अयोध्या में मानो इतवार 10 नवंबर की सुबह एक नया सूरज निकला। जाड़े की आहट के साथ हल्की धूप में अयोध्यावासियों के चेहरे पर राहत का एहसास था। संतों और महंतों की इस नगरी में विवाद के अंत की शांति भी महसूस की जा सकती थी। लेकिन इसके ठीक एक दिन पहले शनिवार की सुबह सरयू तट से लेकर राम जन्मभूमि के आसपास के इलाकों में उम्मीद की जगह आशंका तैर रही थी। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला जानने की उत्सुकता के साथ हर अयोध्यावासी के मन में आशंका भी थी। फैसले से पहले प्रशासन की व्यापक तैयारियों को देखते हुए बाजारों में आम दिनों की तरह चहल-पहल नहीं थी।
7 नवंबर को दो दिवसीय पंचकोसी परिक्रमा की तैयारियों के साथ ही प्रशासन ने जगह-जगह बैरिकेडिंग लगाने का काम शुरू कर दिया था। राम जन्मभूमि, कनक मंदिर, हनुमान गढ़ी की ओर जाने वाले रास्तों पर बैरियर लगाकर कड़ी चेकिंग की जा रही थी। स्थानीय लोगों को भी शहर में आने-जाने के लिए पहचान-पत्र साथ लेकर चलना जरूरी हो गया था। बाहर से आए लोगों के लिए तो मुश्किलें ज्यादा थीं। शुक्रवार की शाम जब खबर आई कि शनिवार की सुबह सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा, तो शासन ने सख्ती और बढ़ा दी। रात से ही बाहर से आने वाली बड़ी गाड़ियों का प्रवेश लगभग प्रतिबंधित कर दिया गया। होटलों और धर्मशाला मालिकों को खाली कराने के निर्देश दे दिए गए। अनजाने भय से घिरे लोग जरूरी सामान की खरीदारी करते भी देखे गए।
शनिवार को फैसले के वक्त पूरे अयोध्या में सुरक्षाबलों की कड़ी चौकसी थी। लोग घर में ही टीवी पर फैसले की खबर आने का इंतजार कर रहे थे। सड़कों पर सुरक्षाबलों की गश्त अधिक, आम लोगों की तादाद कम हो गई थी। मीडिया को कुछ खास इलाकों में ही कवरेज की अनुमति थी। फैसले की तस्वीर जैसे-जैसे साफ हुई और प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हुआ, लोगों का भय दूर होने लगा। अयोध्या ही नहीं, उत्तर प्रदेश के अधिकतर जिलों में कमोबेश इसी तरह के हालात थे। मुकदमे से जुड़े पक्षों ने जिस तरह फैसले का स्वागत किया, उससे शांति कायम रहने को लेकर प्रशासन का भरोसा भी बढ़ने लगा।
फैसले के तत्काल बाद मीडिया के कैमरों की भीड़ के बीच बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी ने अपनी बात रखी, “हम तो पहले ही कह रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट से जो भी फैसला आएगा, हमें मंजूर होगा। अब जब फैसला आ गया है, हम खुश हैं। जिसको इसपर राजनीति करनी है, वह करे। हम आगे कहीं नहीं जाएंगे।” राम जन्मभूमि थाना इलाके के टेढ़ी बाजार में रहने वाले हाजी महबूब कहते हैं, “फैसला आने के पहले तक एक अंदेशा तो था ही मन में। लेकिन अब जब फैसला आ गया है, तो माहौल सामान्य होने लगा है।” बाबरी मामले के पक्षकार रहे हाजी महबूब ट्रांसपोर्ट कारोबार से जुड़े रहे हैं। वे कहते हैं, “शासन की सख्ती और चुस्ती से कुछ परेशानियां तो रहीं, लेकिन हिफाजत का सुकून भी कहीं मन में रहता था। फैसले ने इस मसले को खत्म कर दिया है। नई पीढ़ी अब आगे बढ़ना चाहती है। अयोध्या अब शांति और सुकून से जीना चाहता है।” निर्मोही अखाड़ा के महंत दिनेंद्र दास ने कहा कि फैसले पर हमारी पंचायत चर्चा करेगी, लेकिन देश में सद्भाव बना रहे यह हमारे लिए खुशी की बात है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की भूमिका तय की है, उम्मीद है सरकार उस दिशा में काम करेगी। जमीन पर निर्मोही अखाड़ा के दावे को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। बावजूद इसके उसका यह रुख बताता है कि इस फैसले को लेकर विवाद की गुंजाइश बेहद कम है।
सरकार ने की थी बड़ी तैयारी
फैसला आने से पहले आशंकाएं तो थी हीं, इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार ने व्यापक तैयारियां शुरू कर दी थीं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इसकी मॉनिटरिंग कर रहे थे। डीजीपी ओ.पी. सिंह तैयारियों को जमीन पर उतारने के लिए कड़ी मशक्कत कर रहे थे। प्रदेश के आला अधिकारी मानकर चल रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला 13-14 नवंबर को आएगा। लेकिन अचानक 8 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने प्रदेश के मुख्य सचिव राजेंद्र तिवारी और डीजीपी को तलब कर लिया। देर शाम तय हुआ कि अगले दिन, यानी शनिवार की सुबह फैसला आएगा तो प्रशासन के भी हाथ-पांव फूल गए। सरकार केंद्र से मिली सुरक्षा बल की 40 कंपनियों को नाकाफी मान रही थी।
फैसले के वक्त खुद मुख्यमंत्री पुलिस मुख्यालय में मौजूद थे। उन्हें इस बात का एहसास तो था ही कि इस मौके पर जरा-सी चूक प्रदेश की जनता पर भारी पड़ेगी और उनके सियासी विरोधियों को भी आलोचना का बड़ा मौका दे देगी। सरकार मान कर चल रही थी कि न तो मीडिया को कवरेज से रोका जा सकता है, और न ही आम लोगों को अयोध्या में रामलला के दर्शन से। प्रदेश के 75 जिलों में से 21 को संवेदनशील माना गया। इनमें मुजफ्फरनगर, अलीगढ़, मुरादाबाद, आजमगढ़, वाराणसी और कानपुर भी थे। राजधानी होने के नाते लखनऊ पर भी खास नजर रखी गई। शासन ने हर जिले में एक कंट्रोल रूम स्थापित किया। आपात स्थिति के लिए अस्थायी जेल के इंतजाम किए गए। सैकड़ों संदिग्ध लोगों को हिरासत में ले लिया गया। 400 से अधिक लोग जेल भी भेजे गए।
इन सबके बीच सबसे बड़ी चुनौती सोशल मीडिया के जरिए अफवाह फैलाने की कोशिशों पर लगाम कसने की थी। डीजीपी के मुताबिक उन्होंने आइआइटी कानपुर की मदद से सोशल मीडिया सर्विलांस का विशेष प्लान बनाया। सोशल मीडिया पर सख्ती दिखाते हुए शासन ने फैसला आने से पहले ही तकरीबन 76 मामले दर्ज किए और 42 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। इसके बावजूद कई संवेदनशील इलाकों में इंटरनेट सेवाओं को कुछ समय के लिए स्थगित करना पड़ा।
धार्मिक आयोजनों का सिलसिला जारी रहने से कानून-व्यवस्था को लेकर सरकार की चुनौतियां अब भी बरकरार हैं। लेकिन सुकून इस बात का है कि सरकार की कोशिशों के साथ-साथ सामाजिक और धार्मिक संगठन सकारात्मक माहौल बनाने में अहम भूमिका निभाते दिख रहे हैं। फैसला आने से पहले सद्भाव की अपील से शुरू हुआ सिलसिला फैसले के चौतरफा स्वागत और भाईचारे की पहल की ओर बढ़ रहा है। इससे प्रशासन की राह भी आसान हो गई है। अयोध्या में तो हिंदू-मुसलमान एक ही सुर में कहते मिले, “हमने कभी सौहार्द नहीं तोड़ा। पहले जो भी हुआ उसमें बाहरी लोगों की भूमिका रही।” शासन ने इस संदेश को समझते हुए आश्वस्त किया कि फैसले के वक्त अयोध्या ही नहीं, किसी भी संवेदनशील जिले में बाहरी लोगों की मौजूदगी यथासंभव कम रहे। शासन आम तौर पर ऐसी कवायद चुनावों के वक्त ही करता है। लेकिन आला अफसरों को यकीन है कि ऐसे संवेदनशील माहौल में किसी भी जिले को बाहरी तत्वों से सुरक्षित रखने का ये सूत्र कारगर है।