थिएटर से जुड़े एक्टर्स का आखिरी पड़ाव फिल्में ही होती हैं, लेकिन एक्टर हरीश खन्ना ने थिएटर की वजह से फिल्में छोड़ दी। जिसकी वजह से डायरेक्टर अनुराग कश्यप ने उन्हें भगोड़ा बताया था। हरीश हाल ही में विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘12th फेल’ में मनोज शर्मा के पिता और फिल्म ‘बारह बाई बारह’ में पर्वत के किरदार में नजर आए हैं। पिछले दिनों दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान एक्टर ने अपने करियर से जुड़े दिलचस्प खुलासे किए।
हरीश खन्ना ने कहा- मेरे पेरेंट्स लाहौर से माइग्रेट होकर राजस्थान कोटा आए। मेरी पैदाइश कोटा की है। मैंने जूनियर स्कूल दिल्ली और हाई स्कूल जम्मू से किया। कॉलेज भी वहीं से किया। वहां पर बलवंत ठाकुर का नटरंग नाटक ग्रुप था। मैंने उनका ग्रुप जॉइन किया तो वहीं से मुझे पता चला कि एनएसडी नाम की कोई संस्था है। इससे पहले मुझे एनएसडी के बारे में नहीं पता था। एनएसडी ज्वाइन किया और 1993 में मुंबई आ गया
मुंबई आए तो अंधेरी पूर्व के पीएमजीपी कॉलोनी में रहते थे। उस समय वहां ज्यादातर स्ट्रगलर रहते थे। क्योंकि वह जगह बाकी जगहों से सस्ती थी। वहां हमारे साथ अनुराग कश्यप, अनूप सोनी रहते थे। उस समय सबसे ज्यादा खर्चा फोटो के प्रिंट बनवाकर ऑफिस में बांटने में होता था। संजय लीला भंसाली को अपना बायोडाटा देकर आया था। बायोडाटा में ही कलर फोटो भी प्रिंट था। उस समय एक कॉपी बनवाने में 100 रुपए लगते थे। भंसाली दूसरे दिन फोन करके बोले कि इसे ले जा, यह बहुत महंगा है। उस समय लोग ऐसा सोचते थे कि स्ट्रगलर के पैसे ज्यादा खर्च ना हो।
शुरुआत में गोविंद निहलानी के साथ ‘संशोधन’ और ‘हजार चौरासी की मां’ जैसी फिल्मों में काम करने का मौका। इसके बाद मैंने मिलन लुथरिया की फिल्म ‘कच्चे धागे’ की। इसी दौरान हमारी नाटक की टीचर अनामिका हक्सर ने एक नाटक के लिए मुझे इनवाइट किया। कश्मीर से कन्याकुमारी तक उस प्ले को हर जगह किया। वह प्ले खत्म हुआ तो डॉक्टर अनुराधा कपूर का एक और प्ले मिल गया। वह भी एक साल तक चला। उसके बाद 1999 में ब्रिटिश काउंसिल की स्कॉलरशिप मिल गई और दो साल के लिए लंदन चला गया। वहां पर मैं एक ड्रामा कंपनी में पढ़ाई के साथ- साथ में प्रोफेशनल थिएटर भी कर रहा था।
मैंने कभी नहीं सोचा कि थिएटर की वजह से फिल्में छूट रहीं हैं। मुझे लग रहा था कि एक्टिंग कर रहा हूं। जब मैं दोबारा आया तो अनुराग कश्यप ने कहा कि तुम्हारे दोस्त यार कहां से कहां पहुंच गए। तुम भागकर दिल्ली चले गए। उनकी नजर में भाग गया था, लेकिन मैं भागा नहीं था। मुझे तो सिर्फ एक्टिंग करनी थी। उस समय मेरे अंदर इतनी समझ नहीं थी कि पैसे कमाने के लिए फिल्में करनी है। मुझे सिर्फ अच्छा काम करना था,चाहे थिएटर तो या फिर फिल्म।
2004 में जब वापस आया तो तिग्मांशु धूलिया ने ‘चरस’ में काफी महत्वपूर्ण किरदार दिया था। उसके बाद सुजीत सरकार की पहली फिल्म‘यहां’ में काम मिला। विशाल भारद्वाज ने रंगून, कमीने, सात खून माफ, अनुराग कश्यप ने ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में काम दिया। इस बीच में इंडिपेंडेंट सिनेमा करने लगा।