उत्तर प्रदेश का एक विधेयक इस वक्त खूब चर्चा में है। दरअसल, बुधवार (31 जुलाई) को यूपी विधानसभा में भारी हंगामे के बीच उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंध और उपयोग) विधेयक, 2024 पारित किया गया था। इसके बाद जब गुरुवार को यह विधेयक विधान परिषद में आया तो इसे प्रवर समिति को भेज दिया गया। ऐसे में नजूल संपत्ति से जुड़ा विधेयक अब उच्च सदन में अटक गया है।
इस विधेयक का भाजपा के कई नेताओं ने विरोध किया है। वहीं एनडीए में भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी ने इससे असहमति जताई है। ऐसे में आइये जानते हैं कि आखिर उत्तर प्रदेश का नजूल संपत्ति विधेयक क्या है? इस पर उत्तर प्रदेश में अब तक क्या-क्या हुआ है? विधान परिषद में यह बिल क्यों अटक गया? सत्ता पक्ष का इस पर क्या कहना है? विपक्ष का इस पर क्या रुख है? इससे क्या बदलने का दावा किया जा रहा है?
उत्तर प्रदेश का नजूल संपत्ति विधेयक क्या है?
31 जुलाई को यूपी विधानसभा में उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंध और उपयोग) विधेयक, 2024 पारित हुआ था। विधेयक का उद्देश्य नजूल भूमि की रक्षा करना बताया गया है। दरअसल, नजूल का मतलब ऐसी भूमि या भवन से है जो सरकारी दस्तावेज के आधार पर सरकार की संपत्ति है। शहरों और गांवों में या उनके नजदीक स्थित ऐसी सभी संपत्तियां, भूमि या भवन जो राज्य सरकार की हैं, नजूल संपत्तियां कहलाती हैं। इसमें वे सभी संपत्तियां भी शामिल हैं जिनके लिए सरकार अधिसूचना द्वारा घोषित किसी कानून के तहत पट्टा, लाइसेंस या कब्जा दिया गया है।
विधेयक के अनुसार, कानून लागू होने के बाद किसी भी नजूल भूमि को किसी निजी व्यक्ति या निजी संस्था के पक्ष में पूरा मालिकाना हक हस्तांतरित नहीं किया जाएगा। इसके बजाय, भूमि का इस्तेमाल सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए जरूरी हो जाएगा।
विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि नजूल भूमि को निजी व्यक्तियों या संस्थाओं को हस्तांतरित करने के लिए कोई भी अदालती कार्यवाही या आवेदन रद्द कर दिया जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि ये भूमि सरकारी नियंत्रण में रहे। यदि इस संबंध में कोई धनराशि जमा की गई है, तो ऐसे जमा किए जाने की तारीख से उसे भारतीय स्टेट बैंक की मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (एमसीएलआर) की ब्याज दर पर धनराशि वापस की जाएगी।
यह सरकार को मौजूदा पट्टेदारों के लिए पट्टे को बढ़ाने का अधिकार देता है, जो नियमित तौर पर किराया देते हैं और पट्टे की शर्तों का पालन करते हैं। ऐसे पट्टेदार भूमि का उपयोग जारी रख सकते हैं जबकि इसे सरकारी संपत्ति के रूप में बनाए रखा जा सकता है। विधेयक का उद्देश्य नजूल भूमि प्रबंधन को सुव्यवस्थित करना और अनधिकृत निजीकरण को रोकना बताया गया है।
इस विधेयक को लेकर अब तक क्या-क्या हुआ है?
विधेयक से पहले इसे अध्यादेश के रूप में भी लाया जा चुका है। इसी साल 7 मार्च को यूपी सरकार ने यूपी नजूल संपत्ति (सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए प्रबंधन और उपयोग) अध्यादेश, 2024 को अधिसूचित किया था। अध्यादेश एक ऐसा कानून है जिसे राज्यों के राज्यपाल अध्यादेश तभी जारी कर सकते हैं जब विधानमंडल सत्र में न हो।
इसे देखते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में 31 जुलाई को हुई कैबिनेट की बैठक में नजूल भूमि विधेयक बिल को मंजूरी दी गई। इसी दिन विधेयक को विधानसभा में पारित किया गया। अगले दिन यानी 1 अगस्त को इस विधेयक को विधान परिषद में पेश किया जहां से इसे प्रवर समिति को भेज दिया गया। इस तरह से विधेयक उच्च सदन से पास न होकर यहीं अटक गया। इसके बाद यूपी विधानसभा और विधान परिषद का मानसून सत्र गुरुवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया।
विधान परिषद में विधेयक क्यों अटक गया?
यूपी विधानसभा में पारित होने के बाद विधेयक को उच्च सदन में पेश किए जाने के बाद प्रवर समिति को भेज दिया गया। दरअसल, कुछ भाजपा विधायकों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष अपनी चिंताएं व्यक्त की थीं। इसके बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक की बैठक हुई। बैठक में तय हुआ कि चौधरी विधेयक को प्रवर समिति को भेजने का प्रस्ताव रखेंगे।
गुरुवार को उपमुख्यमंत्री मौर्य ने विधान परिषद में विधेयक पेश किया और चौधरी ने इसे समिति को सौंपने का प्रस्ताव रखा, जिसका भाजपा एमएलसी और दोनों उपमुख्यमंत्रियों ने समर्थन किया। सभापति ने कुंवर मानवेंद्र सिंह सदन में विधेयक पर विचार के लिए वोटिंग कराई। ‘हां’ के पक्ष में मत अधिक होने पर इसे विचार के लिए स्वीकार कर लिया। प्रवर समिति को दो महीने में रिपोर्ट देगी।
विधेयक को लेकर किसने क्या कहा?
विधानसभा में बुधवार को सपा- कांग्रेस विधायकों के हंगामे और प्रदर्शन के बीच नजूल संपत्ति विधेयक (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंध और उपयोग) 2024 पारित कराया गया था। हालांकि, विधेयक पर चर्चा के दौरान सत्ताधारी भाजपा के ही कुछ विधायकों ने इस पर असहमति जताई। इसके अलावा, एनडीए में शामिल निषाद पार्टी, अपना दल ने भी विधेयक पर अलग राय रखी। वहीं सपा, जनसत्ता दल, कांग्रेस ने भी इसका पुरजोर विरोध किया।
इस विधेयक पर चर्चा के दौरान सपा के आरके वर्मा, कमाल अख्तर ने इसे प्रवर समिति को सौंपने की बात कही। भाजपा विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह ने सुझाव दिया कि जो लोग पीढ़ी दर पीढ़ी प्रमाणिक हैं, उनका नवीनीकरण किया जाए। अनाधिकृत रहने वालों के लिए पहले पुनर्वास की व्यवस्था की जाए। भाजपा विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी ने प्रयागराज की नजूल संपत्तियों का जिक्र करते हुए कहा कि एक तरफ हम प्रधानमंत्री आवास दे रहे हैं, दूसरी तरफ गरीबों को उजाड़ने जा रहे हैं। यह न्याय संगत नहीं है। उन्होंने भी विधेयक प्रवर समिति को सौंपने के लिए कहा।
रघुराज प्रताप ने पुनर्विचार करने की अपील की
जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के विधायक रघुराज प्रताप सिंह ने कहा कि यह विधेयक भले छोटा है, लेकिन इसके परिणाम बड़े हैं। उन्होंने सवाल किया कि एक प्रकरण में पता चला है कि हाईकोर्ट भी नजूल भूमि पर है तो क्या उसे भी खाली कराया जाएगा। उन्होंने सरकार से इस विधेयक पर पुनर्विचार करने की अपील की। निषाद पार्टी के अनिल त्रिपाठी ने संशोधन की मांग करते हुए प्रवर समिति को सौंपने की वकालत की।
कांग्रेस विधायक आराधना मिश्रा मोना ने भी विधेयक को जनविरोधी करार देते हुए पुनर्विचार पर जोर दिया। कहा कि सरकार इस कानून में संशोधन करे यह कानून गरीबों के घरों को उजाड़ने का कानून है, और जीवन भर की गाढ़ी कमाई से बनाये आशियाने को उजाड़ने वाला है, प्रदेश के लाखों लोगों को बेघर करने वाला है। इस कानून का व्यापक स्तर पर दुरुपयोग होगा। नजूल की भूमि पर सरकारी कार्यालय, अस्पताल बने हैं।
सदन के बाहर भी हो रहा विधेयक का विरोध
सदन के बाहर भी इस विधेयक का विरोध हो रहा है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने नजूल भूमि विधेयक को घर उजाड़ने वाला करार दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि जनता रोजी-रोटी-रोजगार के लिए भटक रही है और अब भाजपाई मकान भी छीनना चाहते हैं।
एनडीए में सहयोगी अनुप्रिया पटेल ने बिल का विरोध करते हुए कहा की कि यह विधेयक न सिर्फ गैरजरूरी है बल्कि आम जन मानस की भावनाओं के विपरीत भी है। उत्तर प्रदेश सरकार को इस विधेयक को तत्काल वापस लेना चाहिए और इस मामले में जिन अधिकारियों ने गुमराह किया है उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
इस बिल का विरोध करते हुए निषाद पार्टी के अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने कहा कि अगर आप इन्हें उजाड़ देंगे तो 2027 (विधानसभा चुनाव) में ये लोग उजाड़ देंगे। इसे लागू नहीं करने दिया जाएगा।
विधेयक से जुड़े विवाद पर सरकार का क्या कहना है?
संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने विधायकों के विरोध को देखते हुए विधेयक में कुछ बदलाव का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि नजूल भूमि का पट्टा पाने वाले जिन लोगों का 2025 में समय सीमा समाप्त हो रही है, उनकी लीज का नवीनीकरण किया जाएगा। जिन्होंने फ्री होल्ड के लिए आवेदन किया है और 30 का पट्टा है, उन्हें भी नवीनीकरण का विकल्प दिया जाएगा।
वहीं केशव मौर्या ने भी नजूल विधेयक पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ये विधेयक प्रवर समिति को भेजा गया है। लिहाजा इस पर अभी कुछ भी बोलना ठीक नही है। हम लोग कोशिश करेंगे, कोई रास्ता निकल आए। जो निर्णय होगा उससे प्रदेश अवगत होगा।