जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती व अन्य के खिलाफ जन सुरक्षा कानून (PSA) के तहत गुरुवार को दर्ज मामले को लेकर पूर्व वित्तमंत्री पी चिंदबरम ने नाराजगी जताई। उन्होंने ट्वीट कर मोदी सरकार पर निशाना साधा और इसे लोकतंत्र का सबसे घटिया कदम करार दिया। चिदंबरम ने ट्वीट करते हुए कहा कि उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और अन्य के खिलाफ पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) की क्रूर कार्रवाई से हैरान हूं। आरोपों के बिना किसी पर कार्रवाई लोकतंत्र का सबसे घटिया कदम है। जब अन्यायपूर्ण कानून पारित किए जाते हैं या अन्यायपूर्ण कानून लागू किए जाते हैं, तो लोगों के पास शांति से विरोध करने के अलावा क्या विकल्प होता है?’
चिंदबरम ने एक अन्य ट्वीट में पीएम मोदी पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि विरोध प्रदर्शन से अराजकता होगी और संसद-विधानसभाओं द्वारा पारित कानूनों का पालन करना होगा। वह इतिहास और महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला के प्रेरक उदाहरणों को भूल गए हैं।’
बिना मुकदमे दो साल तक नजरबंद रखने का प्रावधान
जन सुरक्षा कानून (PSA) सार्वजनिक सुरक्षा का हवाला देते हुए किसी भी व्यक्ति को दो साल तक बिना मुकदमे गिरफ्तारी या नजरबंदी की अनुमति देता है। कश्मीर के नेताओं के लिए ये कानून भले ही अब सिरदर्द बन गया हो, लेकिन इस कानून को लाए भी यहीं के नेता थे।
इस कानून को फारूक अब्दुल्ला के पिता व पूर्व सीएम शेख अब्दुल्ला लेकर आए थे। इस कानून को लकड़ी के तस्करों से निपटने के लिए लाया गया था। इसके तहत बिना मुकदमे दो तक जेल में रखने का प्रावधान था।
इसलिए पड़ी जरूरत
1970 के दशक में जम्मू-कश्मीर में लकड़ी की तस्करी एक बड़ी समस्या बनती जा रही थी। कड़ा कानून नहीं होने की वजह से अपराधी आसानी से छूट जाते थे। इसके समाधान के लिए शेख अब्दुल्ला जन सुरक्षा कानून को लेकर आए।
90 के दशक में सुरक्षा बलों के काम आया
कश्मीर में 1990 के दौरान उग्रवाद चरम पर पहुंच गया था। इसे रोकने के लिए पुलिस और सुरक्षा बलों के लिए यह कानून एक अहम हथियार बना। इसी दौरान तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने प्रदेश में विवादास्पद सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम को लागू किया। इसके बाद पीएसए के तहत कई लोगों को पकड़ने का भी काम किया गया।
पत्थरबाजों के खिलाफ कारगर कानून
हालिया समय में इस कानून का इस्तेमाल आतंकियों, अलगाववादियों और पत्थरबाजों के खिलाफ किया जाता रहा है। 2016 में आतंकी बुरहान वानी की हत्या के बाद कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों के दौरान पीएसए के तहत 550 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया था।
हाईकोर्ट में दी जा सकती है चुनौती
इस कानून के तहत गिरफ्तार या नजरबंदी को लेकर एक समिति समय-समय पर समीक्षा करती है। इस कानून को हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इसके तहत 16 साल से ऊपर के किसी भी व्यक्ति को बिना केस गिरफ्तार किया जा सकता था। 2011 में न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया गया।