बॉलीवुड के जाने माने निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन हिन्दी सिनेमा में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाता रहेगा। आज 27 सितंबर को उनकी जन्मतिथि है। उन्हें रोमांस किंग यूं ही नहीं कहा जाता, बल्कि अपनी फिल्मों में उन्होंने रोमांस की परिभाषा ही बदल दी। उनकी फिल्में देखकर लोग प्यार करना सीखे हैं। यश चोपड़ा ने अपने करियर की शुरुआत एक छोटे से कमरे से की थी, जिसके बाद वह जिस मुकाम पर पहुंचे, वहां तक पहुंचना बिल्कुल भी आसान नहीं था। वह एक ऐसे प्रतिभाशाली डायरेक्टर थे, जिन्होंने बॉलीवुड को कई सुपरस्टार दिए। उनकी फिल्में हर पीढ़ी को देखना पसंद हैं।
यश चोपड़ा का जन्म पाकिस्तान के लाहौर में हुआ था। उनका परिवार उन्हें इंजीनियर बनाना चाहता था, लेकिन वह फिल्मों की दुनिया में आना चाहते थे। यश जब 19 साल के थे, तब उनके बड़े भाई बी आर चोपड़ा निर्देशक थे। उनके एक भाई कैमरामैन और एक भाई डिस्ट्रीब्यूटर थे। इसीलिए उनके पिता यह चाहते थे कि घर का कोई बेटा तो कुछ अलग करे। यश के पिता ने उन्हें जालंधर से मुंबई भेजा ताकि वह पासपोर्ट बनवाकर इंग्लैंड इंजीनियरिंग करने चले जाएं। यश मुंबई चले गए, लेकिन उन्हें इंजीनियरिंग बनने में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
एक बार उन्होंने कहा था, ‘मैं तो एक कील भी दीवार में नहीं लगा सकता था और आज भी वही हाल है।’ यश ने मुंबई जाने के बाद अपने दिल की सुनी और ठान ली कि वह निर्देशक बनेंगे। क्योंकि जब उनके मन में एक निर्देशक बनना था, तो वह इंजीनियर कैसे बन सकते थे। उनके भाई बी आर चोपड़ा से वह काफी प्रभावित थे। साथ ही उन्हें फिल्मी दुनिया बहुत पसंद थी। वह अपने भाई की तरह ही निर्देशक बनना चाहते थे।
70 के दशक में यश चोपड़ा ने एक से एक बेमिसाल फिल्में बनाईं। अमिताभ बच्चन-सलीम जावेद-यश चोपड़ा के घातक तालमेल ने सिनेमा को ‘दीवार’ और ‘त्रिशूल’ जैसी शानदार फिल्में दीं। अमिताभ बच्चन को बुलंदियों पर पहुंचाने में यश चोपड़ा का भी हाथ रहा। ‘दाग’ में दो पत्नियों के बीच संघर्ष करते व्यक्ति की दास्तां कहने की हिम्मत उन्होंने की थी। बता दें कि ऐसा नहीं है कि उनकी सभी फिल्मों ने कमाल कर दिखाया हो। उनकी कई फिल्मों को दर्शकों ने नापसंद भी किया है।
80 के दौर की उनकी ज्यादातर फिल्में सामांजस्य नहीं बना पाई। एक बातचीत में यश चोपड़ा ने बताया था कि 80 के दौर में उन्हें अपनी ही एक फिल्म का पोस्टर देखकर लगा था कि उनकी फिल्मों में केवल पोस्टर पर से सितारों के चेहरे बदल रहे हैं, कहानी वही रहती है, जिसके बाद उन्होंने ‘चांदनी’ बनाई। ‘चांदनी’ में उन्होंने ऐसा ताना-बाना बुना की हर तरफ बस चांदनी ही बिखर गई। वहीं, यह भी कहना गलत नहीं होगा कि यश चोपड़ा खूबसूरती के पुजारी थे। रुपहले पर्दे पर हुस्न को कैसे चार चांद लगाए जाते हैं, इसमें वह माहिर थे।