लोस में राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक 2019 पेश

नई दिल्ली। लोकसभा में सोमवार को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक 2019 पेश किया गया। इसकें आयुर्विज्ञान शिक्षा, चिकित्सा वृति और आयुर्विज्ञान संस्थाओं के विकास एवं नियमन के लिए राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग गठित करने का प्रावधान किया गया है। विधेयक में आयोग को सलाह देने और सिफारिशें करने के लिए एक आयुर्विज्ञान सलाहकार परिषद का गठन करने का प्रस्ताव किया गया है।
लोकसभा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ.हर्षवर्द्धन ने उक्त विधेयक पेश किया। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि आयुर्विज्ञान शिक्षा किसी भी देश में अच्छी स्वास्थ्य देख—रेख प्राप्त करने के लिये महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग से संबंधित संसद की एक स्थायी समिति ने अपनी 92वीं रिपोर्ट में आयुर्विज्ञान शिक्षा और चिकित्सा व्यवसाय की विनियामक पद्धति का पुनर्गठन और सुधार करने के लिये तथा डॉ. रंजीत राय चौधरी की अध्यक्षता वाले विशेष समूह द्वारा सुझाए गए विनियामक ढांचे के अनुसार भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद में सुधार करने के लिये कदम उठाने की सिफारिश की।
उच्चतम न्यायालय ने 2009 में माडर्न डेंटल कालेज रिसर्च सेंटर तथा अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में 2 मई 2016 को अपने निर्णय में केंद्रीय सरकार को राय चौधरी समिति की सिफारिशों पर विचार करने और समुचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। इन सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए लोकसभा में 29 दिसंबर 2017 को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक 2017 पुन:स्थापित किया गया था। इसे बाद में विचारार्थ संसद की स्थायी समिति को भेज दिया गया। स्थायी समिति ने बाद में उक्त विधेयक पर अपनी रिपोर्ट पेश की। समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने 28 मार्च 2018 को लोकसभा में लंबित विधेयक के संबंध में आवश्यक शासकीय संशोधन प्रस्तुत किया था, लेकिन इसे विचार एवं पारित किये जाने के लिये नहीं लाया जा सका।
16वीं लोकसभा के विघटन के बाद यह समाप्त हो गया। विधेयक में चार स्वशासी बोर्डों के गठन का प्रस्ताव किया गया है। इसमें स्नातक पूर्व और स्नातकोत्तर अतिविशिष्ट आयुर्विज्ञान शिक्षा में प्रवेश के लिये एक सामान्य राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परिक्षा आयोजित करने की बात कही गई है। इसमें चिकित्सा व्यवसायियों के रूप में चिकित्सा व्यवसाय करने हेतु एवं राज्य रजिस्टर और राष्ट्रीय रजिस्टर में नामांकन के लिये एक राष्ट्रीय निर्गम परीक्षा आयोजित करने की बात कही गई है। इसमें भारत में और भारत से बाहर विश्वविद्यालयों और आयुर्विज्ञान संस्थाओं द्वारा अनुदत्त चिकित्सा अर्हताओं की मान्यता तथा भारत में ऐसे कानून एवं अन्य निकायों द्वारा अनुदत्त चिकित्सा अर्हताओं को मान्यता प्रदान करने की बात कही गई है। इसमें सरकारी अनुदानों, फीस, शास्तियों और प्रभारों को जमा करने के लिये राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग निधि गठित करने की भी बात कही गई है।