क्या महात्मा गांधी ने रखा था कांग्रेस अध्यक्ष के लिए जेपी के नाम का प्रस्ताव?

क्या प्रसिद्ध समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने उनका नाम कांग्रेस अध्यक्ष के लिए प्रस्तावित किया था? यह एक ऐसा सवाल है जो राजनीति की किताब में तो मिल जाएगा लेकिन इसे लेकर बातचीत कम ही होती है। दरअसल, जयप्रकाश नारायण ने मातृभूमि की मुक्ति के एक आंदोलन के रूप में अपनी भूमिका के चलते 1942 तक अग्रणी नायक की ख्याति पा ली थी। गांधी उनकी योग्यता से प्रभावित हुए और कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए जेपी के नाम का प्रस्ताव दिया लेकिन गांधी जी के इस प्रस्ताव को कांग्रेस कार्यकारिणी ने अस्वीकार कर दिया था।इसके बाद कांंग्रेस ने 1948 में यह घोषणा कर दी कि किसी और दल का सदस्य कांग्रेस में नहीं रह सकता।  हालांकि, गांधी जी के जेपी के नाम को अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तुत करने को लेकर अलग-अलग विचार हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर नचिकेता सिंह कहते हैं कि इसकी कोई पुष्टि नहीं है कि गांधी जी ने ऐसा किया था। न ही इस बात का दस्तावेजीकरण है। लेकिन, राजनीति की कई किताबों में यह लिखा गया है। उस दौरान के कई इतिहासकार ऐसा मानते भी हैं। ऐसे में आप इसे लेकर सही-सही नहीं कह सकते।

..जब लोहिया के साथ मिलकर जेपी ने बनाई पार्टी 

यहीं से जयप्रकाश नारायण और कांग्रेस के संबंध विच्छेद की शुरुआत हुई। इसके बाद 1948 से 1950-51 के बीच जयप्रकाश नारायण ने राम मनोहर लोहिया के साथ मिलकर सोशलिस्ट पार्टी के पुर्नगठन का काम किया। 1952 के पहले आम चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। लोकसभा चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी ने 12 सीटें ही जीती। इसके बाद जेपी की कोशिश के चलते ही 1952 में किसान मजदूर प्रजा पार्टी और समाजवादी पार्टी में गठजोड़ हुआ और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का जन्म हुआ। जवाहरलाल नेहरू के करीबी और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष आचार्य कृपलानी ने कांग्रेस से अलग होकर 1951 में किसान मजदूर पार्टी बनाई थी।

किसान मजदूर पार्टी ने 67 साल पहले हुए भारत के पहले आम चुनाव में 16 सीटों पर चुनाव लड़ा था और पार्टी के खाते में 9 सीटें भी आई थी। लेकिन चुनाव के बाद पार्टी ने सोशलिस्ट पार्टी का हाथ थाम लिया और नई पार्टी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का जन्म हुआ।

1953 में कांग्रेस में वापस विलय की कोशिश और जेपी का त्यागपत्र

भारत के पहले आम चुनाव के बाद ही प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के कांग्रेस में विलय की कोशिश शुरू हुई। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को कांग्रेस के निकट लाने का प्रयास किया लेकिन अधिकांश समाजवादी नेताओं के विरोध के चलते बातचीत असफल हो गई। इसके बाद 19 अप्रैल 1954 को जयप्रकाश नारायण ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया। इसी के साथ जेपी ने दलगत राजनीति से विदा ले ली। वह दलीय प्रणाली के विरोध में आ गए और सर्वोदय आंदोलन के तहत अपने लिए नई भूमिका चुनी।

कांग्रेस के खिलाफ पूर्ण क्रांति का आवाह्न

1954 के 20 साल बाद एक बार फिर जेपी, सक्रिय आंदोलनात्मक राजनीति के क्षेत्र में उतरे। संपूर्ण क्रांति का आवाह्न करने वाले जेपी ने 5 जून 1974 को कांग्रेस की भ्रष्ट सरकार के  खिलाफ आंदोलन शुरू किया। पटना में 50 हजार विधार्थियों को संबोधित करते हुए जेपी ने कहा कि यह एक पूर्ण क्रांति है। 1975 में आपातकाल के दौरान गिरफ्तार हुए और 1976 में रिहा हुए। जेपी ने 1977 में इंदिरा गांधी विरोधी शक्तियों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी के चलते 1977 में एक संयुक्त मोर्चा सामने आया।

रूसी साम्यवाद के प्रति विरक्त हो गए थे जेपी 

जयप्रकाश नारायण मार्क्सवादी सम्मोहन से प्रभावित शुरुआती दिनों में क्रांति के मार्क्सवादी दर्शन से बड़े प्रभावित हुए। इसी वजह से वह मार्क्सवादी क्रांति को भारत की आजादी के लिए शीघ्र परिणामदायी और प्रभावी मानते थे। इसकी पीछे एक वजह रूस में लेनिन की सफलता का प्रभाव भी था। लेकिन, मार्क्सवाद से प्रभावित होने के बाद भी जयप्रकाश नारायण कभी रूसी साम्यवाद के समर्थक नहीं बने। वह रूस में हुए बोल्शेविक अत्याचारपूर्ण कार्रवाइयों से इतने दुखी हुए कि उन्हें रूसी साम्यवाद से विरक्ति हो गई। 1940 में उन्होंने रूसी साम्यवाद की प्रवृत्ति की निंदी भी की।   

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