अर्जुन सिंह की पसंद मोतीलाल वोरा थे, 2 बार रहे MP के सीएम

70 से 80 के दशक में कई अखबारों के लिए काम करने वाले शहर के मशहूर पत्रकार मोतीलाल वोरा किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। पत्रकारिता करते-करते उन्होंने राजनीति शुरू की और अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने।
13 मार्च, 1985 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। उन्होंने आलाकमान के निर्देश पर शपथ तो ले ली, लेकिन मंत्रीमंडल बनाने में उन्होंने अर्जुन सिंह की बात रखी। वोरा का मंत्रीमंडल अर्जुन सिंह की स्वीकृति के बाद तय हुआ। यह सब इसलिए क्योंकि उनको सीएम बनाने में अर्जुन सिंह ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
दरअसल 1985 में अर्जुन सिंह के सीएम रहते हुए कांग्रेस वापस सत्ता में आई। सीएम पद की शपथ लेने के अगले ही दिन राजीव गांधी के कहने पर अर्जुन सिंह ने अपना पद छोड़ दिया। हालांकि राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह से कहा था कि मप्र में सीएम उनकी पसंद का ही बनाया जाएगा। अर्जुन सिंह के कहने के बाद वोरा का नाम तय हुआ और वे प्रदेश के सीएम बने।
पूर्व पीएम राजीव गांधी के साथ मोतीलाल वोरा। वोरा जब सीएम बने तो उनकी जगह पर दिग्विजय सिंह को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाया। ये सब अर्जुन सिंह के कहने पर हुआ था।
मोतीलाल वोरा ने 1968 में दुर्ग से पार्षदी का चुनाव जीतकर अपने राजनैतिक कैरियर की शुरुआत की थी। उनके सितारे बुलंद हुए 1972 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में उस समय मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र दुर्ग में नया प्रत्याशी ढूंढ रहे थे। नया प्रत्याशी ढूंढने का कारण सिटिंग विधायक मोहनलाल बाकलीवाल का मिश्र को हराना। द्वारका प्रसाद मिश्र के करीबियाें ने उन्हें बताया, कि प्रसोपा के पास एक लड़का है। सभासद है और इलाके में लोकप्रिय है। वो मोहनाल बाकलीवाल को पटखनी दे सकता है। द्वारिका प्रसाद मिश्रा ने मोतीलाल वोरा को संदेश भिजवाया तो वोरा ने सहमति देकर कांग्रेस ज्वाइन कर लिया। कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद वो चुनाव लड़े और जीते भी। 1972 के चुनाव के बाद इंदिरा दरबार से भेजे गए पीसी सेठी ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
पार्टी में सक्रियता और पत्रकारिता के ज्ञान से वोरा जल्द उनके करीब आ गया। पीसी सेठी के करीबी होने का मोतीलाल वोरा को फायदा मिला और वो राज्य परिवहन निगम के उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए। उस समय राज्य परिवहन के अध्यक्ष सीताराम जाजू हुआ करते थे। फिर इमरजेंसी आई और उसके बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार। राज्य में चुनाव हुए तो कांग्रेस के कई दिग्गज हार गए, लेकिन वोरा कांग्रेस विरोधी लहर में भी दुर्ग से 54 फीसदी वोट पाकर जीते। 1980 की जनता विरोधी लहर में उनका आंकड़ा बढ़कर 64 फीसदी हो गया।
इस चुनाव के बाद एमपी का ताज मिला अर्जुन सिंह को। वोरा को लगा, लगातार तीन बार का विधायक हूं, मंत्री बनूंगा। मगर ऐसा नहीं हुआ। लेकिन एक साल तक वोरा अर्जुन सिंह को मनाते रहे और आखिरी में वे 1981 में राज्यमंत्री बने। राज्यमंत्री बनने के बाद उन्हें उच्च शिक्षा विभाग मिला, तो उन्होंने कई कॉलेज खोले और कई निजी कॉलेजों का अधिग्रहण कराया। इस काम से सरकार की वाहवाही हुई, तो अर्जुन सिंह ने खुश होकर उन्हें 1983 में कैबिनेट मिनिस्टर बना दिया।
9 मार्च, 1985 अर्जुन सिंह ने अपने नेतृत्व में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद दोबारा मुख्यमंत्री-पद की शपथ ली। 10 मार्च को अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल की सूची लेकर कांग्रेस हाईकमान के पास दिल्ली पहुंचे। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उनसे मुलाकात की और अर्जुन सिंह को पंजाब का गवर्नर बनाने का आदेश जारी कर दिया। राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह से कहा और कि अपनी पसंद के मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष का नाम बता दें और फिर 14 मार्च तक पंजाब पहुंच जाएं। इस पर अर्जुन सिंह ने सीएम के लिए वोरा का नाम दिया।
अर्जुन सिंह को जब पता चला कि वो पंजाब के राज्यपाल बन गए हैं। तो उन्होंने तुरंत ही अपने बेटे अजय सिंह को फोन किया और मोतीलाल वोरा को दिल्ली लेकर आने को कहा। अर्जुन सिंह का विमान भोपाल पहुंचा और उनके बेटे अजय सिंह मोतीलाल वोरा को भोपाल से विमान में बिठाकर दिल्ली के रवाना हुए।
अजय सिंह और मोतीलाल वोरा जिस समय विमान में बैठे थे। उसमें मजेदार वाक्या घटा। मोतीलाल वोरा ने अजय सिंह कैबिनेट मंत्री का पद दिलाने की सिफारिश कर दी। दिल्ली एयरपोर्ट से वोरा सीधे मध्यप्रदेश भवन पहुंचे। वहां अर्जुन सिंह, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह उनका इंतजार कर रहे थे। मध्य प्रदेश भवन से सभी पालम हवाई अड्‌डे के लिए रवाना हुए। यहां मोतीलाल वोरा ने राजीव गांधी से मुलाकात की। राजीव गांधी ने वोरा को देखकर उन्हें अपने पास बुलाया और बोले-आप अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।
13 फरवरी 1985 में वोरा को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। 13 फरवरी 1988 को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देकर 14 फरवरी 1988 में केंद्र के स्वास्थ्य-परिवार कल्याण और नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार संभाला। अप्रैल 1988 में वोरा मध्य प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए। अर्जुन सिंह चुरहट लॉटरी कांड में फंस गए और हाईकमान ने उनका इस्तीफा मांग लिया। अर्जुन सिंह के इस्तीफा के बाद दोबारा मोतीलाल वोरा मध्य प्रदेश पहुंचे और 25 जनवरी 1989 को वोरा ने दोबारा सीएम पद की जिम्मेदारी संभाली।
1989 के चुनाव की जिम्मेदारी मोतीलाल वोरा और माधवराव सिंधिया को मिली। दोनो मिलकर पार्टी को चुनाव नहीं जिता पाए। राजीव गांधी ने इस चुनाव के बाद चार राज्यों के सीएम को बदला, तो मोतीलाल वोरा को भी बदला गया और श्यामाचरण शुक्ल को सीएम बनाया गया। मोतीलाल वोरा को सीएम की कुर्सी से उतारकर 26 मई 1993 को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया। तीन साल तक उत्तर प्रदेश के वोरा गवर्नर रहे और 1996 में राज्यपाल से हटे तो फिर एमपी की सियासत में वापस लौट आए।