विदेश नीति पर पहले कार्यकाल में मोदी व्यापक रूप से सफल रहे, उम्मीद है कि वह इसे फिर से दोहराएंगे

आदर्श कुमार की कलम से …….वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी ने विश्व पटल पर अपने लिए तब विशेष सम्मान अर्जित किया जब उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसी दल को तीस साल बाद अपने दम पर बहुमत दिलाने का करिश्मा किया था। अब उनकी शानदार जीत न केवल उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करेगी, बल्कि इससे दुनिया के पहली पांत के नेताओं में उनकी स्थिति और मजबूत होगी। इसके साथ ही क्षेत्र में उनके समकक्ष और दुनियाभर की बड़ी शक्तियों के नेता उनके और भारत के साथ रिश्ते प्रगाढ़ करने के प्रयास करेंगे, क्योंकि निकट भविष्य में वह दुनिया की एक उभरती हुई शक्ति के निर्विवाद नेता रहने वाले हैं।

अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में उन्हें बाहरी मोर्चे विशेषकर पश्चिमी पड़ोस में चुनौतीपूर्ण हालात का सामना करना होगा। हमेशा की तरह पूरा ध्यान पाकिस्तान पर टिका रहेगा। हालांकि बालाकोट हमले के साथ मोदी ने पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को स्पष्ट रूप से संदेश दे दिया था कि भारत पाकिस्तान की धरती पर उसके खिलाफ पनप रहे आतंक का फन कुचलने के लिए अपने सैन्य बलों का प्रयोग करने से भी गुरेज नहीं करेगा। साथ ही मोदी ने पिछले तीन वर्षों से भी बढ़िया नीति अपनाए रखी है कि पाकिस्तान से भारत तब तक बातचीत नहीं करेगा जब तक कि वह भारत के खिलाफ आतंक की नीति नहीं छोड़ता।

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान वार्ता की गाड़ी को पटरी पर वापस लाना तो चाहते हैं, लेकिन वह यह आश्वासन नहीं दे रहे कि उनका देश भारत के खिलाफ आतंक फैलाने वाले लश्कर ए तोइबा और जैश ए मुहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को सहयोग देना बंद कर देगा। निश्चित रूप से ऐसे कोई संकेत नहीं हैं कि पाकिस्तान की भारत नीति निर्धारित करने वाली सेना भारत के खिलाफ अपनी परंपरागत दुश्मनी के भाव में कोई ढील तक देना चाहती है। ऐसे हालात में यह मोदी को फैसला करना होगा कि क्या वह इमरान खान की इच्छा को देखते हुए आतंक के मसले पर बिना गारंटी के ही वार्ता शुरू करेंगे। इसमें पाकिस्तान के साथ उनके कड़वे अनुभव ही काफी होने चाहिए कि वह उसे लेकर कोई झूठी उम्मीद न रखें। भले ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय उनसे पाकिस्तान को एक और अवसर देने की दुहाई दे, लेकिन उन्हें ऐसा करने के मोह से बचना चाहिए।

अफगानिस्तान के हालात और जटिल बनते जा रहे हैं। वर्हां ंहसा रुकने का नाम नहीं ले रही है। अमेरिका वहां समाधान तलाशने के लिए बेचैन है और इसके लिए तालिबान के साथ बातचीत भी कर रहा है, लेकिन तालिबान अफगान सरकार के साथ संघर्षविराम को लेकर कोई लचीलापन नहीं दिखा रहा है और अपनी कुछ खास मांगों पर अड़ा हुआ है। किसी समाधान को लेकर जगी शुरुआती उम्मीदें भी धूमिल पड़ रही हैं। मोदी ने तालिबान के साथ कोई कड़ी नहीं जोड़ी है जबकि यह संगठन अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति हासिल करता जा रहा है। तालिबान के लेकर भारत की आपत्तियां वाजिब हैं, लेकिन कूटनीति का यह तकाजा भी है कि उसमें व्यावहारिकता से काम लिया जाए। तालिबान से संपर्क का यह अर्थ नहीं होगा कि भारत उसकी विचारधारा का समर्थन करता है और न ही इससे अफगान सरकार को भारत का समर्थन ही कमजोर होगा।

मोदी ने पश्चिम एशिया की उठापटक में न पड़कर बहुत समझदारी दिखाई। साथ ही साथ उन्होंने इस क्षेत्र के सभी देशों से बढ़िया द्विपक्षीय रिश्ते बनाए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सख्त ईरान नीति के चलते जरूर इसमें कुछ पेंच फंस गए हैं। ईरान पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों ने भारत के लिए ईरान से कच्चे तेल की खरीद में अवरोध पैदा कर दिया है। अमेरिका और ईरान के बीच कुछ हिंसक संघर्ष छिड़ने की भी आशंका है। इससे खाड़ी क्षेत्र में कुछ उथलपुथल मचेगी जहां लाखों भारतीय रहते हैं और यह क्षेत्र भारतीय ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है।

भारत ट्रंप की ईरान नीति को तो नहीं प्रभावित कर सकता, लेकिन उसे सभी पक्षों के साथ संवाद कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी तरह का हिंसक संघर्ष न छिड़े। इससे केवल यह क्षेत्र ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया बड़ी मुश्किल में फंस जाएगी। साथ ही मोदी को नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे उन पड़ोसियों पर भी ध्यान देना होगा जहां चीन अपनी पैठ बनाने में लगा है। इन देशों को यह भरोसा दिलाना जरूरी है कि भारत कभी उनके आंतरिक मामलों में दखल नहीं देगा, लेकिन वे भी अपनी सुरक्षा को लेकर सचेत रहें।

चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने मोदी के दूसरे कार्यकाल में भारत-चीन संबंधों को नए क्षितिज पर ले जाने की उम्मीद जताई है। मगर समस्या यह है कि चीन हमेशा भारत के मामले में टांग अड़ाता है। चाहे सीमा विवाद हो, एकतरफा व्यापार या परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत का प्रवेश, चीन भारत को परेशान करता रहता है। हाल में मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित कराने के मामले में भी उसने अमेरिका द्वारा डाले गए दबाव के बाद ही समर्पण किया। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव सहित पाकिस्तान के साथ चीन की जुगलबंदी भारत की सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। चीन को लेकर मोदी ने चौकसी भी बरती है। उन्होंने जहां चीन से सहयोग बढ़ाया तो सुरक्षा मसलों को लेकर सावधान भी रहे। साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उन्होंने बिना किसी गुट में पड़े जापान जैसे सहयोगी बनाए।

अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश है। उसके पास तकनीक का वह स्नोत है जो भारत के विकास के लिए बेहद अहम है। मोदी ने इस रिश्ते को बखूबी ढंग से आगे बढ़ाया है। उन्होंने इसमें द्विपक्षीय व्यापार और अमेरिकी आव्रजन नीतियों जैसे टकराव के बिंदुओं को आड़े नहीं आने दिया। ट्रंप कुछ अस्थिर स्वभाव के नेता हैं जिनके साथ ताल बिठाना कुछ मुश्किल है। इसके लिए मोदी ने कूटनीतिक धैर्य का परिचय दिया और अमेरिका के मामले में यह जरूरी भी था। यह बात अलग है कि अमेरिका को भी भारत की उतनी ही जरूरत है जिसे वह स्वीकार भी करता आया है।

यूरोपीय संघ और रूस के साथ रिश्तों में भी मोदी को संतुलन साधना होगा। रक्षा, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में रूस की अहम भूमिका है। मेक इन इंडिया कार्यक्रम के लिए भी ये देश महत्वपूर्ण हैं। वर्हीं ंहद-प्रशांत क्षेत्र, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका पर भी निरंतर रूप से ध्यान देना होगा। मोदी ने पहले कार्यकाल में इन क्षेत्रों पर ध्यान देकर सही किया जिसे निरंतर बनाए रखना होगा।

जहां भारत के वैश्विक हितों का विस्तार हो रहा है तो उसके साथ ही कूटनीतिक एवं सुरक्षा के मोर्चे पर सरकारी मशीनरी और संस्थानों की भी सही दिशा और गति चाहिए। देश सेवा में भारतीय विदेश सेवा ने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है, लेकिन अब उसमें विस्तार जरूरी हो गया है जिसमें नए क्षेत्रों और विशेषज्ञों को भी जोड़ा जाए। साथ ही सुरक्षा, प्रतिरक्षा एवं विदेश नीति से जुड़े संस्थानों के बीच समन्वय भी और बेहतर होना चाहिए। विदेश नीति के मोर्चे पर अपने पहले कार्यकाल में मोदी व्यापक रूप से सफल रहे हैं। ऐसे में कोई संदेह नहीं कि आने वाले वर्षों में वह उस सफलता को फिर से दोहराएंगे।

 

 

अब हमारी खबरें यूट्यूब चैनल पर भी  देखें । नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें और हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करें ।

https://www.youtube.com/channel/UC4xxebvaN1ctk4KYJQVUL8g

अब हमारी ख़बरें एप्लीकेशन पर भी उपलब्ध हैं । हमारा एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर से अभी डाउनलोड करें और खबरें पढ़ें ।

https://play.google.com/store/apps/details?id=com.dastak24.newsapp&hl=en