पिछले 70 दिन के धरने में 7 कर्मचारियों ने दम तोड़ दिया

2011 में सरकारी स्मारकों की सेफ्टी और सफाई के लिए 90 पदों पर 5300 वैकेंसी निकाली गईं। इंटरव्यू हुआ…नियुक्ति पत्र बांटे गए। नौकरी भी शुरू हो गई। घोषणा की गई कि स्मारक कर्मचारियों को वो सारे लाभ दिए जाएंगे। जो राज्य कर्मचारियों को मिलते हैं। लेकिन आज तक कुछ हुआ नहीं।
कर्मचारी 12 साल तक नौकरी करते रहें, लेकिन वादे नहीं पूरे हो सकें। इस दरमियान जिन कर्मचारियों की मौत हुई, उनके परिवार में किसी को मृतक आश्रित पर नौकरी भी नहीं मिली। धीरे-धीरे पिछले 12 साल में करीब 173 कर्मचारियों का निधन हो चुका हैं। मगर इन वर्कर्स को उनका हक नहीं मिल सका।
मामला यहीं नहीं खत्म हुआ…कर्मचारियों ने सैलरी से कटने वाली 10% राशि के बारे में पता किया, तो मालूम चला कि वर्कर्स का NPS खाता ही नहीं खोला गया है। जबकि, नौकरी के शुरू होने से कटौती चालू है।
शासन-प्रशासन के चक्कर लगाने के बाद कर्मचारी अब प्रदर्शन करने को मजबूर हैं। 70 से ज्यादा दिन बीत चुके हैं, 7 लोगों ने धरनास्थल पर ही प्राण त्याग दिए। यानी कि हर 10 दिन पर 1 कर्मचारी कि मौत हो गई।
दोपहर का 1 बज रहा है…पिछले 73 दिनों से ईको गार्डन धरना स्थल पर स्मारक कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर जुटे हैं। इसमें महिला और पुरूष दोनों शामिल हैं। उनकी 10 सूत्रीय मांग है। जिसमें पुनरीक्षित वेतनमान 5200-20200 ग्रेड पे 1800 दिया जाए।
NPS खाता खोला जाए, मृतक आश्रितों को अनुकंपना नियुक्ति, चिकित्सा का लाभ, 7वें वेतनमान का लाभ, स्थाई करण किया जाए सहित 10 मांगे हैं। इन कर्मचारियों को शासन स्तर से सभी आश्वासन, तो मिले लेकिन फायदा आज तक नहीं मिल पाया। इनके संघर्ष को अब 12 साल बीत चुके हैं।
धरना स्थल पहुंचने पर हमारी मुलाकात विमलेश कुमार वर्मा से हुई। उनसे धरने की वजह पूछने पर उन्होंने कर्मचारियों की 10 सूत्रीय मांग बताई। साथ ही बताया कि इस धरने को खत्म करने के लिए विभाग कई हथकंडे अपनाता है। कर्मचारी का ट्रांसफर नोएडा कर देते हैं। करीब 100 लोगों का जनवरी महीने का पूरा वेतन रोक दिया गया।
इस कुंठा से ग्रसित होकर पिछले 70 दिन के धरने में 7 कर्मचारियों ने दम तोड़ दिया। हार्ट अटैक, ट्रेन से कटकर, डिप्रेशन के कारण 7 मौतें हुई, लेकिन किसी ने संज्ञान नहीं लिया। 25 फरवरी को ब्रजमोहन (38) तबीयत खराब होने से बेहोश हो गए। उन्हें लोकबंधु अस्पताल पहुंचाया गया, जहां उनकी मौत हो गई।

बृजमोहन की मौत के बाद सभी कर्मचारी LDA और शहरी आवास के जिम्मेदार अधिकारियों को बुलाने की मांग पर अड़ गए। जिसके बाद पुलिस आई। अधिकारी के आने के बाद उसके शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया।
विमलेश बताते हैं कि जितने कर्मचारियों की मौत हुई, उनके परिवार सड़क पर आ गए हैं। भीख मांगने पर मजबूर हैं। उनकी स्थिति देखकर अन्य कर्मचारियों का मन कुंठा से भर जाता है कि 13 साल की नौकरी के बाद वो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और परिवार को इलाज नहीं दे पा रहे हैं।
एक कर्मचारी की पत्नी के पित्ताशय में पथरी थी। वो धरना स्थल पर अपनी समस्या बताया और रोता हुआ यहां से चला गया। रात को खाना खाकर लेटा फिर सुबह उठा ही नहीं। बीवी आज भी इलाज के लिए भटक रही है।
विवेकानंद तिवारी अंबेडकर पार्क में सफाई कर्मचारी हैं। वो बताते हैं मौजूदा समय में सातवां वेतनमान लागू हो गया है लेकिन हमें लाभ नहीं मिल रहा है। इसके अलावा 5300 कर्मचारियों में से अब 173 लोगों की मौत हो चुकी है। जिनके परिवार को मृतक आश्रित पर नौकरी नहीं मिली, न ही ड्यूटी के दौरान सैलरी से कट रहे पैसे का लाभ दिया गया।
विभाग का रवैया ऐसा है कि कर्मचारियों का आज तक नेशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) खाता नहीं खोला गया है। जबकि नौकरी शुरू होने से ही कटौती हो रही है। NPS के बारे में पूछने पर कोई सही जवाब नहीं देता। इस दौरान पता चला कि कुछ अधिकारियों ने गबन कर दिया है। मामले में वित्त प्रबंधक व अन्य जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई भी हुई।
सातवां वेतनमान जो प्रदेश में 2016 से लागू है। वो सभी कर्मचारियों को मिल जाना चाहिए। 2016 की बोर्ड मीटिंग में पास हो चुका है। हमारे जितने मामले हैं वो लगभग बोर्ड की मीटिंग में पास हो चुके हैं। जब सारी मांगे बोर्ड मीटिंग में पास हो गए हैं। शासन में पास होने के बाद बजट लगातार आ रहा है। लेकिन बजट वापस हो जाता है। IGRS के जरिए हमें जानकारी मिली कि बस औपचारिक आदेश मिलने के बाद इन सबका लाभ दिया जाएगा। बस एक औपचारिकता का आदेश जारी होने के लिए सारे कर्मचारी 12 साल से संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन लाभ नहीं मिला।
कर्मचारी अपने हक को लेकर 18 दिसंबर से धरना दे रहे हैं। इसमें साथी कर्मचारियों को सस्पेंड किया गया। नोएडा ट्रांसफर किया गया और करीब 300 कर्मचारियों का वेतन रोक दिया गया। 100 कर्मचारियों का पूरा वेतन रोक दिया गया है। दिसंबर से सैलरी नहीं आई।
काम हमसे पूरा लेते हैं, लेकिन जब लाभ देने की बात आती है, तो जवाब मिलता है कि फाइल अभी शासन में लंबित हैं। मुख्यमंत्री कहते हैं कि तीन दिन के अंदर किसी भी फाइल का निस्तारण हो जाना चाहिए। वो लंबे समय तक लंबित नहीं रहनी चाहिए। फिर भी 12 साल से हमारी पैंडेंसी चल रही है।
5300 कर्मचारियों को मेडिकल तक का लाभ नहीं मिलता है। अगर हमारे परिवार में कोई बीमार हो जाता है। दो लाख रुपए की जरूरत पड़ गई, तो एक ही विकल्प है कि मर जाएं। क्योंकि दो लाख की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं।
12 साल नौकरी करने के बाद भी ऐसी स्थिति में लाकर छोड़ दिया कि हम अपने परिवार या अपने लिए दो लाख तक की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं। धरने को 70 दिन हो गए हैं लेकिन आज तक कोई अधिकारी सुध लेने नहीं आया।विमलेश कुमार वर्मा बताते हैं,”5300 कर्मचारियों की अलग नियमावली बनाई गई थी। जिसमें कहा गया कि स्मारक के कर्मचारियों को समय-समय पर वो सारे लाभ दिए जाएंगे। जो राज्य कर्मचारियों को मिलते हैं। लेकिन विभाग ने ऐसा कुछ नहीं किया। इसको लेकर 12 सदस्यों की टीम गठित की गई।
उनका काम समय-समय पर उत्पन्न होने वाली समस्या पर बैठकर विचार करेंगे और कर्मचारियों के लिए निर्णय लेंगे। साल में बोर्ड की दो मीटिंग होनी थी। जो बीच-बीच में नहीं हुई लेकिन उसके पहले हुई बोर्ड बैठक में सब पास किया जा चुका है।”
विमलेश कुमार वर्मा बताते हैं,”10 अगस्त 2023 को मंडलायुक्त रौशन जैकब से मुलाकात हुई। उस मुलाकात में मंडलायुक्त ने सारी मांगे सही ठहराई और आश्वासन भी दिया कि आपको सब मिलना चाहिए। बल्कि ये सब बहुत पहले मिल जाना था। सारी सुविधाएं दिलाने की शर्त पर धरना खत्म करवा दिया।
चार महीने तक इंतजार किया मंडलायुक्त मैडम ने भी काफी प्रयास किया, लेकिन वो नहीं करवा पाई। इसके बाद सभी कर्मचारियों ने फिर मंडलायुक्त मैडम से मिलने की बात कही। लेकिन मुलाकात से मना कर दिया। इसके बाद कर्मचारियों के पास धरने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं बचा।”