लंबे वक्त से आतंकवाद का दंश झेल रहे कश्मीरियों में मानसिक तनाव जैसी बीमारियों का खतरा हो सकता है। अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद ये और भी जरूरी हो गया है कि कश्मीरियों का दिल जीतने की कोशिशें तेज हों और उन्हें इस अनुच्छेद की समाप्ति के फायदों के बारे में बताया जाए। अलायंस ऑफ डॉक्टर फॉर एथिकल हेल्थकेयर (एडीईएच) का दावा है कि कई दशकों से घाटी में आतंकवाद के माहौल में जी रहे वहां के बच्चे और बड़े ‘पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर’ (पीटीएसडी) के शिकार हो सकते हैं। इसलिए अभी उन्हें मरहम और प्यार भरे हाथ के स्पर्श की बेहद जरूरत है। जिसके लिए संस्था से जुड़े देशभर के चुनिंदा डॉक्टर कश्मीर जाना चाहते हैं।
गृह मंत्रालय से किया अनुरोध
एडीईएच के अनुसार मौजूदा माहौल उनके जेहन से आतंकवाद का खौफ समाप्त करने और उससे उपजे तनाव और अवसाद से मुक्त करने के लिए बेहतर है। उनका कहना है कि इस बीमारी के शिकार होने के बाद वे किसी पर भी विश्वास नहीं करेंगे। एडीईएच के प्रतिनिधिमंडल ने गृह मंत्रालय को पत्र भेजकर कश्मीर का दौरा करने की इजाजत मांगी है। इस प्रतिनिधिमंडल में विभिन्न राज्यों के 14 डॉक्टर शामिल हैं। इनका कहना है कि उन्हें कम से कम कश्मीर में एक सप्ताह तक रहने की इजाजत दी जाए।
क्या है पीटीएसडी
पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) एक तरह का मनोवैज्ञानिक रोग है। जो किसी हमले, भयावह हादसे और मारपीट के कारण उत्पन्न होता है। जान पर खतरा होने से इस रोग के शिकार होते हैं। जिससे दिमाग पर प्रतिकूल असर पड़ता है और बार-बार खराब विचार आते हैं। ऐसे लोग जो किसी खौफनाक या डरा देने वाले किसी अनुभव से गुजरे हों या किसी भयावह सड़क हादसे का शिकार हुए हों, तो इस बीमारी की चपेट में आ जाते हैं।
अमन बहाली में अहम भूमिका
एडीईएच सदस्य एवं लुधियाना के डॉक्टर अरुण मित्रा का कहना है, सरकार अपने स्तर पर वहां जो कुछ भी अच्छे काम कर रही है, वह ठीक है। लेकिन वहां लंबे समय से आकंवाद के साये में रहने से कश्मीरियों को स्वास्थ्य संबंधी सलाह की आवश्यकता है। नतीजतन, बच्चों और बड़ों में मानसिक बीमारियां हो रही हैं। सबसे बड़ा खतरा पीटीएसडी का है, जिससे वहां के लोगों में अविश्वास पनप रहा है और वे बातचीत के जरिए उनके भरोसे को वापस लाने और अमन बहाली में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
नफरत और अविश्वास के शिकार
डॉ. मित्रा के मुताबिक अगर एक बार कोई इस बीमारी का शिकार हो जाता है तो वह लंबे समय के लिए इससे बाहर नहीं आ पाता। अगर बचपन में कोई बच्चा इससे पीड़ित हो गया तो वह कई दशकों तक अपने दिमाग से नफरत और अविश्वास को बाहर नहीं निकाल पाता। ये बात सब जानते हैं कि हर व्यक्ति बीमारी के लिए अस्पताल नहीं जाता। अभी कश्मीर के लोगों को उनके घर में ही इलाज की जरुरत है।
देशभर के डाक्टर शामिल
एडीईएच में प्रतिनिधिमंडल में देशभर के डॉक्टर शामिल हैं। मित्रा कहते हैं कि अगर हमें वहां जाने की इजाजत मिलती है, तो लोगों के साथ एक डायलॉग भी शुरु होगा। कश्मीर और नेपाल में जब प्राकृतिक आपदा आई थी, तो एडीईएच के डॉक्टर वहां पहुंचे थे। हमनें केंद्रीय गृह मंत्रालय से आग्रह किया था कि एडीईएच को पहले एक सप्ताह के लिए घाटी में जाने की इजाजत दी जाए।
इन डॉक्टरों ने मांगी इजाजत
- डॉ. अरुण मित्रा, पंजाब
- डॉ. जे. अमलोर पावंथन, तमिलनाडु
- डॉ. अभय शुक्ला, पुणे
- डॉ. मोनिका थॉमस, दिल्ली
- डॉ. केवी बाबू, केरल
- डॉ. शकील उर रहमान, बिहार
- डॉ. संजीब मुखोपाध्याय, पश्चिम बंगाल
- डॉ. जैबुनिस्सा, तमिलनाडु
- डॉ. मौसादिक मिराजकर, मुंबई
- डॉ. जॉर्ज थॉमस, तमिलनाडु
- डॉ. अरुण गदरे, पुणे
- डॉ. शारदा बापत, महाराष्ट्र
- डॉ. जमिला कोशी, तमिलनाडु
- डॉ. मुरलीधर, चेन्नई