आम आदमी पार्टी का केंद्र की तरफ दांव और बसपा की जिंदा रहने की चुनौती

पंजाब के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की धुआंधार जीत इस 10 साल पुरानी पार्टी का सबसे ऊंचा मुकाम है. इस जीत में देश की राजनीति का चेहरा बदल देने की क्षमता है. आप बेशक दिल्ली में जीतती रही है, लेकिन दिल्ली सरकार आखिरकार एक अपेक्षाकृत प्रतिष्ठित नगर निगम की तरह ही है. यहां ज्यादा कुछ करने को होता नहीं है.

पंजाब में पहली बार अरविंद केजरीवाल के पास मौका है कि वे देश को बताएं कि उनका शासन का मॉडल क्या है. अगर केजरीवाल पंजाब में कुछ चमत्कारिक कर पाते हैं तो उनके पास वह मशीनरी और तंत्र है कि वे देश भर में इसका ढिंढोरा पीट लेंगे. आप के राष्ट्रीय होने का रास्ता पंजाब मुहैया करा सकता है. लेकिन यहां फेल होने का मतलब इस कहानी का अंत भी हो सकता है.

वही यह चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का प्रदर्शन इस चुनाव में बेहद बुरा रहा. यूपी में उसे सिर्फ एक सीट मिली और पंजाब में अकाली दल के साथ गठबंधन का उसका प्रयोग फेल हो गया. 1984 में बनी बीएसपी को भारतीय लोकतंत्र का चमत्कार माना जाता है क्योंकि साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले मान्यवर कांशीराम ने देखते ही देखते इसे देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी में तब्दील कर दिया था और यूपी की सत्ता इस पार्टी के हाथ में आ गई थी.

लेकिन अब पार्टी लगातार ढलान पर है. 2007 का यूपी विधानसभा चुनाव आखिरी चुनाव है, जो इस पार्टी ने जीता है. उसके बाद के तीनों विधानसभा चुनाव और दो लोकसभा चुनाव में पार्टी का उतार पर होना नजर आ रहा है. 1989 के बाद, 2022 में पार्टी ने अपना सबसे कमजोर प्रदर्शन किया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन में बीएसपी ने लोकसभा की 10 सीटें जीती थीं, लेकिन फिर बीएसपी ने तय किया कि वह अकेली चलेगी. ये दांव उल्टा पड़ा. चुनावी हार से परे एक सवाल ये भी है कि क्या बीएसपी की वैचारिक जमीन कायम है. बीएसपी ने बहुजन से सर्वजन की यात्रा की है और ये सफर 2007 तक कामयाब रहा. बीएसपी के राजनीतिक कार्यक्रम में ब्राह्मणों को जोड़ने पर बहुत ध्यान होता है. जब तक यूपी की राजनीति सपा-बसपा द्वंद्व पर चल रही थी, तब ब्राह्मण यहां या वहां होते थे. लेकिन 2014 के बाद ब्राह्मण बीजेपी में लौट गए हैं. ऐसे में ब्राह्मणों को लुभाने पर बीएसपी का ज्यादा जोर देना राजनीतिक परिणाम नहीं दे पा रहा है. इसके अलावा बीएसपी के लिए सांगठनिक चुनौती भी है और ये सवाल भी कि पार्टी क्या अगले चरण के लिए अपने नेतृत्व को तैयार कर रही है.