मथुरा में मंच सज चुका है। ब्रज रज उत्सव में मीराबाई की 525वीं जयंती के मौके पर इन्हीं चंद लाइनों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 नवंबर को वृंदावन कॉरीडोर बनवाने की घोषणा के साथ ही आगामी लोकसभा चुनाव का बिगुल फूंक देंगे।
हाईकोर्ट के फैसले के बाद भाजपा के सूत्रों का कहना है, प्रधानमंत्री मोदी मंच से बांके बिहारी कॉरिडोर बनाने की आधिकारिक घोषणा करेंगे। यही नहीं, वह कृष्ण जन्मभूमि का दौरा करने वाले मोदी पहले प्रधानमंत्री होंगे।
यूपी में राजनीतिक दलों के बीच ये मान्यता है कि ब्रज की भूमि राजनीति के लिहाज से उपजाऊ है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले भी मोदी ने आगरा से ही शंखनाद रैली के जरिए अपने चुनावी मिशन का आगाज किया था। ब्रज भूमि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ भाजपा के लिए भी सियासी रूप से काफी फायदेमंद साबित होती रही है।
विपक्ष के जातीय जनगणना के मुद्दे से लड़ने के लिए भाजपा हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने पर काफी जोर दे रही है। प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि आस्था को विकास के साथ जोड़कर ही देश का असल विकास हो सकता है। इसी कॉम्बिनेशन के साथ और चुनावी रणनीति के तहत पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव मैदान में उतरेगी। वैसे भी हिन्दुत्व का एजेंडा भाजपा को विजय रथ पर कई बार सवार करा चुका है।
यूपी की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि प्रधानमंत्री की मथुरा यात्रा को भारतीय जनता पार्टी की 2024 चुनावी मिशन का आगाज समझिए। भाजपा श्री कृष्ण जन्मस्थान विवाद को लोकसभा चुनाव 2024 में एक मुद्दा बनाने की तैयारी में है।
सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, भाजपा को धर्म का एजेंडा हमेशा से भाता रहा है। मंडल के समय भी कमंडल की राजनीति के जरिए वो सत्ता की कुर्सी पर बैठी थी। भाजपा के संकल्प पत्र में रामजन्म भूमि अयोध्या, काशी, मथुरा में से मथुरा ही बाकी था जो इस चुनाव में घोषणा के साथ पूरा हो जाएगा।
वह कहते हैं, मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री की मंच से घोषणा के बाद से सरकार युद्धस्तर पर इस मामले पर काम करना शुरू कर देगी। चुनाव आचार संहिता लगने से पहले इसका भूमि पूजन कर देगी।”
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राजीव राय का मानना है कि भाजपा हमेशा से ही धर्म की अफीम चटाकर लोगों को बेवकूफ बनाती रही है। जनता को धर्म के नाम पर लड़ाना फिर वोट की राजनीति, इनके पास अपना कोई काम नहीं है जिसके बल पर वो जनता के बीच जाएं। लेकिन काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है।
युवाओं को रोजगार चाहिए, महंगाई कम हो, समाज के दबे कुचले लोगों को उनका हक मिले। इसमें भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से फेल है। यूपी की बात करें तो भाजपा जिस कानून व्यवस्था के मुद्दे पर सत्ता में आई थी, वो कानून व्यवस्था पूरी तरह से फेल है।
प्रधानमंत्री के आने से पहले मथुरा भूमि पर सियासी मंच सज चुका है। पार्टी आस्था का सम्मान और विरासत से प्रेरणा लेते हुए अपना सारा फोकस अयोध्या में भव्य राम मंदिर, मिर्जापुर में विंध्यवासिनी कॉरिडोर, केदारनाथ धाम, काशी विश्वनाथ कॉरीडोर, उज्जैन के महाकाल लोक का भव्य विकास इन सारी बातों पर केन्द्रित कर रही है।
पिछले दो महीने से संघ और भाजपा के कई छोटे-बड़े नेता मथुरा, वृंदावन का दौरा कर चुके हैं। सियासी नफा नुकसान को भांपने के बाद ही प्रधानमंत्री मोदी का कार्यक्रम फाइनल हुआ है। प्रधानमंत्री मथुरा में चल रहे ब्रज रज उत्सव में मीराबाई की 525वीं जयंती में हिस्सा लेने मथुरा आ रहे हैं। जिसमें पहले वो श्री कृष्ण जन्मभूमि फिर द्वारकाधीश जी के दर्शन करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 अक्टूबर 2010 और 12 फरवरी 2019 में वृंदावन आए थे। मगर बांके बिहारी जी के दर्शन नहीं किए थे। इस बार भी 23 नवंबर को देवउठायनी एकादशी के चलते 84 कोसी यात्रा में लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए सुरक्षा कारणों से प्रधानमंत्री की वृंदावन जाने की संभावना नहीं है।
प्रधानमंत्री के दौरे से पहले भाजप अपनी पूरी रिसर्च अलग-अलग माध्यमों से करवा रही है। उनके दौरे से पहले देवेन्द्र फडणवीस की यात्रा भी हुई है, जिनसे कृष्ण जन्म स्थान और उससे संबंधित अब तक दाखिल केसों की जानकारी इकटठा करना इस ओर इशारा करता है कि प्रधानमंत्री मंच से इस मामले पर अपने विचार रखें जिसका फायदा आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को यकीनी तौर पर मिले।
वृंदावन के पुजारी मोहित मराल गोस्वामी वृंदावन कॉरिडोर बनने की बात से खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि सरकार को वृंदावन का नाम बदल कर कंक्रीटवन कर देना चाहिए। धर्म ह्रदय की चीज है, प्रदर्शन की नहीं, सरकार वन का नाश करके इसको मेट्रो सिटी बनाना चाहती है। भक्त यहां कुंज गलियां देखने आते हैं, व्यापारिक केन्द्र तो पूरे देश में कई जगहों पर हैं हीं।
उत्तर प्रदेश, देश का सबसे बड़ा राज्य है साथ ही 80 लोकसभा सीटों के साथ राजनीतिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण है। इसलिए पार्टी का मानना है कि यहां से उठी आवाज पूरे देश में जाती है और उसका व्यापक असर होता है। चूंकि, पार्टी आस्था को विकास के साथ जोड़कर चुनाव में जनता के बीच जा रही है।
इसी बात का ध्यान रखते हुए प्रदेश की योगी सरकार ने इस बार के अनुपूरक बजट में भी विकास और आस्था से जुड़े मामलों पर खासा ध्यान रखते हुए अभी तक के सबसे बड़े अनुपूरक बजट की तैयारी की है। इस बार का बजट पिछली बार से लगभग 8500 करोड़ ज्यादा है।
28 नवंबर से शुरू होने वाले विधानसभा शीतकालीन सत्र में योगी सरकार अपना अनुपूरक बजट पेश करेगी। माना जा रहा है कि इस बार का अनुपूरक बजट योगी सरकार का सबसे बड़ा अनुपूरक बजट होगा। लगभग 42 हजार करोड़ रुपए के इस संभावित बजट में हाल ही में बने तीर्थ विकास परिषद और लखनऊ को केन्द्र में रखकर NCR की तर्ज पर राज्य राजधानी क्षेत्र (SCR) बनाने के लिए भी बजट का आवंटन किया गया है। आपको बता दें कि पिछला अनुपूरक बजट 33,768 करोड़ रुपए का था।
बजट में 22 जनवरी को अयोध्या में होने जा रहे राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को सबसे ज्यादा तरजीह दी गई है। अयोध्या के आध्यात्मिक और ढांचात्मक विकास कार्यों के लिए इस बजट में मोटी राशि का आवंटन किया गया है। इसके अलावा, बांके बिहारी, वृंदावन कॉरिडोर के लिए भी बजट में प्रावधान रखा गया है।
कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई एक्सप्रेस-वे के लिए लिंक सड़कों के जैसे लखनऊ एक्सप्रेस-वे को पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे से जोड़ने के लिए 60 किमी की लिंक रोड, 14 किमी की चित्रकूट लिंक रोड जो बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे से शहर को जोड़ेगी। फर्रूखाबाद को गंगा एक्सप्रेस-वे से जोड़ने की तमाम योजनाओं की घोषणा की थी। इन सभी परियोजनाओं के लिए इस बार के बजट में व्यवस्था की गई है।