कश्मीर में पिछले चार दिन से लगातार असमंजस और दुविधा में रह रहे लोगों ने गुरुवार रात चैन की सांस ली। दिनभर लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्र के नाम संबोधन सुनने के लिए बेकरार रहे। शाम को जब खबर आई कि प्रधानमंत्री के संबोधन का समय बदल गया है तो आमजन सोचने लगा कि पता नहीं क्या होने जा रहा है।
खैर, सभी ने भाषण सुना। किसी ने घर के बाहर खड़े होकर पड़ोसी के रेडियो सेट पर तो कइयों ने अपने परिजनों के साथ दूरदर्शन पर और डिश टीवी के जरिए। लद्दाख और जम्मू में भी लोगों ने प्रधानमंत्री के संबोधन को बेसब्री से सुना। अधिकतर लोगों ने कहा कि पीएम का संदेश सुनकर विश्वास हुआ कि जो हो रहा है उसी में हमारी भलाई है।
राज्यसभा में गत सोमवार को जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने और दो केंद्र शासित राज्य बनाने के बाद से वादी में लगातार असमंजस का माहौल बना हुआ है। लोगों में आशंका है कि अब रोजगार, शिक्षा, व्यापार और स्थानीय सियासत पर अन्य राज्यों के लोग कब्जा कर लेंगे। वह अल्पसंख्यक हो जाएंगे, उनकी पहचान मिट जाएगी। वादी में बीते चार दिनों से टेलीफोन सेवाएं, इंटरनेट सेवा और केबल टीवी बंद हैं। लोगों के पास सिर्फ रेडियो, डिश टीवी और दूरदर्शन का ही विकल्प रहा है। संसद में हुई प्रक्रिया को लेकर वह पूरी तरह अवगत नहीं हैं, जिससे शरारती तत्वों उनमें विभिन्न भ्रम पैदा कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुनने के लिए लखनपुर से लेकर लेह तक लोग दिनभर इंतजार करते रहे। सभी सुबह से ही पूछ रहे थे कि अब क्या घोषित होगा। जरूर कुछ बड़ा एलान किया जाएगा। कश्मीर में ज्यादा उत्सुकता थी। श्रीनगर में राजबाग पुलिस स्टेशन से कुछ ही दूरी पर इखराजपोरा मस्जिद में इशा की नमाज अदा करने आए नासिर खान ने कहा कि हमने रेडिया पर पूरा भाषण सुना। अब जाकर बड़ी राहत मिली है। पीएम ने ऐसी कोई बात नहीं की जिससे हमारा अहित हो। हम तो हिंदोस्तानी हैं, इसमें न हमें संदेह है और न किसी दूसरे को होना चाहिए। यहां हम सभी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि हमारी सभ्यता और संस्कृति को बचाए रखने के लिए सरकार क्या कर रही है, यह उन्होंने नहीं बताया। आम कश्मीरी तो पहले भी कोई विशेषाधिकार नहीं चाहता था और न अब। अगर वह इसका भी उल्लेख करते तो बेहतर होता।
सेवानिवृत इंजीनियर एजाज हुसैन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमें लोकतंत्र की आड़ में पल रहे खानदानी राज से मुक्ति का यकीन दिलाते हुए कहा कि अब हम लोगों में से ही यहां विधायक बनेंगे, सांसद बनेंगे। पहले भी बनते थे, लेकिन वह दूसरों को आगे नहीं आने देते थे। उनकी बात से साफ हो गया है कि कोई बाहर से यहां आकर चुनाव नहीं लड़ने वाला, चुनाव हम कश्मीरी ही लड़ेंगे और हम ही अपनी मर्जी से अपना नेता चुनेंगे। वैसे भी अगर देखा जाए तो यहां कौन सा केंद्रीय कानून नहीं था। उन्होंने जल्द ही राज्य व केंद्र के अधीनस्थ विभागों में यहां भर्ती प्रक्रिया शुरू करने का एलान किया है।
लालचौक के साथ सटे आबीगुजर में स्थित जेकेएलएफ मुख्यालय के साथ सटे मकान में रहने वाले राशिद और उनकी पत्नी ने कहा कि यहां कह रहे थे कि अब कश्मीर में बाहर के लोग आकर बस जाएंगे, लेकिन प्रधानमंत्री ने ऐसा तो कुछ नहीं कहा। यहां तो ऐसे ही डराया जा रहा है।
करगिल में अध्यापक शब्बीर काचो ने टेलीफोन पर बताया कि कस्बे में शाम को लोग टीवी के सामने खड़े थे। प्रधानमंत्री ने तो कोई ऐसी बात का जिक्र नहीं किया है, जिससे हमारी पहचान, हमारी संस्कृति किसी तरह से भंग होती हो। हमारे खेत खलिहानों पर कोई कब्जा करने नहीं आ रहा है। उन्होंने तो हमें 72 साल से जारी शोषण की राजनीति से आजादी का संदेश दिया है।