लाल बहादुर शास्त्री की 57वीं बरसी पर जाने शास्त्री जी के बारे में

‘मैं अपने कमरे में सो रहा था तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया। गेट पर एक महिला थी। उसने कहा- योर प्राइम मिनिस्टर इज डाइंग। मैं भागता हुआ शास्त्री जी के कमरे की तरफ बढ़ा तो वहां बरामदे में सोवियत संघ के PM अलेक्सी कोसीगिन खड़े थे। उन्होंने मुझे देखते ही दोनों हाथ ऊपर उठा दिए। भीतर डॉक्टरों की एक टीम शास्त्री जी को घेर कर खड़ी थी।‘

11 जनवरी 1966 को रात करीब डेढ़ बजे की यह आंखों देखी है कुलदीप नैयर की। वे तब प्रधानमंत्री के सूचना सलाहकार थे और 1965 के युद्ध में पाकिस्तान के लाहौर तक परचम फहराने वाले PM लाल बहादुर शास्त्री के साथ ताशकंद पहुंचे थे। तब का ये सोवियत शहर आज उज्बेकिस्तान की राजधानी है।
यहां एक दिन पहले ही सोवियत संघ की मेजबानी में शास्त्री ने पाकिस्तानी तानाशाह जनरल अयूब से ताशकंद समझौता किया था। समझौते में पाकिस्तान ने भारत की कब्जाई जमीन छोड़ दी और बदले में भारत को लहौर के करीब तक पहुंच चुकी फौज वापस बुलानी पड़ी थी।
उधर, नैयर जब तक शास्त्री जी के कमरे के भीतर पहुंचे, यह तय हो चुका था कि भारत के दूसरे प्रधानमंत्री जीवित नहीं रहे। नैयर के मुताबिक उनका शव बिस्तर पर था। चप्पलें करीने से रखी थीं, लेकिन उनका पानी वाला थर्मस ड्रेसिंग टेबल पर लुढ़का पड़ा था। साफ था, बेचैन शास्त्री ने पानी पीने की कोशिश तो की, लेकिन कामयाब नहीं हो सके।
पाकिस्तान से इतना बड़ा समझौता करके विदेशी धरती इस तरह अचानक मौत, कहीं यह कोई साजिश तो नहीं? आज 57 बरस बाद भी ऐसे सवाल हर भारतीय के मन में उठते हैं। आइए जानते हैं आखिर उस रात हुआ क्या था?
10 जनवरी को दोपहर के वक्त ताशकंद में समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इसके बाद सोवियत संघ ने होटल ताशकंद में एक पार्टी रखी थी। शास्त्री जी कुछ देर वहां रुके फिर अपने तीनों सहायकों के साथ रात 10 बजे करीब अपने कमरे पर वापस आ गए। शास्त्री जी के रूम में इस विषय पर बात होने लगी कि शास्त्री जी को अयूब खान के इस्लामाबाद बुलावे पर जाना चाहिए या नहीं।
उनके सहयोगी शर्मा ने कहा उन्हें पाकिस्तान नहीं जाना चाहिए। अयूब खान किसी भी हद तक जा सकते हैं और शास्त्री जी की जान को भी खतरा हो सकता है। इस पर शास्त्री जी ने कहा, ‘अब वो कुछ भी नहीं कर सकते, हमारा एग्रीमेंट हो चुका है और वैसे भी अयूब अच्छा आदमी है।’
इसके बाद शास्त्री जी ने रामनाथ से खाना परोसने को कहा। खाने में आलू पालक और कढ़ी थी। ये खाना तत्कालीन राजदूत टीएन कौल के यहां से बन कर आया था। इससे पहले उनका भोजन रामनाथ बनाते थे, लेकिन उस दिन खाना जान मोहम्मद ने बनाया था। किचन में जान की मदद दो महिलाएं कर रहीं थीं। वो रूसी इंटेलिजेंस से थीं और रूस में वो शास्त्री जी का भोजन पैक करने से पहले चख कर भेजती थीं। कुलदीप नैयर लिखते हैं कि शास्त्री जी का पानी भी चख कर दिया जाता था।
शास्त्री जी भोजन कर ही रहे थे कि फोन बजा। फोन पर दिल्ली से उनके एक अन्य सहायक वेंकटरमन थे। उनके निजी सहायक जगन्नाथ सहाय ने फोन उठाया। उधर से वेंकटरमन ने भारत की राजनीतिक हलचल की सूचना दी। भारत में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सुरेंद्र नाथ तिवारी और जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी ने फैसले की आलोचना की थी। शास्त्री जी चिंतित हो गए। फिर शास्त्री जी ने काबुल में अगले दिन के अखबार मंगवाए।

उनके बेटे अनिल शास्त्री बताते हैं, ‘उस रात उन्होंने भारत के अखबार काबुल मंगवाए। तब तक उनकी बातचीत और तबीयत में कोई शिकायत नहीं थी। इसका मतलब है कि वो जानना चाहते थे कि देश में उनके फैसले का क्या असर हुआ है।’
शास्त्री जी ने दो दिनों से घर पर बात नहीं की थी। लगे हाथ उन्होंने घर पर भी बात की। वो अपनी बेटी कुसुम को बहुत मानते थे। फोन पर पूछा- तुम्हें फैसला कैसा लगा? कुसुम ने कहा, ‘मुझे अच्छा नहीं लगा।’
अपनी पत्नी ललिता शास्त्री को वो अम्मा कहते थे। बेटी ने कहा, ‘अम्मा आप से नाराज हैं और बात करने से मना कर रही हैं। आपने भारत का जीता हुआ हिस्सा पाकिस्तान को क्यों दे दिया?’
जगन्नाथ सहाय के मुताबिक इस फोन कॉल के बाद शास्त्री जी दुखी हो गए। रामनाथ ने उन्हें पीने के लिए दूध दिया। सोने से पहले दूध शास्त्री जी के दिनचर्या का हिस्सा था। शास्त्री जी ने रामनाथ को सोने जाने को कहा। रामनाथ ने उनके कमरे में ही फर्श पर सोने की पेशकश की, जिसे शास्त्री जी ने मना कर दिया।
कुलदीप नैयर अपनी किताब में लिखते हैं कि अगले दिन अफगानिस्तान जाना था जिसकी पैकिंग चल रही थी। ताशकंद के समय के मुताबिक रात 1 बजकर 30 मिनट पर शास्त्री जी को जगन्नाथ सहाय ने लॉबी में लड़खड़ाते हुए देखा। वो कुछ बोलने की कोशिश कर रहे थे। बहुत मुश्किल से उन्होंने कहा, ‘डॉक्टर साहब कहां हैं?’
जिस कमरे में पैकिंग हो रही थी, शास्त्री जी के डॉक्टर आर एन चुग वहीं सो रहे थे। जगन्नाथ सहाय ने आनन-फानन में सिक्योरिटी गॉर्ड की मदद से उन्हें बिस्तर पर लिटाया पीने को पानी दिया और कहा, ‘बाबू जी! आप अभी ठीक हो जाएंगे।’
शास्त्री जी ने अपना हाथ दिल के पास रखा और फिर अचेत हो गए। निजी डॉक्टर आर एन चुग ने पल्स चेक किया और उनके निधन की पुष्टि की। मन रखने के लिए रूस के भी डॉक्टर बुलाए गए। इंजेक्शन दिया गया, लेकिन कोई हरकत नहीं हुई।
अपनी किताब में शास्त्री जी के कमरे के बारे में कुलदीप नैयर ने लिखा है कि कारपेट वाले फर्श पर उनकी स्लीपर सलीके से वैसी ही बिना पहनी रखी हुई थी। ड्रेसिंग टेबल पर थर्मस उल्टा पड़ा था। ऐसा लग रहा था कि इसे खोलने की कोशिश की गई है। कमरे में कोई अलार्म या बजर नहीं था जो आमतौर पर रहता है। कमरे में तीन फोन थे लेकिन तीनों बिस्तर से काफी दूर थे।
शास्त्री जी के परिवार ने आरोप लगाया कि उनका शरीर नीला पड़ चुका था। जहर की बात इसलिए भी होती है कि उस रात का खाना रामनाथ की बजाय टीएन कौल के कुक जान मोहम्मद ने बनाया था। संदेह के आधार पर रूसी अफसरों ने जान मोहम्मद को पकड़ा भी, लेकिन फिर छोड़ दिया गया। जान मोहम्मद को बाद में राष्ट्रपति भवन में नौकरी मिल गई।
जहर देने की बात को शरीर के नीले होने से बल मिलता रहा, जिसको कुलदीप नैयर अपनी किताब में खारिज करते हैं। वो लिखते हैं कि उन्हें बताया गया कि शरीर को खराब होने से बचाने के लिए केमिकल और बाम लगाया गया था जिसकी वजह से वो नीला पड़ गया।
शास्त्री जी के मौत की जांच का मामला उठता रहा। तत्कालीन सरकार ने पोस्टमार्टम भी नहीं करवाया। 1977 में जनता पार्टी की सरकार आई। जांच के लिए कमेटी बनी। राज नारायण कमेटी। सबसे पहले उनके निजी डॉक्टर आर एन चुग को पूछताछ के लिए बुलाया जाना था, लेकिन उनकी कार की एक ट्रक से टक्कर हो गई।
इस दुर्घटना में डॉक्टर चुग की मृत्यु हो गई और उनकी बेटी जीवन भर के लिए विकलांग हो गईं। यही उनके सहायक रामनाथ के साथ हुआ। सड़क हादसे में उनको बुरी तरह चोट लगी और उनकी याददाश्त चली गई। इस कमेटी की रिपोर्ट का हाल भी ढाक के तीन पात हो कर रह गया और रिपोर्ट आज तक पेश नहीं की जा सकी।
1965 के युद्ध में भारत ने अमेरिका के सहयोगी पाकिस्तान को हरा दिया था। इधर भारत ने अमेरिका के दबाव के बावजूद परमाणु कार्यक्रम बंद करने से इंकार कर दिया था। भारत परमाणु हथियार बना रहा था और वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा इसमें 1944 से लगे थे। संयोग ही है कि शास्त्री जी की मौत से मात्र 13 दिन बाद 24 जनवरी को एक विमान दुर्घटना में उनकी भी मृत्यु हो गई। इन दोनों बातों के तार जुड़ते हैं एक इंटरव्यू से।
जब ये दोनों घटनाएं हुईं तब CIA के डायरेक्टर ऑफ प्लानिंग थे रॉबर्ट क्राउली। क्राउली ने साल 1993 में एक अमेरिकी पत्रकार ग्रेगरी डगलस को इंटरव्यू दिया और बताया कि वो CIA ही था, जिसने जनवरी 1966 में शास्त्री और डॉ. होमी भाभा दोनों की हत्या की थी।क्राउली ने पत्रकार से यह भी कहा कि इस इंटरव्यू को उनकी मृत्यु के बाद ही प्रकाशित किया जाए। इस इंटरव्यू में उसने शास्त्री जी को मारने का भी कारण बताया। उसने कहा कि अमेरिका को फिक्र थी कि रूस के हस्तक्षेप से भारत की पहुंच मजबूत होगी। लगे हाथ पाकिस्तान का हारना अमेरिका की सुपर पावर छवि को नुकसान पहुंचाएगा।