दिल्ली के पटपड़गंज को 10 साल बाद नया विधायक मिलना तय, कैंडिडेट के बीच रोचक होगा इस बार का मुकाबला ?

पिछले एक दशक से ईस्ट दिल्ली की पटपड़गंज विधानसभा सीट की गिनती दिल्ली की सबसे हाई प्रोफाइल सीटों में होती रही है। पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया 2013 से लगातार तीन बार यहीं से चुनाव जीतकर आम आदमी पार्टी के विधायक बने। हालांकि, इस बार पार्टी ने उनकी सीट बदल दी है और उन्हें जंगपुरा से उम्मीदवार बनाया है। उनकी जगह हाल ही में पार्टी जॉइन करने वाले मोटिवेशनल स्पीकर, टीचर और कोचिंग सेंटर संचालक अवध ओझा पटपड़गंज से ‘आप’ के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। वहीं, कांग्रेस ने अपने पूर्व विधायक अनिल चौधरी को फिर से मैदान में उतारा है।

बीजेपी ने अब तक अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है,लेकिन इतना तय है कि 10 साल बाद पटपड़गंज को नया विधायक मिलेगा। ऐसे में सबकी नजर इसी बात पर होगी कि वह किस पार्टी का होगा? पिछली बार की तरह इस बार भी मुकाबला कड़ा और रोचक होने की उम्मीद है। ऐसे में इस सीट पर सबकी नजर रहेगी।

एरिया प्रोफाइल

पटपड़गंज विधानसभा क्षेत्र मिक्स आबादी वाला है। यहां एक तरफ आईपी एक्सटेंशन, मयूर विहार फेज-1 और मयूर विहार एक्सटेंशन स्थित सैकड़ों ग्रुप हाउसिंग सोसायिटियां हैं, तो दूसरी तरफ फेज-1 और फेज-2 के डीडीए फ्लैट्स का कुछ हिस्सा भी इसमें आता है। यहां पटपड़गंज, चिल्ला, कोटला और खिचड़ीपुर जैसे अर्बन विलेज भी हैं, तो ईस्ट विनोद नगर, वेस्ट विनोद नगर, शशि गार्डन, आचार्य निकेतन, प्रताप नगर, पी पांडव नगर, मंडावली, कल्याणवास जैसी कॉलोनियां भी हैं। इसके अलावा जवाहर मोहल्ला, आदर्श मोहल्ला, हरिजन बस्ती, खोखा पटरी कैंप, रामप्रसाद बिस्मिल कैंप, महात्मा गांधी कैंप जैसी झुग्गी बस्तियां भी हैं।

जीत-हार में किसकी कैसी भूमिका?

शहरी इलाका होने और मिक्स आबादी के चलते यहां जीत-हार के लिए कोई एक फैक्टर काम नहीं करता है। ना ही कोई बड़ा जातिगत समीकरण यहां हावी होता दिखाई देता है। ज्यादातर वोटर अपने उम्मीदवार, पार्टियों के प्रति अपने झुकाव, राजनीतिक दलों के द्वारा किए गए चुनावी वादों या मौजूदा विधायक के परफॉर्मेंस के आधार पर वोट करते रहे हैं। जातिगत समीकरणों की बात करें, तो यहां करीब 15 प्रतिशत पूर्वांचली और लगभग इतने ही प्रतिशत उत्तराखंडी वोटर हैं। वहीं, गुर्जर वोटरों की तादाद भी 8 से 10 प्रतिशत के बीच है और लगभग इतने ही दलित वोटर्स भी हैं।

क्या है यहां के चुनावी मुद्दे?

पटपड़गंज में पीने के साफ पानी की समस्या एक बड़ा गंभीर मुद्दा है। केवल झुग्गी बस्तियों और अनधिकृत कॉलोनियों में ही नहीं, बल्कि डीडीए फ्लैट्स और अपार्टमेंट में भी लोग गंदे पानी की सप्लाई को लेकर अक्सर शिकायत करते रहते हैं। कई जगह तो लोग साफ पानी खरीद कर पीने को मजबूर हैं। झुग्गी बस्तियों और अनधिकृत कॉलोनियों में सफाई व्यवस्था और सीवर की समस्या भी एक बड़ा मुद्दा है। स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में भी स्थिति लचर है। इलाके में कोई बड़ा सरकारी अस्पताल नहीं है।

गरीब तबके के ज्यादातर लोग पास के लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल पर निर्भर हैं, जहां भारी भीड़ रहती है। कॉलोनियों में बारिश के समय जलभराव एक बड़ी समस्या है। कई जगह सड़कों की हालत भी खस्ता है। हाइवे से सटे कुछ इलाकों में ट्रैफिक जाम की भी समस्या है। इलाके में ड्रग्ज की बिक्री और स्नेचिंग की बढ़ती वारदातें भी लोगों की चिंता का विषय है।

वोटरों का प्रोफाइल

इसी साल हुए लोकसभा चुनावों के समय यहां वोटरों की कुल तादाद 2,22,405 थी। इनमें 1,20,686 पुरुष, 1,01,703 महिलाएं और 16 थर्ड जेंडर के वोटर शामिल थे। समरी रिविजन के बाद यहां भी काफी संख्या में नए वोटरों के नाम वोटर लिस्ट में जुड़े हैं। ऐसे में विधानसभा चुनाव तक यहां वोटरों की संख्या बढ़कर करीब सवा 2 लाख के आस-पास पहुंच सकती है।

राजनीतिक समीकरण
आम आदमी पार्टी के गठन से पहले यह सीट लंबे समय तक कांग्रेस के कब्जे में रही। शीला दीक्षित के शासन काल में परिसीमन के बाद 2008 में कांग्रेस के अनिल चौधरी और उनसे पहले अमरीश गौतम दो बार यहां से विधायक रहे। उस समय यह रिजर्व सीट थी। बीजेपी ने केवल एक बार 1993 में यह सीट जीती थी। हालांकि, पिछली बार यहां मुकाबला बहुत कड़ा रहा था। मनीष सिसोदिया ने 2015 में 28 हजार वोट से यहां चुनाव जीता था, जो इस सीट पर जीत का अब तक का सबसे बड़ा मार्जिन था, लेकिन पिछले चुनाव में वह महज 3 हजार वोट के अंतर से ही सीट बचा पाए थे। यहां बीएसपी भी हमेशा से अपना उम्मीदवार खड़ा करती रही है।

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