एक ऐसे कलाकार जिसने 50 साल के उम्र में फिल्मी इंडस्ट्री में कदम रखा था। इसके बावजूद उन्होंने 225 फिल्मों में काम किया था। भारत सरकार ने उन्हें 2006 में हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया था। कभी चाचा का रोल हो या बूढ़े बाप का रोल, हर किरदार को ये बखूबी निभाते थे। रील किरदार के जैसी ही उनकी रियल लाइफ भी उतार-चढ़ाव से भरी पड़ी थी। जिसने देश सेवा में भी योगदान दिया था उसे अपनी जिंदगी के अंतिम समय में आर्थिक मदद के लिए लोगों पर निर्भर होना पड़ा। ये कहानी किसी और की नहीं बल्कि ए.के हंगल की है।
ए.के.हंगल का जन्म 1 फरवरी 1914 ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के सियालकोट में एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था। रंगमंच के तरफ उनका झुकाव बचपन के दिनों से ही था लेकिन वो बड़े होकर एक दर्जी बने। इस दौरान भी वो थिएटर से जुड़े रहे। ए.के.हंगल 1929 से 1947 तक आजादी के लड़ाई में सक्रिय भागीदार थे। वो 1936 में पेशावर के एक थिएटर ग्रुप श्री संगीत प्रिया मंडल में शामिल हुए और 1946 तक देश भक्ति पर बेस्ड कई नाटकों में एक्टिंग करना जारी रखा।
ए.के.हंगल, बलराज साहनी और कैफी आजमी के साथ थिएटर ग्रुप इप्टा से जुड़े थे। बलराज और कैफी आजमी कम्युनिस्ट विचारधारा के थे, जिस कारण ए.के.हंगल को भी 1947 से 1949, 2 साल तक कराची जेल में बिताना पड़ा था। जेल से रिहाई के बाद वो भारत आ गए और मुंबई में बस गए। बाद में उन्होंने 1949 से 1965 तक भारत के थिएटर में कई नाटकों में एक्टिंग किया।
ए.के.हंगल ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 50 साल की उम्र में 1966 में फिल्म तीसरी कसम और शागिर्द से की थी। इन दोनों फिल्मों को बासु भट्टाचार्य ने डायरेक्ट किया था। फिल्मों में अक्सर हंगल साहब लीड किरदार के ऑन-स्क्रीन पिता या चाचा की भूमिका निभाते हुए नजर आते थे। 1970 से लेकर 1990 के दशक की फिल्मों में उन्होंने विनम्र और दुखी पिता के रोल में नजर आए थे। इसी कारण लोग उन्हें हंगल साहब नहीं ‘विनम्र साहब’ कहते थे।
किस्सा ये भी है कि शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने साल 1993 में ए के हंगल की फिल्मों पर बैन लगा दिया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि पाकिस्तान के नेशनल डे पर हंगल साहब हिस्सा लेते थे, जो कि बाल ठाकरे को बिल्कुल पसंद नहीं था।
हंगल साहब ने 225 फिल्मों में काम किया था। इन फिल्मों में शौकीन, अवतार, शोले, नमक हराम, अर्जुन, आंधी, तपस्या, चितचोर और गुड्डी जैसी फिल्में शामिल हैं। वो 16 फिल्मों में राजेश खन्ना के साथ नजर आए थे। उन्होंने 2001 में गुल बहार सिंह द्वारा निर्देशित एनएफडीसी फिल्म दत्तक (द एडॉप्टेड) में भी काम किया था। हंगल साहब अंतिम बार मई 2012 में टेलीविजन सीरियल मधुबाला-एक इश्क एक जुनून में नजर आए थे। इस सीरियल में उनका कैमियो रोल था। 2012 की शुरुआत में उन्होंने एनिमेशन फिल्म कृष्णा और कंस के राजा उग्रसेन के रोल के लिए अपनी आवाज भी दी थी। हंगल साहब के इस काम को काफी सराहना मिली थी।
अपनी करियर में हंगल साहब ने 225 फिल्मों में काम किया था पर अपने जीवन के आखिरी दिनों में मेडिकल खर्चों को पूरा करना भी उनके लिए मुश्किल हो गया था। उनके बेटे विजय एक रिटायर फोटोग्राफर थे और 2001 से उनके पास कोई अच्छी नौकरी भी नहीं थी जिस कारण फैमिली को फाइनेंशियल प्रॉब्लम का सामना करना पड़ा। हालांकि पहले विजय छोटे-मोटे काम करते थे, लेकिन बाद में उन्हें पीठ की समस्या हो गई और वह काम नहीं कर पा रहे थे।
कहा जाता है कि ए के हंगल के बेटे ने जब इलाज के लिए पैसे ना होने की बात बताई थी तो उस समय अमिताभ बच्चन ने उन्हें इलाज के लिए 20 लाख रुपए दिए थे। साथ ही करण जौहर समेत कई और लोगों ने आर्थिक मदद की थी।