सुप्रीम कोर्ट ने वित्त अधिनियम 2017 के तहत न्यायाधिकरणों के लिए बनाए गए नियमों को रद्द किया

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वित्त अधिनियम 2017 की धारा 184 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए इसके तहत केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नियमों को रद्द कर दिया और नए नियमों के बनाने का निर्देश दिया है.

धारा 184 केंद्र सरकार को विभिन्न अधिकरणों (ट्रिब्यूनल) के सदस्यों की नियुक्ति और सेवा शर्तों से संबंधित नियम बनाने का अधिकार देता है.

इसके अलावा कोर्ट ने वित्त अधिनियम 2017 को धन विधेयक के रूप में पारित करने की वैधता पर फैसला लेने के लिए मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने का आदेश दिया.

लाइव लॉ के मुताबिक, पांच जजों की पीठ ने एक अंतरिम आदेश पारित कर कहा कि जब तक केंद्र सरकार अधिनियम की धारा 184 के तहत नए नियम नहीं बना लेता है तब तक न्यायाधिकरणों या अधिकरणों के सदस्यों की नियुक्तियों को उनके मूल एक्ट के अनुसार की जानी चाहिए.

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस संजीव खन्ना और खुद की ओर से लिखे फैसले में कहा कि न्यायाधिकरणों के न्यायिक प्रभाव आकलन की जरूरत है. केंद्र सरकार को वित्त अधिनियम के प्रावधानों को फिर से देखना चाहिए. इसके लिए अगर जरूरत पड़े तो सरकार विधि आयोग से सलाह ले सकती है.

जस्टिस चंद्रचूड़, जिन्होंने एक अलग लेकिन सहमति वाला निर्णय लिखा, ने माना कि नियुक्ति के तरीके का न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ता है. उन्होंने कहा कि न्यायाधिकरणों की अवधारणा एक विशेष निकाय के रूप में की गई है. इसे ध्यान में रखते हुए, नियुक्ति एक विधायी कार्य है.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने सरकार को याद दिलाया कि एल. चंद्रकुमार मामले में न्यायाधिकरणों की देखरेख करने के लिए एक मूल संगठन के रूप में राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग के गठन के निर्देश को अभी तक लागू नहीं किया गया है.

धन विधेयक के मुद्दे पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने मामले को बड़ी पीठ को भेजने के निर्णय पर सहमति व्यक्त की. उन्होंने कहा कि राज्यसभा को दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह राष्ट्र की बहुलता और शक्ति के संतुलन को दर्शाता है.

बीते 10 अप्रैल को सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस रमण, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की संविधान पीठ ने रोजर मैथ्यू और रेवेन्यू बार एसोसिएशन के मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.

इन याचिकाओं में वित्त अधिनियम 2017 के प्रावधानों को चुनौती दी गई है, जिसकी वजह से विभिन्न न्यायिक न्यायाधिकरण जैसे कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण, आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण, राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण की शक्तियां प्रभावित होती हैं.