यूपी के डिप्टी सीएम केशव मौर्य 5 दिन से दिल्ली में डटे हैं। इस बीच यूपी में सीएम योगी 2 बार कैबिनेट की बैठक कर चुके हैं, लेकिन इसमें मौर्य शामिल नहीं हुए। अब सत्ता के गलियारे में तरह-तरह के कयास शुरू हो गए हैं।
केशव मौर्य को केंद्र या प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी देने की तैयारी है, इसलिए उन्हें दिल्ली में रोका गया है। केशव से बीएल संतोष और जेपी नड्डा ने बातचीत भी की। बताया जाता है, केशव को पार्टी अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने पर भी विचार कर रही है।
हालांकि, इस रेस में केशव के अलावा कई और भी दिग्गज हैं, लेकिन केशव उनमें फिट बैठ रहे, क्योंकि वह देश के सबसे बड़े सियासी राज्य और OBC समुदाय से आते हैं।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा मोदी 3.0 सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए। भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष दो पद एक साथ नहीं रख सकता है। नड्डा का कार्यकाल 30 जून 2024 को पूरा हो रहा है। पार्टी को इससे पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन कर लेना है। नड्डा का कार्यकाल जनवरी 2024 में ही पूरा हो गया था, लेकिन लोकसभा चुनाव के चलते कार्यकाल को 30 जून तक बढ़ा दिया गया था।
राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए भाजपा में जिन चेहरों का नाम सबसे आगे चल रहा है, उनमें केशव मौर्य भी शामिल हैं। बताया जाता है कि इसी को लेकर उन्हें दिल्ली में रोका गया है। वह संगठन और सरकार के टॉप लोगों के साथ बैठक भी कर रहे हैं। इस बार भाजपा पिछड़ा वर्ग से अध्यक्ष बनाना चाहती है, उसमें केशव फिट बैठते हैं।
केशव के अलावा अध्यक्ष पद की रेस में चार और नाम चल रहे हैं। महाराष्ट्र से राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े भी रेस में शामिल हैं। तावड़े भाजपा की बिहार इकाई के प्रभारी भी हैं। पिछड़े समुदाय से आते हैं। इस बार चुनाव में दिल्ली में दूसरे दलों से आए नेताओं की ज्वॉइनिंग की जिम्मेदारी उन्हीं के पास थी।
अध्यक्ष पद के लिए तीसरा नाम आदिवासी चेहरा फग्गन सिंह कुलस्ते का है। इस दौड़ में चौथा नाम अनुराग ठाकुर और 5वां सुनील बंसल का भी है। अनुराग केंद्रीय मंत्री और सुनील बंसल पार्टी में महासचिव और यूपी प्रभारी रह चुके हैं।
यह भी कहा जा रहा है कि प्रदेश में केशव प्रसाद को बड़ी भूमिका दी जा सकती है। यदि वह केंद्रीय राजनीति में नहीं जाते हैं, तो उन्हें PWD मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी मिल सकती है। दरअसल, PWD मंत्रालय जितिन प्रसाद के पास था। अब वह केंद्र में मंत्री बना दिए गए हैं। इसके चलते ये विभाग खाली हो गया है। योगी की पहली सरकार में ये विभाग केशव के पास ही था। फिलहाल, उनके पास ग्रामीण विकास मंत्रालय है।
बताया जाता है, PWD विभाग को लेकर उन्होंने अमित शाह और जेपी नड्डा से बातचीत की है। इस विभाग को अपने लिए लाइन अप करने के लिए दिल्ली में इतने दिन रुके हैं।
यूपी में भाजपा की करारी हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी के बदलने के कयास लगातार लग रहे हैं। कहा जा रहा है, भूपेंद्र चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल ने केंद्रीय नेतृत्व के सामने हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश की, लेकिन उसे अभी स्वीकार नहीं किया गया।
हालांकि, पार्टी सूत्रों के मुताबिक कुछ ही दिन में यूपी में मिली हार पर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश सरकार और संगठन के लोगों के साथ बैठक करेगा। उस वक्त इनके इस्तीफों को स्वीकार किया जा सकता है। इसमें इसलिए भी देरी हो रही है, क्योंकि अभी तत्काल केंद्र में मोदी की सरकार बनी है। राष्ट्रीय अध्यक्ष भी मंत्री बन गए हैं, इसलिए पार्टी कोई नेगेटिव मैसेज नहीं देना चाहती है।
इसके अलावा पार्टी यूपी में नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम भी तलाश रही है। केशव इस फेहरिस्त में सबसे फिट बैठते हैं। ये उस OBC समुदाय से आते हैं, जिसका वोट शिफ्ट होने से भाजपा को यूपी में तगड़ा झटका लगा है।
केशव इससे पहले भी 2016 से 2017 तक प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं, उनके कार्यकाल में भाजपा ने यूपी में 403 में 325 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया था।केशव ओबीसी समुदाय से आते हैं। सबसे बड़ी बात है कि सपा-कांग्रेस ने भाजपा को अभी जो चैलेंज दिया है, वह आने वाले समय में और बड़ा खतरा बन सकता है। इसलिए भाजपा इस खतरे को कतई मोल लेना नहीं चाहेगी और ओबीसी समुदाय को खुश करने के लिए कुछ भी कर सकती है।
वरिष्ठ पत्रकार पंकज सिंह कहते हैं- मेरे हिसाब से केंद्र की पॉलिटिक्स में उनका अनुभव कम है। कई और चेहरे वहां इन पर भारी पड़ेंगे। हालांकि OBC फेस हैं और मोदी-शाह हमेशा चौंकाते रहते हैं। इस बार भी कुछ नया कर सकते हैं।
केशव मौर्य ने 2022 विधानसभा चुनाव सिराथू विधानसभा से लड़ा, लेकिन अपना दल (कमेरावादी) की अध्यक्ष पल्लवी पटेल से चुनाव हार गए। कयास शुरू हो गए कि उन्हें इस बार मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया जाएगा।
लेकिन, योगी 2.0 सरकार बनी तो उन्हें डिप्टी सीएम फिर से बनाया गया। इससे आप केशव के पार्टी में कद और प्रभाव को समझ सकते हैं।
केशव कौशांबी जिले से आते हैं। वह संघ और भाजपा में वो चेहरा हैं, जो हिंदुत्व की राजनीति का अहम हिस्सा हैं, जिनके जरिए गैर-यादव OBC समुदाय को हमेशा साधने की कोशिश होती है।
शुरुआत के दिनों में केशव संघ और विश्व हिंदू परिषद से जुड़े थे। संघ में बाल स्वयंसेवक से शुरुआत की और नगर कार्यवाह तक पहुंचे। विश्व हिंदू परिषद में संगठन मंत्री रहे। वह गोरक्षा अभियान में भी काफी सक्रिय रहे। केशव मौर्य राम जन्मभूमि आंदोलन में भी शामिल थे।
भाजपा में केशव मौर्य क्षेत्रीय समन्वयक, पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ और किसान मोर्चा के अध्यक्ष भी रहे। 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले उन्हें भाजपा उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष बनाया गया, तब मौर्य फूलपुर से लोकसभा सांसद भी थे।
केशव की जाति पूरे उत्तर प्रदेश में है। इस जाति की पहचान अलग-अलग नामों से है, जैसे- मौर्य, मोरया, कुशवाहा, शाक्य, कोइरी, काछी और सैनी। ये सभी मिलाकर उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में 8.5 फीसदी हैं। पारंपरिक रूप से इनका पेशा खेती-किसानी रहा है।
मौर्य के राजनीतिक करियर की शुरुआत इलाहाबाद पश्चिम से लगातार दो हार से हुई थी, लेकिन 2012 में सिराथू में इन्हें जीत मिली थी। इसके बाद 2014 में मौर्य को भाजपा ने फूलपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया।
मोदी की लोकप्रियता के रथ पर सवार मौर्य को फूलपुर में 52 फीसदी मत मिले थे। फूलपुर नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ माना जाता था, यहां से नेहरू सांसद बने थे, यह पहली बार था, जब भाजपा को यहां जीत मिली थी। केशव मौर्य 2014 से 2017 तक सांसद रहे।