लोकसभा चुनाव 2019 के पांच चरण का मतदान हो गया है, जबकि छठे चरण का प्रचार भी थम चुका है. जिस तरह से विपक्षी दल आश्वस्त नजर आ रहे हैं, सियासी जानकार दावा करने लगे हैं कि किसी एक पार्टी को इन चुनावों में अपने दम पर बहुमत नहीं मिलने वाला. अगर ये भविष्यवाणी सच साबित होती है तो केंद्र में सरकार के गठन को लेकर देश के तीन अलग- अलग राज्यों के तीन बड़े नेता किंगमेकर साबित हो सकते हैं.
इस बार के लोकसभा चुनाव में ज्यादातर राजनीतिक दलों ने अपने सियासी पत्ते खोल दिए हैं कि वह किस खेमे के साथ हैं. जो दल यूपीए या एनडीए के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ रहे उनके तेवर देखकर भी अनुमान लगाया जा सकता है कि वे चुनाव नतीजे आने और त्रिशंकु लोकसभा होने पर किस पाले में जाएंगे और किस में नहीं. लेकिन, अगर बात करें ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजेडी प्रमुख नवीन पटनायक, तेलंगाना के सीएम व टीआरएस प्रमुख केसीआर और वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष जगन मोहन रेड्डी की तो इन नेताओं ने अपने इरादे जाहिर नहीं किए हैं. ऐसे में इन दलों की तिकड़ी पर ही सबकी निगाहें होंगी.
बता दें कि ओडिशा में 21, आंध्र प्रदेश में 25 और तेलंगाना में 17 सीटें हैं. इस तरह से इन तीनों राज्यों से कुल मिलाकर 63 सांसद लोकसभा पहुंचते हैं. इस बार के चुनाव में ओडिशा में बीजेडी, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस और तेलंगाना में टीआरएस अकेले चुनाव लड़ रही हैं. माना जा रहा है कि इन राज्यों की ज्यादातर सीटों पर इन्हीं तीन दलों का कब्जा रहेगा. ऐसे में नेताओं की ये तिकड़ी सत्ता की किस्मत का फैसला तय करने में किंगमेकर की भूमिका निभा सकती है.
2014 के चुनाव नतीजों को देखें तो बीजेडी 20, वाईएसआर कांग्रेस 9 तो टीआरएस 11 सीटें जीतने में सफल रही थी. यानी तीनों दलों ने कुल 63 में से 40 सीटें जीती थीं. इस बार के चुनाव में टीआरएस ने तेलंगाना में तो वाईएसआर कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में अपना जनाधार बढ़ाया है, वहीं ओडिशा में बीजेडी की स्थिति कमोबेश वही बनी हुई है.
जगन मोहन रेड्डी
आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है. सूबे में दोनों पार्टियां बिना किसी गठबंधन के चुनाव मैदान में उतरी थीं. हालांकि कांग्रेस और बीजेपी भी यहां चुनाव लड़ रही हैं, लेकिन मुख्य लड़ाई जगन रेड्डी और नायडू के बीच मानी जा रही है. राज्य की 25 लोकसभा और 175 विधानसभा सीटों पर पहले चरण में 11 अप्रैल को वोट डाले गए थे.
एनडीए से अलग होने के बाद चंद्रबाबू नायडू लगातार मोदी के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने का बीड़ा उठाए हुए हैं. जगन मोहन रेड्डी की टीडीपी से राजनीतिक लड़ाई है. ऐसे में दोनों का एक ही खेमे में रहना मुश्किल है. नायडू की जिस तरह से कांग्रेस से नजदीकियां बढ़ी है, उसे देखते हुए जगन मोहन दूसरे खेमे में जुट सकते हैं. हालांकि जगन ने साफ कह दिया है कि जो भी पार्टी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देगी, उसे वो समर्थन करेंगे.
नवीन पटनायक
ओडिशा में नवीन पटनायक की बीजेडी अकेले चुनाव मैदान में है. यहां बीजेडी का मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस दोनों से है. बीजेडी ने अपने गठन से लेकर अभी तक कांग्रेस को कभी समर्थन नहीं किया है जबकि बीजेपी के साथ मिलकर वह चुनाव लड़ चुकी है और सरकार में भी दोनों पार्टियां साथ रह चुकी हैं. 2009 के बाद से बीजेडी अकेले चुनावी मैदान में उतरी है. बीजेडी ने बीजेपी से भी उतनी ही दूरी बनाए रखी जितनी वो कांग्रेस से रखती रही है.
2014 के लोकसभा चुनाव में ओडिशा की 21 में से 20 सीटें बीजेडी जीतने में सफल रही थी. मोदी सरकार कई मौकों पर नवीन पटनायक के साथ खड़ी नजर आई है. हालांकि इस बार ओडिशा में बीजेडी के खिलाफ जिस मजबूती से बीजेपी चुनाव लड़ रही है. माना जा रहा है कि पटनायक कांग्रेस और बीजेपी से समान दूरी बनाए रखने की नीति पर कायम रख सकते हैं. इसके बावजूद जिस पार्टी की केंद्र में सरकार बनने की संभावना होगी और उस पार्टी के साथ खड़े नजर आना उनके लिए ज्यादा फायदेमंद होगा.
के चंद्रशेखर राव
तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की पार्टी टीआरएस अकेले चुनावी मैदान में है, जिसका बीजेपी और कांग्रेस से सीधा मुकाबला है. पांच चरण की वोटिंग के बाद केसीआर गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी सरकार के गठन की कवायद में जुट गए हैं. उन्होंने केरल के मुख्यमंत्री और माकपा नेता पिनरई विजयन से मुलाकात करके राजनीतिक हालात पर चर्चा की है.
तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटें हैं. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे देखकर लगता है कि तेलंगाना की लोकसभा सीटों पर केसीआर का जादू सिर चढ़कर बोल सकता है. इस तरह से अगर किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलता है तो केसीआर किंगमेकर की भूमिका में होंगे. पटनायक और जगन की तरह केसीआर खुला विकल्प रखेंगे.