सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने चार वकीलों को जम्मू-कश्मीर, उड़ीसा, राजस्थान और बॉम्बे हाईकोर्ट के जज बनाए जाने के प्रस्तावों को मंजूरी दी है। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुआई वाले कॉलेजियम ने इस मंजूरी देने के साथ ही राजस्थान हाईकोर्ट में छह न्यायिक अफसरों को जज बनाए जाने के प्रस्ताव को भी सहमति प्रदान की है। कॉलेजियम ने जिन वकीलों को जज बनाए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है, वे हैं ओडिशा हाईकोर्ट के लिए सावित्री राठो, राजस्थान हाईकोर्ट के लिए मनीष सिसोदिया और बॉम्बे हाईकोर्ट के लिए अभय कुमार आहूजा। इस संदर्भ में कॉलेजियम की बैठक 22 जनवरी को हुई थी।
इसमें जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के लिए वकील जावेद इकबाल वानी को जज बनाए जाने की सिफारिश पर भी मुहर लगाई गई। राजस्थान हाईकोर्ट के जिन छह न्यायिक अफसरों को जज बनाए जाने की सिफारिश मंजूर की गई है, वे हैं देवेंद्र कछवाह, सतीश कुमार शर्मा, प्रभा शर्मा, मनोज कुमार व्यास, रामेश्वर व्यास और चंद्र कुमार सोनगारा।
समय पूर्व रिहाई के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का नहीं किया जा सकता इस्तेमाल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकारी आदेश या नियम के जरिये दोषी की समय से पहले रिहाई के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण (हीबस कॉर्पस) अर्जी का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। दरअसल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को कोर्ट में पेश कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि उस व्यक्ति की हिरासत वैध है या अवैध।
जस्टिस एसए नजीर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने स्पष्ट किया कि हीबस कॉर्पस याचिका तभी दी जा सकती है, जब किसी व्यक्ति को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में रखा गया हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समय के साथ इसके दायरे को व्यापक बनाया गया।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला सुनाया है, जिसमें तमिलनाडु सरकार द्वारा एमजी रामचंद्रन की जन्मशती पर कैदियों की समय पूर्व रिहाई की योजना को सही ठहराया था। पीठ ने कहा, यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि हीबस कॉर्पस ऐसे मामलों के लिए एक उपाय है, जिसमें व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी का हनन होता हो।