कर्नाटक में सियासी नाटक जारी है. सत्ताधारी कांग्रेस- जनता दल सेक्यूलर (जेडीएस) और बागी विधायकों के बीच सरकार बचाने, सरकार गिराने की रस्साकसी चल रही है. कर्ई दिनों से चल रहे कर्नाटक के इस नाटक का अंत कब होगा इस सवाल के साथ यह चर्चा भी शुरू हो गई है कि क्या बजट सत्र में सरकार गिर जाएगी?
कांग्रेस प्रदेश की अपनी गठबंधन सरकार बचाने के लिए बगावत कर विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने वाले बागियों को मनाने का पुरजोर प्रयास कर रही है, तो वहीं बागी विधायक किसी भी स्थिति में इस्तीफा वापस न लेने की जिद पर अड़े हैं. इस्तीफा मंजूर करने के लिए दबाव बना रहे विधायकों से विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार ने इस्तीफे का कारण लिखित में देने और यह भी लिखकर देने को कहा है कि वह स्वेच्छा से इस्तीफा दे रहे हैं.
विधायकों ने इन सबके बीच गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खट-खटा विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफे पर फैसला लेने का आदेश देने की अपील की, वहीं विधानसभा अध्यक्ष ने भी अदालत में इस्तीफे पर फैसला लेने के संबंध में कोई आदेश न देने की बात कही. अब शुक्रवार को अदालत का निर्णय जो भी हो, बंगालुरु से मुंबई तक सियासी तपिश कम होने के आसार नहीं नजर आ रहे. इसकी भी वजह है.
सरकार पर बहुमत साबित करने का दबाव बनाने में जुटी भाजपा
शुक्रवार से विधानसभा का मॉनसून सत्र भी शुरू हो रहा है. मौके की नजाकत को भांपते हुए विधानसभा चुनाव में 105 सीटों पर जीत दर्ज कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने और सरकार बनाने के बावजूद कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के कारण बेआबरू होकर सत्ता छोड़ने को मजबूर हुई भारतीय जनता पार्टी कुमारस्वामी सरकार पर सदन में बहुमत साबित करने का दबाव बनाने में जुट गई है.
दूसरी तरफ ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि भाजपा ने भी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री पद ऑफर किया है. हालांकि राजनीति के जानकार इसे खारिज करते हुए कहते हैं कि यदि विधायकों का इस्तीफा मंजूर होता है, तो भाजपा अकेले सरकार बना सकती है. वहीं कांग्रेस ने भाजपा को घेरने के लिए संसद में धरना दिया. बागियों की मान-मनौव्वल के साथ ही अन्यथा की स्थिति में कांग्रेस यह प्रयास कर रही है कि विधानसभा अध्यक्ष इन्हें अयोग्य ठहरा दें.
सदन में वोटिंग से पहले इस्तीफे पर फैसला प्राथमिकता
इसी सत्र में प्रदेश सरकार को बजट भी पेश करना है. ऐसे में भाजपा की मजबूत घेरेबंदी से जूझ रही कुमारस्वामी सरकार के लिए अपनों के बेगाने होने से संकट और गहरा हो गया है. भाजपा ने राज्यपाल से मुलाकात कर बहुमत साबित करने का निर्देश देने की मांग की है. राजनीति के जानकारों की मानें तो भाजपा बजट प्रस्तुत किए जाने के दौरान ही विधानसभा में वोटिंग करा सकती है. ऐसा हुआ तो बजट पास होगा नहीं. ऐसी स्थिति में सरकार गिर भी सकती है.
फूंक-फूंक कर कदम रख रही भाजपा
जानकारों की मानें तो भाजपा इस बार किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती. इसीलिए पार्टी ने कुमारस्वामी सरकार के खिलाफ मुहिम तो छेड़ दी है, लेकिन वह फूंक-फूंक कर कदम रख रही है. पार्टी बागी विधायकों का इस्तीफा मंजूर होने का इंतजार कर रही है. इस्तीफा मंजूर होने के बाद 225 सदस्यीय विधानसभा में 209 सदस्य रह जाएंगे. ऐसे में 105 विधायकों वाली पार्टी इस अंकगणित के अनुसार पूर्ण बहुमत के जादुई आंकड़े को छू लेगी.
ऐसे में माना यह जा रहा है कि रणनीति के तहत इस पूरे घटनाक्रम से पल्ला झाड़ रही भाजपा राज्यपाल आदि से मुलाकात कर धीरे-धीरे माहौल बनाने में जुटी है. वहीं दूसरी तरफ इस्तीफा देने वाले विधायक अपना इस्तीफा मंजूर कराने के प्रयास में सुप्रीम कोर्ट की शरण में पहुंच गए हैं. सर्वोच्च अदालत से लेकर विधानसभा अध्यक्ष तक, निर्णय चाहे जो भी हो लेकिन मॉनसून की बारिश के बीच कर्नाटक में सियासी तपिश कम होती नजर नहीं आ रही. सारे सवालों का जवाब आने वाला वक्त देगा, लेकिन वर्तमान सियासी घटनाक्रम कुमारस्वामी सरकार की विदाई की ओर ही संकेत कर रहा है.