ब्रह्मविहारी स्वामी ने जो कहा उसका सार यह था कि अमेरिका की धरती पर यह मंदिर त्रिवेणी संगम है। भारतीय संस्कृति, भारतीय कला और भारतीय अध्यात्म का त्रिवेणी संगम। यह अक्षरधाम सिर्फ पत्थर से बना एक मंदिर नहीं है, बल्कि विदेशी धरती पर भारतीय परंपरा की धरोहर है।
स्वामी महाराज ने विदेशी धरती पर महामंदिर अक्षरधाम बनाने का निर्णय लिया था। उन्होंने जो संकल्प लिया था, आज वो पूरा हो गया। आज मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। प्रमुख स्वामी ने 2012 में अक्षरधाम की वास्तुकला को अंतिम रूप दिया और 2014 में रॉबिन्सविले में इसका भूमिपूजन किया। मंदिर को बनाने का काम साल 2015-23 तक चला।
मंदिर बनाने में 12,500 स्वयंसेवकों ने काम किया। अमेरिका में लंबे समय तक ठंड रहती है। बर्फबारी भी होती रहती है। इन सबके बीच स्वयंसेवकों ने दिन-रात काम किया। कुछ देर बातचीत के बाद ब्रह्मविहारी स्वामी और मैं मंदिर परिसर की ओर बढ़े।
उन्होंने कहा कि कंबोडिया का अंगकोरवाट दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर है। यह दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है। उन्होंने आगे कहा कि मैंने शुरुआत में कहा था कि यह मंदिर कला, अध्यात्म और संस्कृति का त्रिगुण संगम है।
आइए, सबसे पहले यहां पर मौजूद कला के बारे में बताते हैंअक्षरधाम को हजारों साल पुराने वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाया गया है। अगर आप ध्यान से देखेंगे तो बीच में बेल्ट पर भरतनाट्यम मुद्रा बनी हुई है। भरतऋषि ने नाट्यशास्त्र के कई श्लोक लिखे हैं, उन्हीं का अध्ययन करके इसे बनाया गया है।
संगीत कला: भारत में शास्त्रीय संगीत की एक लंबी परंपरा रही है। गायन-वादन प्रमुख है। यंत्र तीन तरह के होते हैं। पवन वाद्ययंत्र, ठोस वाद्ययंत्र और तार वाले वाद्ययंत्र। पुराणों में सरस्वती के विपंची वीणा धारण करने और श्रीकृष्ण के बांसुरी बजाती हुई तस्वीरें मिलती हैं। इस तरह से हमें दो या तीन संगीत उपकरण देखने को मिलते हैं, लेकिन आज भारत में लगभग 700 म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट हैं। इनमें से 150 वाद्य यंत्रों की कला आकृति को पत्थर पर बनाया गया है।
यह मंदिर अपने आप में भारत की आध्यात्मिक परंपरा का प्रतीक है, लेकिन पत्थर का मंदिर बनाना और इसमें आस्था का दिखना, दोनों में फर्क है। अक्षरधाम के बीच के मध्य मार्ग को वैदिक पथ कहा जाता है। किसी मंदिर में ऐसा पहली बार हुआ है, जहां वेदों के चार रूप मिलते हैं।
अक्षरधाम शाश्वत जागरूकता का पुनर्जागरण है। सनातन सभ्यता सनातन हिंदू परंपरा, हिंदू वैदिक परंपरा और सनातन भारतीय संस्कृति का मिश्रण है। खदान से पत्थर निकालकर यहां लाना आसान नहीं था। मंदिर में 2 लाख घन फीट पत्थरों का इस्तेमाल किया गया।
हालांकि यहां कई देशों के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया। जैसे बल्गेरियाई पत्थर, तुर्की का चूना पत्थर, ग्रीस का संगमरमर, चीन का ग्रेनाइट और भारत का बलुआ पत्थर। सभी पत्थरों को तराशने के लिए राजस्थान और वहां से न्यू जर्सी भेजा गया, लेकिन इन पत्थरों में लोगों की आस्था का कंपन जरूर महसूस किया जा सकता है।
स्वामीनारायण मंदिर के प्रवेश द्वार से नीलकंठवर्णी की एक भव्य मूर्ति देखी जा सकती है। इस प्रतिमा के पास एक ब्रह्मकुंड बनाया गया है और इसमें एक फव्वारा भी है। खास बात यह है कि इस ब्रह्मकुंड में माही, ओजत, भागीरथी, गंगा, यमुना, नर्मदा, गंडकी, गोदावरी, हुगली जैसी कई नदियों का संगम होता है।
कुल तीन परतें हैं। सबसे निचली परत जगति अर्थात आधार है, जो जमीन से सटा हुआ है। उसके ऊपर की परत कनपिथ है और सबसे ऊपर की परत मण्डोवर है। अक्षरधाम में सबसे बड़ी जगती है। इतनी बड़ी दुनिया कहीं और नहीं है। जगती 20 फीट लंबी है। इसमें सात संदेश हैं।
यहां वैदिक ऋषियों, उपनिषदों, भगवान वेद व्यास, श्रीकृष्ण, भगवान बुद्ध, भगवान महावीर और स्वामीनारायण की मूर्तियां हैं। इसमें अल्बर्ट आइंस्टीन, सुकरात, मार्टिन लूथर किंग और रूमी जैसी विश्व मूर्तियां भी शामिल हैं। जगति का नाम ज्ञानपीठ है, जिसकी नींव पर यह अक्षरधाम खड़ा है।
185 एकड़ में फैले अक्षरधाम परिसर में दस हजार से ज्यादा मूर्तियां हैं। 151 भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों की नक्काशी और 108 पारंपरिक भारतीय नृत्य रूप और 300 से ज्यादा पवित्र भारतीय नदियां भी शामिल हैं। यह उन हजारों व्यक्तियों की समर्पित शिल्प कौशल का प्रमाण है, जिन्होंने इसके निर्माण के लिए स्वेच्छा से अपना समय और कौशल दिया।
मंदिर एक पूजा स्थल और सांस्कृतिक, शैक्षिक और सामुदायिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में काम करेगा जो एकता, शांति और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देगा।