कभी सजा देने के लिए इस्तेमाल होती थी साइकिल

आप मानो या न मानो लेकिन यह सत्य है कि आज की सबसे सस्ती व लोकप्रिय सवार साइकिल किसी जमाने में सजा देने के काम आती थी। सन 1890 में जब ईरान के तत्कालीन शाह इंग्लैंड की राजकीय यात्रा पर गए थे तो वहां की महारानी विक्टोरिया ने उन्हें एक साइकिल तोहफे में दी थी। ईरान का शाह उस साइकिल को अपने देश में ले आया। ईरान पहुंच कर शाह ने स्वयं साइकिल की सवारी का प्रयास किया, लेकिन बहुत सी चोंटे खाकर भी वह इसमें असफल रहा।

आखिर साइकिल को शैतान की रचना घोषित करके शाह ने उसको महल के कमरे में रखवा दिया। कालांतर में न जाने उसके दिमाग में क्या आया कि उसने इंग्लैंड से लाई गई साइकिल को हरम की स्त्रियों को सजा देने के लिए इस्तेमाल करने का फैसला किया। इसके बाद हरम में ऐसी स्थिति बन गई कि साइकिल के नाम से ही वहां की स्त्रियों में एक आतंक सा व्याप्त हो जाता था। पहले शाह के हरम में किसी गलती पर स्त्रियों को बेंत अथवा कोड़े से मारा जाता था लेकिन इसकी जगह अब साइकिल ने ले ली। जब भी हरम में कोई स्त्री गलती करती तो शाह साइकिल को हरम में लाने का हुक्म देता। साइकिल को देखते ही हरम की स्त्रियों के खौफ से पसीने छूट जाते।

शाह बारी-बारी से गलती करने वाली स्त्रियों को साइकिल पर सवार हो उसका चलाने का हुक्म देता मगर बेचारी हरम की नर्म नाजुक स्त्रियां साइकिल चलाना क्या जानें। वे बार-बार सवारी करने की कोशिश करतीं और धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ती। यह बार-बार का गिरना उनके लिए एक खौफनाक यातना बन जाता था। वे शाह के सामने दया के लिए गिड़गिड़ाती और भविष्य में कोई गलती न करने का वायदा करतीं। इस प्रकार साइकिल शाह के हरम में अनुशासन कायम करने में सहायक सिद्ध हुई।

उन्नीसवीं शताब्दी के आखिरी दशक में फ्रांस के स्कूलों में भी विद्यार्थियों को दंडित करने के लिए साइकिल का इस्तेमाल किया गया था। नानटेस के कुछ स्कूलों में विद्यार्थियों को सजा के रूप में साइकिल पर मैदान के इतने चक्कर लगाने के लिए मजबूर किया जाता था कि वे थककर निढाल हो जाएं।

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