पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत नरसिम्हा राव को आने वाली पीढ़ी आधुनिक भारत के शिल्पी के तौर पर याद करेगी या उनके शासन में बाबरी विध्वंस के लिए कोसेगी यह अब भी अहम सवाल है। कई भाषाओं के जानकार और विद्वान नरसिम्हा राव की राजनीतिक विरासत में 6 दिसंबर 1992 की तारीख हमेशा एक अलग ही बयां देगी। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद भी बीते तीन दशक का वह सवाल कि क्या राव ढांचे को गिराने से बचा सकते थे? हमेशा लोगों के मन में जिंदा रहेगा।
इस फैसले के साथ जिस तरह भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी, उमा भारती और मुरली मनोहर जोशी के उन प्रयासों की चर्चा है जिसने पार्टी को चुनावी जीत का आधार दिया तब अनिवार्य तौर पर पांच साल का शासन पूरा करने वाले पहले गैर गांधी परिवार के कांग्रेस पीएम नरसिंह राव की भी चर्चा जरूर की जानी चाहिए।
राव के प्रधानमंत्री काल में कई विकासशील फैसलों के बावजूद राम मंदिर आंदोलन को रोकने की विफलता के आरोप लगते रहे हैं और इनकी इस नाकामी को आने वाली पीढ़ी भी याद रखेगी।