क्या होता है आर्थिक सर्वे?
इकोनॉमिक सर्वे देश के आर्थिक विकास का लेखा-जोखा होता है. आसान शब्दों में कहें तो इससे देश की माली हालत का पता चलता है. मतलब ये कि साल भर में देश की इकोनमी ने कैसा प्रदर्शन किया, इसका ब्योरा दिया जाता है. आर्थिक सर्वे की एक और खास बात होती है. क्या? आने वाले दिनों में इकोनमी में कैसी रहेगी, इसका ब्योरा भी इसमें दिया जाता है.
इसे और आसान भाषा में कुछ ऐसे समझ सकते हैं. मान लेते हैं भारत एक नौकरीपेशा शख्स है. उसने साल भर बड़ी मेहनत की. फिर आया अप्रैजल का वक्त. अब अप्रैजल के वक्त उसके साल भर के कामकाज को परखा जाएगा. कैसा काम किया? कहां कमी रह गई? अब आगे उसके कामकाज में क्या सुधार की जरूरत है? इन सारे पहलुओं को परखा जाता है. आर्थिक सर्वे भी ऐसा ही होता है. अर्थव्यवस्था ने साल भर कैसा प्रदर्शन किया. इसे देखा जाता है.
क्या है इस बार के सर्वे में अहम?
इस बार का आर्थिक सर्वे मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने तैयार किया है. इसे बेहद आसान भाषा में समझ लीजिए-
सर्वे के मुताबिक?
साल 2019-20 में देश की विकास दर 7 फीसदी रह सकती है.
इसके मायने क्या हैं?
किसी भी देश की तरक्की जीडीपी की ग्रोथ से पता चलती है. जीडीपी माने ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट माने देश में एक साल के भीतर हुआ उत्पादन. मतलब ये हुआ कि भारत में उत्पादन और सेवाओं का हाल कैसा है? इसे जीडीपी के आंकड़ों से ही समझा जाता है. अगर जीडीपी के आंकड़े अच्छे हैं, तो देश की माली हालत अच्छी मानी जाती है. देश की हालत अच्छी होगी, तो सब काम ठीक ढंग से चलते हैं. कारोबार और रोजगार के अवसर बढ़ते हैं.
सर्वे के मुताबिक
साल 2025 तक 5 ट्रिलियन यानी 5 हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए भारत को 8 फीसदी की विकास दर चाहिए.
इसका मतलब क्या है?
1- मुख्यमंत्रियों के एक सम्मेलन में पीएम मोदी ने ऐसा ऐलान किया था. उन्होंने कहा था कि वे 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन यानी 5 हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना चाहते हैं. भारत की इकोनमी अभी करीब 190 लाख करोड़ रुपए यानी करीब 2.8 ट्रिलियन डॉलर की है. इसका मतलब ये है कि अर्थव्यवस्था को करीब-करीब दोगुना करना होगा.
2- अभी दुनिया की बड़ी इकोनमी में अमेरिका सबसे ऊपर है. उसकी अर्थव्यवस्था 21 ट्रिलियन से भी बड़ी है. इसके बाद चीन का नंबर है. चीन की इकोनमी अभी 14 ट्रिलियन की है. तीसरे नंबर पर जापान की अर्थव्यवस्था है. ये 5 ट्रिलियन के आस-पास है. फिर जर्मनी की 4 ट्रिलियन और ब्रिटेन की 2.9 ट्रिलियन की इकोनमी है. इसके बाद नंबर छह पर भारत की अर्थव्यवस्था है.
3- 5 ट्रिलियन की इकॉनमी बनने के लिए जरूरी है कि देश में बचत, निवेश और निर्यात का बेहतरीन चक्र बनाया जाए. आर्थिक सर्वे में भी चीन की मिसाल दी गई है. इसमें कहा गया है कि चीन ने बचत और निवेश हासिल करके आर्थिक तरक्की हासिल की है.
सर्वे के मुताबिक,
एनबीएफसी सेक्टर में दबाव है. इसकी वजह से ग्रोथ पर असर दिखाई दे रहा है.
इसका मतलब क्या है?
इसका मतलब ये है कि गैर बैंकिंग कंपनियां लोन देने में आनाकानी कर रही हैं. गैर बैंकिंग कंपनियां उन कंपनियों को कहा जाता है, जो बैंक की तरह काम करती हैं. बीते साल उनके सामने बड़ा संकट रहा. उनके पास कैश उपलब्ध नहीं है. इस वजह से वे ग्राहकों को ज्यादा लोन नहीं दे पा रही हैं. बैंकों के साथ-साथ कई गैर बैंकिंग कंपनियां भी कारोबारियों को भी लोन देती हैं. मगर फिलहाल नॉन बैंकिंग कंपनियां मुश्किल दौर से गुजर रही हैं. इस वजह से कार और बाइक के साथ-साथ पूरे ऑटो सेक्टर की लंका लगी हुई है. लोग कार और बाइक नहीं खरीद पा रहे हैं. इससे कारों की बिक्री में जबरदस्त गिरावट है.
सर्वे के मुताबिक,
साल 2019 में वित्तीय घाटे में कमी आई है. ये जीडीपी का 3.4 फीसदी रहा. इसे 3.3 फीसदी तक रखने का लक्ष्य था.
क्या मतलब है इसका?
इसका मतलब ये है कि वित्तीय घाटा कम रहने से सरकार पर दबाव कम होगा. वित्तीय घाटा कम होने का मतलब है आमदनी और खर्च में संतुलन. सरकार के खर्चे बढ़ जाते हैं तो वित्तीय घाटा बढ़ता है. इससे सरकार पर खर्च घटाने का दबाव रहता है. घाटे में संतुलन की वजह से सरकार अपनी योजनाओं को और बेहतर ढंग से चला सकेगी.
सर्वे के मुताबिक,
खाने पीने की चीजों के दाम कम होने की वजह से शायद किसानों ने पैदावार कम कर दी है. मगर 2018 की दूसरी छमाही से ही ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था में बढ़त आनी शुरू हो गई है.
क्या मतलब है इसका?
इसका मतलब ये है कि ग्रामीण भारत पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है. खेती-किसानी का संकट बड़ा होता जा रहा है. खेती को फौरन मदद देने की जरूरत है. किसान सम्मान निधि नाम की जो स्कीम सरकार ने शुरू की है. इसके तहत साल में 6,000 रुपए दिए जाने हैं. इस स्कीम का दायरा बढ़ाने की बात चल रही है. साथ ही खाने-पीने की चीजों के दाम भी ऐसे रहें, जिससे किसानों को फसल का उचित दाम मिल सके.
सर्वे के मुताबिक,
बैंकों का एनपीए कम हो रहा है. इसका फायदा अर्थव्यवस्था को मिलेगा.
क्या मतलब है इसका?
माना जाता है कि बैंकों का एनपीए एक वक्त में 11 लाख करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच गया था. इसमें लगातार कमी आ रही है. नया दिवालिया कानून आ जाने के बाद से बैंकों की वसूली में काफी तेजी आई है.
सर्वे के मुताबिक,
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में कमी आ रही है. इससे चालू साल में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी आ सकती है.
क्या मतलब है इसका?
भारत सरकार की एक बड़ी रकम तेल आयात पर खर्च होती है. कच्चे तेल की कीमतें कंट्रोल में रहने से भारत सरकार और तेल कंपनियों का खर्च तेल पर कम से कम रहेगा. इससे सरकार पर दबाव कम रहता है.