5 जनवरी को अमेरिका में अलास्का एयरलाइन का एक विमान पोर्टलैंड शहर के हवाई अड्डे से उड़ान भरता है। बोइंग 737-9 मैक्स सीरीज के इस प्लेन में 171 पैसेंजर और 6 क्रू मेंबर सवार थे। चंद मिनट बाद जैसे ही विमान 16 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचा, उसका एक दरवाजा टूट गया। प्लेन में एयर प्रेशर इतना घट गया कि लोगों को लगा उनके कान के पर्दे ही फट जाएंगे। विमान को तुरंत इमरजेंसी लैंडिंग के लिए उतारा गया।
इस घटना के 24 घंटे के भीतर एक तरफ अमेरिका ने 737-9 मैक्स सीरीज के करीब 171 विमानों की उड़ान पर रोक लगा दी। वहीं, भारत के एविएशन रेगुलेटर DGCA ने एयरलाइन कंपनियों को अपने बेड़े में शामिल इसी सीरीज के बोइंग 737-8 मैक्स प्लेन के इमरजेंसी एग्जिट डोर के सिक्योरिटी चेक के आदेश दे दिए। भारत के इस डर की वजह बोइंग के 737 सीरीज के विमानों का काला इतिहास है।
पहला हादसा: साल- 2018, तारीख- 29 अक्टूबर, देश- इंडोनेशिया
सुबह 6 बजकर 21 मिनट पर बोइंग- 737 के मैक्स 8 विमान ने इंडोनेशिया के सोएकरानो-हट्टा हवाई अड्डे से उड़ान भरी। इसे 7 बजकर 20 मिनट पर इंडोनेशिया के ही एक छोटे से शहर पंगकाल पिनांग जाना था। पर ऐसा नहीं हुआ। टेक ऑफ के कुछ मिनट बाद ही विमान के क्रू ने एयर ट्रैफिक कंट्रोल से संपर्क किया और वापस जकार्ता लौटने की परमिशन मांगी।
इस वक्त प्लेन 5 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ान भर रहा था। इसके बाद प्लेन ने न तो इमरजेंसी अलर्ट जारी किया और न ही वापस लौटा। 6 बजकर 32 मिनट पर प्लेन से संपर्क टूट चुका था। प्लेन उड़ान भरने के 11 मिनट के भीतर ही तेजी से जावा समुद्र में जा गिरा। इस हादसे में 189 लोग मारे गए।
इंडोनेशिया के प्लेन क्रैश ने पूरी एविएशन इंडस्ट्री को हैरान कर दिया था। इसकी वजह ये थी कि बोइंग ने अपने विमान को क्रैश होने से एक साल पहले ही लॉन्च किया था। जो प्लेन क्रैश हुआ वो सिर्फ 3 महीने पुराना था।जांच में इंडोनेशिया की नेशनल ट्रांसपोर्टेशन एजेंसी सेफ्टी कमिटी ने बताया कि प्लेन क्रैश होने से कुछ दिनों पहले से विमान में हवा की रफ्तार को मापने के लिए लगी रीडिंग गलत रिकॉर्ड हो रही थी।
आसमान में प्लेन से टकराने वाली हवा की रफ्तार को मापने के लिए विमान में सबसे आगे सेंसर लगे होते हैं। इससे पायलट को पता चलता है कि उसे प्लेन को किस एंगल पर रखना है। ताकि वो हवा में तेजी से आगे बढ़ता रहे और रुके नहीं।
अगर प्लेन की नाक यानी उसका आगे का हिस्सा स्पीड के मुताबिक गलत एंगल पर होगा तो विमान का हवा में टिके रह पाना मुश्किल हो जाएगा। सेंसर पायलट को बताता है कि विमान का नाक गलत एंगल पर है और इसे ठीक करने के लिए विमान की पूंछ को ऊपर या नीचे कर एडजस्ट करना होगा।
एयर मेंटनेंस के स्टाफ ने इस खामी की जांच कर इसे दूर कर दिया था। प्लेन को उड़ान भरने के लिए फिट घोषित कर दिया था। एविएशन एक्सपर्ट जॉन गैजिमस्की के मुताबिक जब भी कोई प्लेन नए ऑटोमेटेड सिस्टम्स के साथ लॉन्च किया जाता है उसमें कोई खामी होने की गुंजाइश रहती है। कुछ न कुछ ऐसी गलती होती है जिसके बारे में प्लेन बनाने वाले सोच भी नहीं सकते।
घड़ी में सुबह के 6 बजकर 38 मिनट हुए थे। इथियोपिया के अदिस अबाबा शहर में मौसम बिल्कुल साफ था। तभी बोले इंटरनेशनल एयरपोर्ट से इथियोपिया एयरलाइन की फ्लाइट 302 केन्या की राजधानी नाइरोबी के लिए उड़ान भरती है। टेक ऑफ करने के एक मिनट बाद कैप्टन के आदेश पर फर्स्ट ऑफिसर कंट्रोल टावर में फ्लाइट कंट्रोल प्रॉब्लम की जानकारी देता है।
उड़ान भरने के 2 मिनट बाद प्लेन अचानक हवा में आगे की तरफ झुक जाता है। प्लेन हवा में कभी ऊपर कभी नीचे की तरफ हिचकोले खाने लगता है। 3 मिनट के बाद पायलट फर्स्ट ऑफिसर को एयर ट्रैफिक कंट्रोल से वापस लौटने की परमिशन मांगने को कहता है।
इसके तुरंत बाद विमान से संपर्क टूट जाता है। विमान 700 मील प्रति घंटा की रफ्तार से नीचे गिरता है और क्रैश हो जाता है। इंडोनेशिया की तरह ही ये विमान भी बोइंग कंपनी की 737 सीरीज का मैक्स 8 जेट था। इसमें 149 पैसेंजर और 8 क्रू मेंबर सवार थे।
विमान कितनी तेजी से नीचे आया इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इससे जमीन पर 90 फीट चौड़ा और 120 फीट लंबा गड्ढा हो गया। मलबा जमीन के 30 फीट अंदर तक घुस गया है और इसमें सवार सभी लोगों की मौत हो गई।
इथियोपिया में हुए क्रैश के बाद बोइंग 737 सीरीज के विमानों में लगे MCAS नाम के एक सिस्टम पर सवाल खड़े हो गए। इस सिस्टम को पायलट के सुविधा के लिए लाया गया था ताकि बाहरी हवा के मुताबिक प्लेन अपने आप ही एंगल बदल ले। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक इसे ही बाद में हादसों की वजह माना जाने लगा।
इस सिस्टम के तहत प्लेन की नाक यानी उसके आगे का हिस्सा ऑटोमेटिकली ऊपर-नीचे होने लगता है। हैरानी की बात ये थी कि प्लेन अगर ऑटोपायलट पर नहीं है और उसे पायलट खुद से ऑपरेट कर रहा है। तब भी ये सिस्टम पायलट के निर्देशों को ओवरटेक कर सकता है।
इसकी एक ओर वजह पायलटों के बीच प्रशिक्षण का अभाव होना भी बताया गया था। मुठ्ठी भर पायलटों को ही इस विमान पर प्रशिक्षण दिया गया था। जिन पायलटों को प्रशिक्षण दिया गया, वे भी बोइंग 737 विमान के पुराने मॉडल थे। उनमें MCAS सॉफ्टवेयर नहीं लगा था।
इसके पंखों की डिजाइनिंग के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इसमें इंधन कम खर्च होता है।
इंजन शोर भी कम करता है और वातावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गैसों का उत्सर्जन भी कम होता है।
यात्रियों के लिए भी यह सुविधाजनक है। यात्रा के वक्त ज्यादा झटके महसूस नहीं होते हैं।
31 जनवरी, 2019 तक 350 विमान दुनिया भर में इस्तेमाल हो रहे थे। कंपनी को 4,661 विमानों के ऑर्डर मिल चुके थे।
हादसों के बाद 40 से ज्यादा देशों ने बैन किया
इंडोनेशिया और इथियोपिया में हुए हादसों के बाद भारत समेत 40 से ज्यादा देशों में बोइंग के 737 मैक्स विमानों को बैन कर दिया गया था। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने आदेश दिया था कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती और विमान की खामियां दूर नहीं हो जाती तब तक बोइंग के 737 मैक्स सीरीज के विमान उड़ान नहीं भरेंगे।
बोइंग को अमेरिका के एविएशन विभाग को 20 हजार करोड़ रुपए देने पड़े। इतना ही नहीं हादसों से कंपनी को 20 बिलियन डॉलर यानी 16 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। कंपनी ने दिसंबर 2020 में CEO डेनिस मुइलेनबर्ग को बर्खास्त कर दिया।
18 महीने की जांच के बाद अमेरिका ने मैक्स विमानों की उड़ान पर लगी पाबंदियों को हटा दिया। 2 साल बाद बाकी देशों में बोइंग 737 मैक्स सीरीज के विमान फिर से उड़ान भरने लगे। इसके लिए कंपनी को MCAS सॉफ्टवेयर में बदलाव करने पड़े।