आखिर शरद पवार से भतीजे अजित ने क्यों की बगावत? बताई जा रही हैं ये 5 वजह

sarad pawar

मुंबई. महाराष्ट्र की सियासत में शनिवार सुबह के बाद से ही घमासान मचा है. राजनीतिक पंडितों को ये यकीन नहीं हो रहा है कि आखिर शरद पवार (Sharad Pawar) के भतीजा अजित पवार (Ajit Pawar) ने उनसे बगावत क्यों की? 78 साल के शरद पवार 50 साल से राजनीति में सक्रिय हैं. पवार राजनीति के बड़े खिलाड़ी माने जाते हैं. आईए एक नज़र डालते हैं उन 5 वजहों पर जिसके चलते अजित पवार ने अपने चाचा से अलग जाने का फैसला किया…

1. कहा जा रहा है कि अजित पवार इस बात को लेकर नाराज थे कि एनसीपी की तरफ से उपमुख्यमंत्री के नाम को लेकर तस्वीर साफ नहीं और पार्टी की तरफ से इस पर देरी हो रही थी. कहा जा रहा था कि उपमुख्यमंत्री के तौर पर पवार अपने भतीजे अजित की जगह किसी दूसरे नेता के नाम पर विचार कर रहे थे.

2. कहा ये भी जा रहा है कि अजित पवार और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के बीच भी कई मुद्दे पर विवाद चल रहा था. अजित को लग रहा था कि शायद उनके चाचा राजनीतिक मोर्चे पर सुप्रिया को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं. विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे को लेकर भी दोनों भाई-बहन के बीच विवाद हुआ था.

3. इस बार लोकसभा का चुनाव शरद पवार नहीं लड़े थे. उन्होंने अपनी पारंपरिक मावल सीट अजित पवार के बेटे पार्थ के लिए छोड़ दी थी. लेकिन पार्थ को दो लाख से ज्यादा वोटों से करारी हार का सामना करना पड़ा. इस बात को लेकर भी परिवार के अंदर काफी मनमुटाव रहा. अजित को लग रहा था कि एनसीपी की तरफ से उनके बेटे को पूरा समर्थन नहीं मिला. इतना ही नहीं अजित को ये भी लगा कि शरद पवार के परनाती रोहित को उनके बेटे पार्थ के मुकाबले ज्यादा अच्छे तरीके से लॉन्च किया गया. 4. सूत्रों के मुताबिक, अजित पवार को इस बात का डर सता रहा था कि उनका नाम कई घोटालों में शामिल था. लिहाजा अगर वो बीजेपी के साथ हाथ नहीं मिलाते हैं तो फिर मुश्किलें बढ़ सकती हैं. आरोप है कि उन्होंने चीनी मिल को कम दरों पर कर्ज दिया था. डिफॉल्टर की संपत्तियों को सस्ती कीमतों पर बेच दिया था. आरोप है कि इन संपत्तियों को बेचने, सस्ते लोन देने और उनका दोबारा भुगतान नहीं होने से बैंक को वर्ष 2007 से 2011 के बीच करीब 25,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. महाराष्ट्र के पूर्व सीएम और तत्कालीन वित्त मंत्री अजित पवार उस समय महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक (एमएससीबी) के डायरेक्टर थे.

5. साल 2008 में जब छगन भुजवल को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था तब भी अजित नाराज़ बताए गए थे. साल 2010 में जब अशोक चव्हाण का नाम आदर्श घोटाले में आया तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. उस वक्त अजित पवार को उम्मीद थी कि एनसीपी के किसी नेता को नया सीएम बनाया जाएगा, लेकिन कम सीटों के बावजूद भी कांग्रेस के पृथ्वीराज चव्हाण बाजी मार गए.