उत्तर प्रदेश के कुशीनगर संसदीय क्षेत्र का चुनाव 2009 के बाद फिर दिलचस्प होने जा रहा है, क्योंकि सनातन धर्म को निशाने पर रखने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य फिर चुनाव मैदान में डट गए हैं। स्वामी के मैदान में आने से पहले तस्वीर यही बनी थी कि लड़ाई आमने-सामने वाली ही होगी, मगर उनके ताल ठोकने के बाद अब इसमें कोई दो राय नहीं है कि मुकाबला त्रिकोणीय होगा। कुशीनगर यूपी का अति पिछड़ा जिला माना जाता है। बिहार से सटे होने और बरसात के दिनों में नारायणी नदी के कहर से यह जिला कभी उबर नहीं पाया। लाख जतन के बाद भी जिले की तरक्की नहीं हो पाती, क्योंकि हर साल बाढ़ तबाही लेकर आ जाती है।
चुनावी मौसम में इस संसदीय क्षेत्र में चुनाव के वक्त जातीयता का उभार होता है और उसी अनुरूप मतदाता झुकते रहे हैं। कभी यहां कांग्रेस के क्षत्रप के रूप में स्थापित आरपीएन सिंह अब भाजपा से राज्यसभा सदस्य हैं। वह सैंथवार जाति के नेता के रूप में जाने जाते हैं मगर इस बार सपा ने भी सैंथवार चेहरे को उतारकर उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। संसदीय क्षेत्र में सर्वाधिक संख्या सैंथवार समुदाय की है और उसके बाद कुशवाहा-मौर्य आते हैं। कुशवाहा समुदाय में स्वामी की अच्छी पकड़ है।
बता दें की स्वामी प्रसाद हाल तक सपा में थे मगर वहां से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने अपनी पार्टी बना ली। स्वामी ने यहां से 2009 का लोकसभा चुनाव बसपा के टिकट पर लड़ा था। तब, कांग्रेस के आरपीएन सिंह को उन्होंने कड़ी टक्कर दी थी। आरपीएन 23 हजार वोटों से ही स्वामी से जीत पाए थे। ऐसे में साफ है कि स्वामी को तमाम विवादों के बाद भी हल्के में नहीं लिया जा सकता। पहले तस्वीर यह उभरी थी कि सपा गठबंधन और भाजपा में ही मुकाबला होगा, मगर स्वामी प्रसाद के आने के बाद यह त्रिकोणीय और दिलचस्प हो चुका है।