आज की अनसुनी दास्तान है मलयाली सिनेमा की शुरुआत करने वाले जे.सी. डेनियल की, जिन्होंने सिनेमा बनाने का इकलौता सपना पूरा करने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। सालों की मेहनत से ये सपना तो साकार हुआ, लेकिन एक फैसले से इस सपने ने भयावह रूप ले लिया। वो फैसला था जातिवाद को नकार कर एक दलित लड़की को फिल्म में हीरोइन बना लेना। इस फैसले की सजा उन्हें समाज ने दी। गांव के इकलौता थिएटर जला दिया। इससे बच निकले तो गुमनामी में रहने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी।
सालों बाद उन्हें मलयाली सिनेमा का पितामाह कहा गया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। आज केरल का सबसे बड़ा अवॉर्ड जे.सी. डेनियल के नाम है, हालांकि जीते जी कभी उन्हें वो सम्मान नहीं मिल सका, जिसके वो हकदार थे।
26 फरवरी 1900 को त्रावणकोर, तमिलनाडु में जे.सी. डेनियल का जन्म हुआ। बचपन से ही जे.सी. डेनियल अपने गांव में होने वाले नाटक देखकर बेहद खुश हुआ करते थे।
पढ़ाई में अव्वल थे और समय से आगे की सोच रखते थे। 1913 में जे.सी.डेनियल को पता चला कि बॉम्बे (अब मुंबई) में किसी दादा साहेब फाल्के नाम के आदमी ने सिनेमा की शुरुआत की है, जिसे सुनकर वो बेहद खुश हुए।
उनमें खुद भी लिखने और अपनी बात समझाने की वो कला थी कि महज 15 साल की उम्र में पहली बुक लिखी, जिसका नाम था इंडियन आर्ट ऑफ फेंसिंग एंड सोर्ड प्ले। गांव से ही स्कूली शिक्षा लेने के बाद उन्होंने त्रिवेंद्रम के महाराजा कॉलेज से पढ़ाई पूरी की।
प्रोगेसिव इंडिया में कई बड़े बदलाव हो रहे थे, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा थी सिनेमा की। जे.सी. डेनियल समझ चुके थे कि आने वाले कुछ ही सालों में सिनेमा पूरे देश में मनोरंजन का सबसे बड़ा जरिया होगा। इसी सोच के साथ उन्होंने खुद फिल्म बनाने का फैसला कर लिया, क्योंकि उस समय तक केरला में सिनेमा का नामोनिशान तक नहीं था। वो सिनेमा से जुड़ी बारीकियां सीखने सीधे मद्रास (अब चेन्नई) पहुंच गए, जहां सिनेमा की शुरुआत हो चुकी थी। 1917 में मद्रास में ही साउथ की पहली गेएटी टॉकीज खुली थी
जिस भी स्टूडियो गए वहां से भगा दिया गया। किसी से मदद मांगी तो बेइज्जती के साथ सिर्फ निराशा ही मिली। मद्रास से सही जानकारी न मिलने पर वो बॉम्बे चले गए, जो सिनेमा का केंद्र था। कुछ स्टूडियो ने जब अंदर आने से रोका तो जे.सी. डेनियल ने तरकीब लगाई। वो खुद का परिचय केरल से आए एक स्कूल टीचर के रूप में करवाते थे, जो अपने स्टूडेंट्स को सिनेमा के बारे में सिखाना चाहता है। उनके इस झूठ से उन्हें स्टूडियो में एंट्री तो मिली, लेकिन वो कुछ खास सीख नहीं सके।
वो वापस केरला लौट आए और लगातार फादर ऑफ इंडिया सिनेमा दादा साहेब फाल्के को खत लिखने लगे। कई महीनों के इंतजार के बाद आखिरकार एक दिन उन्हें जवाब मिल गया। जवाब में उन्हें पता भेजकर बॉम्बे बुलाया गया। उन्होंने तुरंत सामान बांधा और सीधे इस बड़े सफर पर निकल पड़े। दादा साहेब फाल्के से हुई उनकी मुलाकात सफल साबित हुई। उन्होंने जे.सी. डेनियल को ना सिर्फ शूटिंग की बारीकियां सिखाईं बल्कि उन्हें जरूरी इक्विपमेंट्स और कुछ गाइड बुक खरीदने के लिए सही जगह बताई।
अब मलयाली सिनेमा की शुरुआत करने के लिए जे.सी. डेनियल के सामने आर्थिक संकट था। उनके पास महंगा कैमरा खरीदने, सेट बनाने और लोगों को हायर करने के पैसे नहीं थे, ऐसे में उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन बेच थी। एकड़ों की जमीन के उस जमाने में जे.सी. डेनियल को 4 लाख रुपए मिले थे, जो एक बड़ी रकम थी।
1926 में जे.सी. डेनियल ने केरल में द त्रावणकोर नेशनल पिक्चर स्टूडियो बनाया। ये स्टूडियो आज भी त्रिवेंद्रम के पत्तोम के पास पब्लिक सर्विस कमिशन ऑफिसर के पास है। आखिरकार वो अपना सपना पूरा करने के बेहद करीब थे। नए-नए बने स्टूडियो के एक छोटे से कमरे में बैठकर जे.सी.डेनियल ने अपनी फिल्म की स्क्रिप्ट तैयार कर ली, जिसे नाम दिया गया, द लॉस्ट चाइल्ड। पत्नी और कुछ करीबियों ने समझाया कि गांव में इंग्लिश नाम कैसे चलेगा, तो उन्होंने फिल्म का नाम विगताकुमारम कर लिया।
फिल्म शुरू करने के लिए जे.सी. डेनियल को एक लड़की की तलाश थी, जो उनकी फिल्म में नायर महिला सरोजिनी का रोल निभा सके। जब गांव में उन्हें कोई लड़की नहीं मिली तो वो अपने दोस्त के कहने पर बॉम्बे गए। बॉम्बे में उनकी मुलाकात एंग्लो-इंडियन एक्ट्रेस मिस लाला से करवाई गई, जो कई माइथोलॉजिकल फिल्मों में रानी या देवी का रोल कर चुकी थीं।
जैसे ही जे.सी. डेनियल ने मिस लाला को बताया कि वो एक सोशल ड्रामा फिल्म बना रहे हैं, जिसमें उन्हें नायर कास्ट महिला की जरूरत है, तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया। उनका कहना था कि वो सिर्फ शहजादी, रानी या किसी देवी का ही रोल करेंगी।
काफी मिन्नतों के बाद वो ये रोल करने के राजी तो हुईं, लेकिन कुछ खास शर्तों पर। पहली शर्त थी कि उन्हें हर एक दिन शूटिंग करने के 100 रुपए मिलें, उन्हें बॉम्बे से केरल आने की फर्स्ट क्लास टिकट दी जाए। जे.सी.डेनियल के पास न इतनी बड़ी रकम थी, न उन्हें शर्तें मंजूर थीं। इसके बावजूद उन्हें अपने सपनों की फिल्म शुरू करने के लिए न चाहते हुए भी मांग पूरी करनी पड़ी। जे.सी. डेनियल ने तुरंत उन्हें 10 हजार रुपए दिए और फर्स्ट क्लास की टिकट करवाकर साथ आने के लिए राजी कर लिया।
त्रिवेंद्रम स्टेशन में जब मिस लाला के लिए तांगा बुलाया गया तो वो मोटर गाड़ी की डिमांड करने लगीं। उनका कहना था कि वो एक हीरोइन हैं और मामूली तांगे में नहीं बैठेंगी। त्रिवेंद्रम जैसे छोटे से गांव में मोटर गाड़ी मिलना असंभव जैसा था, इसके बावजूद उन्होंने पैलेस से गाड़ी मंगवाकर उन्हें स्टूडियो पहुंचाया। मिस लाला ने जैसे ही देखा कि उनके रुकने का इंतजाम स्टूडियो में है तो उन्होंने गाड़ी से उतरने से इनकार कर दिया। शर्त रख दी कि अगर फिल्म में काम करवाना है तो शाही पैलेस में ठहरने का इंतजाम करवाओ।
जे.सी. डेनियल उन्हें समझाते रहे कि पैलेस में कमरा लेना तो दूर उन्हें वहां जाने की भी इजाजत नहीं है। मिस लाला ने ये सुनकर सीधे फैसला कर लिया कि वो फिल्म में काम नहीं करेंगी। वो बिना गाड़ी से उतरे और बिना रुपए लौटाए स्टेशन लौट गईं और अगली ट्रेन से बॉम्बे।
मिस लाला के भाग जाने से जे.सी. डेनियल समझ चुके थे कि फिल्म बनाना आसान नहीं है। फिल्म रुक गई, जिससे वो निराश हो गए। इस समय उनका एक दोस्त फरिश्ता बनकर सामने आया। वो जे.सी. डेनियल को अपने साथ एक पास गांव का नाटक देखने गया, जहां रोजाना रोजम्मा नाम की गांव की एक दलित लड़की नाटक किया करती थी। जे.सी. डेनियल ने उस लड़की को देखते ही फिल्म में सरोजिनी का रोल देने का फैसला कर दिया। जब रोजम्मा के परिवार से बात की गई तो उन लोगों ने साफ इनकार कर दिया, हालांकि इस काम के लिए जब जे.सी. डेनियल ने उन्हें रोज की 5 रुपए फीस देने को कहा, तो वो भी राजी हो गईं।
आखिरकार फिल्म बनना शुरू हो ही गई। फिल्म विगताकुमारम में रोजम्मा हीरोइन बनीं और जे.सी.डेनियल खुद हीरो बने। जे.सी. डेनियल ने रोजम्मा को पी.के. रोजी नाम दिया। जैसे ही गांव में खबर फैली की गांव में एक फिल्म बन रही है, जिसमें अपरकास्ट जे.सी.डेनियल ने दलित लड़की को साथ काम दिया है तो हंगामा खड़ा हो गया। कई लोग उनके स्टूडियो में तोड़फोड़ करने पहुंचने लगे। जे.सी.डेनियल ने हर बार लोगों को समझाया और पी.के.रोजी के लिए खड़े रहे। करीब 10 दिनों में फिल्म बनकर तैयार हो गई।
जे.सी. डेनियल ने शूटिंग पूरी होते ही खुद उस फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन का काम किया। मामूली एडिटिंग के अलावा उन्होंने खुद रील प्रोसेस की।
23 अक्टूबर 1928 को तिरुवनंतपुरम के कैपिटल सिनेमाहॉल में फिल्म विगताकुमारम को रिलीज किया जाने वाला था। जे.सी. जेनियल चाहते थे कि इस फिल्म के प्रीमियर के दिन शहर के नामी लोग पहुंचे, जिससे लोगों तक इसकी जानकारी पहुंचाई जा सके।
जैसे ही जे.सी.डेनियल न्योता लेकर ऊंची जाति के लोगों के पास गए, तो हर किसी ने ये कहते हुए आने से इनकार कर दिया कि वो दलित लड़की की फिल्म नहीं देखेंगे और न ही उसके साथ एक ही कमरे में बैठेंगे। मामला संभालते हुए जे.सी. डेनियल ने ये कहकर उन लोगों को मनाया की फिल्म की हीरोइन वहां मौजूद नहीं होगी।ऊंची जाति के तमाम लोगों के विरोध के बावजूद फिल्म रिलीज हुई। जैसे ही फिल्म में एक सीन दिखाया गया, जिसमें जे.सी. जेनियल, दलित पी.के.रोजी के बालों में लगा फूल चूमते हैं, तो थिएटर में मौजूद लोग भड़क गए। लोगों ने स्क्रीन पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए और शो बीच में ही रुक गया। बाहर निकलकर भीड़ ने उस थिएटर को जला दिया।
भड़की भीड़ पी.के. रोजी की जान लेने पर आमादा हो गई। उन्होंने पी.के.रोजी को भीड़ से बचाया और उसे एक थिएटर में छिपाया, तो लोगों वो थिएटर भी जला दिया। पी.के.रोजी ने तुरंत छिपकर गांव छोड़ दिया और उसके बाद कभी लौटी ही नहीं। उनका क्या हुआ ये सालों तक किसी को पता ही नहीं चला।
जब जे.सी. डेनियल थिएटर लौटे, तो सब कुछ जलकर राख हो चुका था। इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने वही फिल्म अल्लेपी के स्टार थिएटर में कुछ पढ़े-लिखे लोगों को दिखाई। एक बार फिर किस्मत ने जे.सी. डेनियल का साथ छोड़ दिया। चलती हुई फिल्म अचानक ग्लिच आने से रुक गई, जिससे थिएटर में हल्ला मच गया। फिल्म के अनाउंसर (साइलेंट फिल्म समझाने के लिए एक अनाउंसर रखा जाता था) ने इस बात की घोषणा की कि ये एक टेक्निकल प्रॉब्लम है और फिल्म जल्द ही दोबारा दिखाई जाएगी। लोग मान गए और संयम के साथ बैठे रहे। आगे फिल्म विगताकुमारम को किलोन, त्रिचुर, तेलीचेरी और नागरकोइल में भी दिखाया गया।
लोगों ने फिल्म देखी और टिकट बेचकर कुछ रुपए इकट्ठा हो गए, लेकिन वो राशि फिल्म की लागत से काफी कम थी। भारी नुकसान के चलते जे.सी. डेनियल बुरी तरह टूट गए। कर्ज से निकलने के लिए उन्होंने अपने सारे इक्विपमेंट बेच दिए और स्टूडियो बंद कर दिया।
गांववालों से नाराज होकर जे.सी.डेनियल ने गांव छोड़ दिया और पालायमकोट्टाई, तमिलनाडु जाकर बस गए, जहां न्यू हाउस नाम का उनका एक पुश्तेनी घर था। पत्नी जेनेट और परिवार का खर्च उठाने के लिए उन्होंने डेंटल की पढ़ाई की और डेंटल सर्जन बनकर एक छोटा का क्लिनिक खोल लिया।
जे.सी.डेनियल ने अपनी फिल्म विगताकुमारम की रील सालों तक घर के एक संदूक में छिपाकर रखी। आते-जाते जब भी संदूक पर नजर पड़ती तो बुरी तरह टूट जाते थे। एक दिन उनके बेटे ने वो संदूक खोल दिया। सामने पड़ी एक रील हाथों में ली और उसमें आग लगा दी। रील से नीला धुआं उठता देख बेटा इतना खुश हुआ कि उसने उस नीले धुएं के लिए पूरी फिल्म की रील एक-एक कर जला दी। ये सब जे.सी. डेनियल दूर बैठे देखते रहे, लेकिन उन्होंने बेटे को रोका नहीं।
1938 में एक दिन तमिल सिनेमा के सुपरस्टार कहे जाने वाले पी.यू.चिनप्पा दांत में तेज दर्द उठने पर डेंसिस्ट की तलाश में जे.सी. डेनियल के क्लिनिक पहुंच गए। इलाज से राहत मिलने के बाद उन्हें पता चला कि जे.सी. डेनियल ने पहली मलयाली फिल्म बनाई थी। उन्होंने मदद का आश्वासन देकर उन्हें पुदुकोट्टई बुलाया और उनसे अपनी फिल्म बनवाई। जैसे ही फिल्म पूरी होने लगी, तो पी.यू. चिनप्पा ने उनकी मदद करने से इनकार कर दिया।
जब आर्थिक तंगी से जे.सी. डेनियल को घर चलाना मुश्किल हुआ, तो उन्होंने केरल सरकार से एक आर्टिस्ट होने के नाते पेंशन की मांग की, लेकिन उनकी मांग को ये कहते हुए खारिज कर दिया गया कि वो केरल नहीं बल्कि तमिलनाडु में जन्मे हैं
सालों बाद 1960 में जर्नलिस्ट चेलंगट गोपालकृष्ण ने अपने आर्टिकल और किताबों में जे.सी. डेनियल के संघर्ष की दास्तान बयां कर ये साबित किया कि उन्होंने ही मलयाली सिनेमा की नींव रखी थी। हालांकि, सरकार ने इस बात को भी ये क हकर खारिज कर दिया कि जे.सी. डेनियल मलयाली नहीं हैं। अगर उन्हें पेंशन चाहिए तो उन्हें तमिलनाडु सरकार से अपील करनी होगी। जर्नलिस्ट गोपाल कृष्ण ने उनके लिए कैंपेन किया और आखिरकार सरकार से उनका हक दिलवाया। उन्हें मलयाली सिनेमा के नामी लोगों के सामने सम्मानित भी किया गया। हालांकि उन्हें कोई आर्थिक मदद नहीं दी गई।
आखिरकार बीमारी से लड़ते हुए 27 अप्रैल 1975 को 75 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। ये शायद उनका सिनेमा के लिए प्यार ही था कि मौत के ठीक पहले भी वो साथ बैठी पत्नी जेनेट से अपनी फिल्म विगताकुमारम की ही बात कर रहे थे।
अगले शनिवार 4 नवंबर को पढ़िए हिंदी सिनेमा की पहली फीमेल विलेन कुलदीप कौर की कहानी, जो भारत-पाकिस्तान दंगों के बीच दोस्त के लिए लाहौर से बॉम्बे कार चलाकर पहुंची थीं।