जातिगत जनगणना क्या है इसका इतिहास और विवाद , कैसे होती है जातियों की गिनती ?

केंद्र सरकार ने एक बड़ी घोषणा की है। आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति के आधार पर भी लोगों की गिनती की जाएगी। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट की बैठक के बाद यह जानकारी दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में यह फैसला लिया गया। इस कदम को सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है, हालांकि इससे राजनीतिक विवाद भी बढ़ सकते हैं।

कैबिनेट के फैसले की जानकारी देते हुए अश्विनी वैष्णव ने कहा, ”प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने फैसला किया है कि अगली जनगणना में जाति जनगणना को शामिल किया जाएगा। यह फैसला समाज के मूल्यों और हितों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।” विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, ”कांग्रेस ने सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए जाति के मुद्दे उठाए, लेकिन हमारा उद्देश्य सामाजिक ढांचे को मजबूत करना है, उसे नुकसान पहुंचाना नहीं।” वैष्णव ने दावा किया कि जाति जनगणना से सामाजिक एकता पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा।

जाति जनगणना का महत्व

जाति जनगणना में विभिन्न जातियों और उपजातियों की जनसंख्या, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा स्तर और संसाधनों में हिस्सेदारी के बारे में डेटा एकत्र किया जाएगा। यह डेटा सरकार को वंचित समुदायों के उत्थान के लिए आरक्षण नीतियों, सामाजिक कल्याण योजनाओं और लक्षित कार्यक्रमों को तैयार करने में मदद करेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह डेटा विशेष रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण और संसाधन वितरण को तर्कसंगत बनाने में उपयोगी होगा, जो वर्तमान में 1931 की जनगणना के पुराने डेटा पर आधारित है।

तिहास और पृष्ठभूमि

भारत में जाति जनगणना का इतिहास ब्रिटिश काल से शुरू होता है। 1872 से 1931 तक हर जनगणना में जाति आधारित डेटा एकत्र किया गया। आजादी के बाद 1951 से केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की ही गणना की गई। 2011 में UPA सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) कराई, लेकिन इसके डेटा को पूरी तरह से सार्वजनिक नहीं किया गया। लंबे समय से विपक्षी दल, खासकर राहुल गांधी और राजद, जेडीयू और डीएमके जैसी क्षेत्रीय पार्टियां जाति जनगणना की मांग कर रही हैं।

विवाद और चुनौतियाँ क्या है?

जाति जनगणना के पक्ष और विपक्ष दोनों में तर्क हैं। समर्थक इसे सामाजिक समानता के लिए ज़रूरी मानते हैं, जबकि आलोचक इसे जातिगत तनाव और राजनीतिक दुरुपयोग का कारण मानते हैं। डेटा की गोपनीयता और उसका उचित उपयोग भी एक बड़ी चुनौती होगी। बिहार जैसे राज्यों में किए गए जाति सर्वेक्षणों को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जो केंद्र के सामने भी आ सकती हैं।

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