शांति, समरसता और एकता के लिए जरूरी है समता : डॉ. राम सिंह

आज अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस है| आवश्यकता है कि आज हम विश्व, राष्ट्र और समाज में फ़ैली अशांति के कारणों को समझें और उनके समाधान का प्रयास करें ताकि शांति की स्थापना की जा सके| तीनों स्तरों पर शांति की स्थापना अत्यंत जरूरी है क्योंकि शांति के अभाव में कोई भी समाज और राष्ट्र और अंततः विश्व विकास नहीं कर सकता है|

देशों के मध्य अशांति का कारण संसाधनों को हड़पने की होड़ और संसाधनों का असमान वितरण है। जिन देशों ने औपनिवेशीकरण किया था, सम्पत्ति का एक बड़ा हिस्सा उनके पास है। आज भी अन्यान्य तरीकों से दूसरे देशों के संसाधनों को हड़पने के प्रयास जारी हैं। शक्तिशाली देश कमजोर देशों की सहायता करने के बजाय उनके संसाधनों को हड़पने के षडयंत्र और कुचक्र रचते रहते हैं। संसार में गरीबी का कारण संसाधनों की कमी नहीं, बल्कि संसाधनों का असमान वितरण है। इसका कारण उपभोक्तावादी संस्कृति और मनुष्य की स्वार्थी प्रवृत्ति है। यदि शक्तिशाली देश कमजोर देशों की सहायता करें तो विश्व में सहयोग और भाईचारे की भावना का प्रसार होगा, संसाधनों के समान वितरण में सहायता मिलेगी जिससे समानता स्थापित होगी और विश्व में शांति की स्थापना हो सकेगी।

विभिन्न देशों के अंदर शांति और उसके फलस्वरूप मिलने वाली मजबूती तब तक सम्भव नहीं है, जब तक देशों में सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनैतिक समानता स्थापित नहीं हो जाती है। शोषक जिस समानता विहीन समरसता की विचारधारा पर चलना चाह रहे हैं, वह सम्भव नहीं है। समता द्वारा ही समरसता, समानता और शांति सम्भव है। पूर्ण समानता स्थापित करना और अल्पकाल में लगभग समानता स्थापित करना सम्भव नहीं है किन्तु अवसर की समानता तो दी ही जा सकती है। उसी तरह से, जैसे शक्तिशाली देश कमजोर देशों की सहायता कर सकते हैं। किन्तु वैश्विक षडयंत्रों की तरह देशों के अंदर भी शक्तिशाली लोग अपने संसाधनों के बल पर कमजोरों के शोषण की विभिन्न चालें चलते रहते हैं।

भारत में अवसर की समानता के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है किन्तु सत्ता और संसाधन दोनों पर शक्तिशाली लोगों का कब्जा होने के कारण, दोनों के माध्यम से अवसर की समानता को खत्म करने के प्रयास जारी रखे हुए हैं। वे इसे समाप्त करने के प्रयास खुले तौर पर नहीं बल्कि छिपे तौर पर षडयंत्रों की तरह करते हैं। इसका कारण देश में बहुमत का राज होना है और बहुमत में वे हैं जिन्हें अवसर की समानता की जरूरत है। यदि अवसर की समानता को खुले तौर पर खत्म करेंगे तो कमजोरों को उनकी कारगुजारियां पता चल जाएंगी और वे शोषकों को सत्ता से बाहर कर सकते हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो संयुक्त राज्य अमेरिका में अवसर की समानता को ईमानदारी पूर्वक और अच्छे से लागू किया गया है और लागू किया जा रहा है क्योंकि वहां पर जिन्हें अवसर की समानता की आवश्यकता है, वे अल्पमत में हैं। यदि भारत के शक्तिशाली लोगों की तरह षडयंत्र रचते तो आज जितनी समानता अमेरिका में है, न होती क्योंकि कमजोर लोग तो सत्ता में कभी पहुंचेगे ही नहीं और दबाव भी अधिक नहीं डाल पाएंगे। शायद संयुक्त राज्य अमेरिका ने गृहयुद्ध की विभीषिका से सीख लिया है और अवसर की समानता प्रदान करने की ओर तत्पर है। भारत के शक्तिशाली लोगों को भी ईमानदारी से अवसर की समानता प्रदान करनी चाहिए, अन्यथा यदि वे कुचक्र चलते रहे और कमजोरों को उनके षडयंत्रों का पता चल गया तो यहाँ भी गृहयुद्ध या उसके जैसा संघर्ष सम्भव है जिसमें शक्तिशाली लोगों को बहुत हानि उठानी पड़ेगी क्योंकि यहाँ पर कमजोरों की जनसंख्या बहुत अधिक है। इस प्रकार शोषकों को अपने दीर्घकालीन हित संरक्षण के लिए भी अल्पकालीन स्वार्थ को छोड़कर अवसर की समानता अर्थात समता प्रदान करनी चाहिए। हालांकि कमजोरों को इस तरह के उपद्रव करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि बहुमत में होने के कारण वे सत्ता में पहुंचकर अपने अनुसार नीतियों का निर्माण कर सकते हैं।

भारत में आज कमजोरों के अंदर भी संघर्ष चल रहा है क्योंकि उनके अंदर भी सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक विषमता विद्यमान है। इस आंतरिक संघर्ष को आरक्षण के उप-वर्गीकरण और राजनैतिक हिस्सेदारी देकर ही समाप्त किया जा सकता है। राजनैतिक हिस्सेदारी के लिए राजनैतिक दलों में संगठन और विचारधारा, दोनों स्तरों पर लोकतंत्र होना जरूरी है अर्थात् दल पूर्ण लोकतांत्रिक होना चाहिए। इस आंतरिक कलह को समाप्त करने के बाद ही एकता सम्भव है जिसके माध्यम से सत्ता तक पहुंचकर अपने हितों के अनुसार नीति निर्माण सम्भव है। कहावत है कि “परिवार की आंतरिक कलह का समाधान करके ही, पड़ोसी से लड़ाई में जीत हासिल की जा सकती है” या फिर “सड़क पर कितने भी कंकड़ हों, आपको परेशान नहीं कर पाएंगे किन्तु जूते में एक भी कंकड़ आ गया तो आपको दो कदम भी नहीं चलने देगा।” इसलिए जूते के अंदर के कंकडों अर्थात् कमजोरों को अपने आंतरिक संघर्षों को समाप्त करने पर पहले विचार करना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि शोषित भी अपनी स्वार्थी प्रवृत्ति का त्याग करके अवसर की समानता अर्थात समता के सिद्धांत में विश्वास करते हुए अति कमजोरों को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनैतिक क्षेत्र में हिस्सेदारी दें।

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