां की बात दिल पर लगी और कादर अपनी फेंकी हुई किताबों को वापस ले आए। साथ ही मां से वादा भी किया कि वो अपनी पढ़ाई पूरी करेंगे। कादर खान के जीवन को संवारने में उनकी मां का सबसे बड़ा हाथ था। उनकी मां ही थी जो उनके हर कदम में सही राय दिया करती थीं, लेकिन मां का साथ लंबे समय तक नहीं रहा। उनको एक गंभीर बीमारी थी, लेकिन उन्होंने इस बीमारी की भनक कभी भी कादर को नहीं लगने दी।
एक दिन कादर खान जैसे ही घर आए, उन्होंने देखा कि उनकी मां खून की उल्टियां कर रही हैं। ये देखकर उनके होश उड़ गए। उन्होंने मां से पूछा कि ये क्या है और तुमने मुझे इस बारे में क्यों नहीं बताया था। मां ने जवाब दिया कि ये कुछ भी नहीं है, लेकिन उनकी उल्टियां रुक नहीं रही थीं।
ये देखकर वो आनन-फानन में डॉक्टर को लेने गए। अस्पताल जाकर उन्होंने डॉक्टर को मां की हालात के बारे में बताया और साथ चलने को कहा। डॉक्टर ने साथ चलने को मना कर दिया। बहुत मनाने के बाद भी जब डॉक्टर नहीं माने, तब कादर उन्हें फिल्मी अंदाज में उठाकर घर ले आए। वो जैसे ही घर पहुंचे तो देखा कि मां की सांसें बंद हो चुकी थीं। घबराते हुए उन्होंने डॉक्टर से मां का चेकअप करने के लिए कहा। डॉक्टर ने मां का चेकअप किया और कहा कि अब वो इस दुनिया में नहीं हैं।
इस बात से कादर खान पूरी तरह से टूट गए। कम उम्र में मां के साए से दूर होने का ही नतीजा है कि फिल्मों में लिखे गए उनके डायलॉग में मां की कमी साफ झलकती है।
बचपन से ही कादर खान को नकल करने की आदत थी। वो कब्रिस्तान में जाकर दो कब्रों के बीच बैठ खुद से बातें करते हुए फिल्मी डायालॅग्स बोलते थे। वहीं एक शख्स दीवार की आड़ में खड़े होकर उनको देखता था। वो शख्स थे अशरफ खान।
अशरफ उस समय अपने एक स्टेज ड्रामा के लिए 8 साल के लड़के की तलाश में थे। उन्होंने कादर को नाटक में काम दे दिया। और यहीं से कादर खान की किस्मत बदल गई।
मां के चले जाने के बाद भी कादर ने उनसे किए हुए वादे को पूरा करने के लिए ड्रामा करने के साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी। कादर पढ़ाई में बेहद तेज थे। उन्होंने मुंबई के इस्माइल यूसुफ कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएशन किया।
पढ़ाने के साथ ही कादर खान थिएटर से भी जुड़े रहे। उन दिनों उनका एक ड्रामा ताश के पत्ते बहुत फेमस हुआ था। दूर-दूर से लोग उनके इस ड्रामे को देखने के लिए आया करते थे। इसी दौरान एक दिन कादर कॉलेज में पढ़ा रहे थे, तभी उनके पास अचानक दिलीप कुमार का कॉल आया। कादर ने कॉल उठाया और उधर से आवाज आई, ‘मैं दिलीप कुमार बोल रहा हूं और मैं भी आप के ड्रामा ताश के पत्ते को देखना चाहता हूं।’
इधर कादर एकदम शांत। दिलीप कुमार का नाम सुनते ही उनके हाथ-पांव ठंडे पड़ गए थे। कुछ समय बाद कादर ने दिलीप साहब को जवाब दिया। उन्होंने कहा कि आप बेशक आ कर ड्रामा देख सकते हैं, पर इसके लिए मेरी कुछ शर्तें हैं। उन्होंने कहा कि आपको ठीक समय पर ड्रामा देखने के लिए आना होगा, क्योंकि गेट बंद होने के बाद वो दोबारा नहीं खोला जाता और दूसरा ये कि आपको पूरा ड्रामा बैठ कर देखना होगा।
कादर खान की ये दोनों शर्तें दिलीप साहब ने मान ली और दूसरे दिन समय से आधे घंटे पहले ही वो ड्रामा देखने के लिए पहुंच गए। साथ ही उन्होंने पूरा ड्रामा देखा।
दिलीप साहब को कादर खान का ये ड्रामा बहुत पसंद आया और शो खत्म होते ही उन्होंने स्टेज पर यह अनाउंसमेंट कर दिया कि वो फिल्मों में कादर खान को काम देंगे। इसके बाद दिलीप कुमार ने कादर खान को दो फिल्मों में साइन किया।
कादर खान की शादी से जुड़ा कोई फैक्ट मौजूद नहीं है। बस इस बात का जिक्र है कि उनके तीन बेटे सरफराज खान, शाहनवाज खान और कुद्दूस थे। कादर ने एक इंटरव्यू में बताया कि अपने बड़े बेटे सरफराज के कारण ही उन्होंने विलेन का रोल करना बंद कर दिया था।
दरअसल, सरफराज के दोस्त उन्हें अक्सर ये कहकर चिढ़ाते थे कि उनके पिता फिल्मों में विलेन हैं, लेकिन बाद में अक्सर वहीं मार खाते हैं। दोस्तों की ये बात सरफराज को बिल्कुल भी पसंद नहीं आती थी, वो दोस्तों से लड़ लेते थे। एक बार तो बात इतनी बढ़ गई कि सरफराज के सिर पर चोट लग गई।
जब ये बात कादर खान को पता चली, तो उन्हें बहुत बुरा लगा। उन्होंने बेटे की हालत देख ये फैसला कर लिया कि अब वो विलेन का रोल नहीं करेंगे। इसके बाद से कादर खान काॅमेडी रोल में दिखने लगे।
एक स्क्रिप्ट राइटर के रूप में कादर खान का करियर तब शुरू हुआ, जब नरिंदर बेदी ने उनके द्वारा लिखे गए थिएटर प्ले को देखा और उन्हें इंदर राज आनंद के साथ जवानी दीवानी की स्क्रिप्ट लिखने के लिए कहा। इसके लिए कादर खान को 1500 रुपए मिले थे। 1970 और 80 के दशक में उन्होंने कई फिल्मों के लिए कहानियां लिखीं।
कादर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि एक दिन साउथ इंडियन फिल्म डायरेक्टर ने उन्हें फिल्मों के कुछ डायलॉग के बारे में बात करने को बुलाया था। इसके बाद डायरेक्टर ने कहा कि आप सर जी से नहीं मिले। कादर खान ने कहा कि कौन सर जी। डायरेक्टर ने अमिताभ बच्चन की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ये हैं सर जी। कादर खान हैरान रह गए पर उन्होंने वहां कुछ बोला नहीं।
दरअसल, फिल्मी इंडस्ट्री में उस समय हर कोई अमिताभ बच्चन को सर जी कहकर बुलाने लगा था, लेकिन कादर खान का कहना था, ‘मैं कैसे उनको सर जी कह सकता हूं। वो मेरे लिए एक दोस्त और छोटे भाई के जैसे हैं।’
कादर खान जीवन के अंतिम दिनों में सुप्रान्यूक्लीयर पाल्सी बीमारी से जूझ रहे थे, जो कि एक लाइलाज बीमारी है। सांस लेने में तकलीफ के कारण उन्हें 28 दिसंबर 2018 को कनाडा के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वो अपने बेटे-बहू के पास इलाज कराने के लिए गए थे। इसके बाद 31 दिसंबर 2018 को कनाडा में ही कादर खान का निधन हो गया।