बीजेपी का यूपी में मिशन 80 का लक्ष्य,जानिए वजह

लोकसभा चुनाव से ठीक 7 महीने पहले यूपी में बीजेपी ने अपने 70% जिला अध्यक्ष बदल दिए। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह बीजेपी का यूपी में मिशन 80 का लक्ष्य है। पीएम मोदी के ध्येय वाक्य नेशन फर्स्ट पर अमल करते हुए यूपी बीजेपी ने वर्कर फर्स्ट की पॉलिसी अपनाई है। क्योंकि, इन बदलाव को अगर देखा जाए, तो इस 70% बदलाव में तकरीबन 30 जिला अध्यक्ष ऐसे हैं, जो जिले में ही वर्तमान टीम का हिस्सा थे। उन्हें प्रमोट करके जिला अध्यक्ष बनाया गया है।
बीजेपी ने यूपी में अपने 98 संगठनात्मक जिलों में से लगभग 66 जिलों में नए जिला अध्यक्ष नियुक्त किए। जबकि 32 जिला अध्यक्षों को रिपीट किया। नए बने इन 66 जिला अध्यक्षों में से भी तकरीबन 50% जिला अध्यक्ष उन्हें बनाया गया है, जो जिला संगठन में पहले से ही काम कर रहे थे। यानी कोई जिले में महामंत्री था, कोई जिला उपाध्यक्ष था, तो कोई जिले में ही मंत्री था।
अब इस वर्कर फर्स्ट पॉलिसी के पीछे सबसे बड़ी वजह है। 2024 का लोकसभा चुनाव। इसके लिए अब करीब 7 महीने का ही वक्त बचा है। ऐसे में पार्टी के कई अभियान हाल ही में संपन्न हुए हैं, कुछ चल रहे हैं और तमाम नए अभियान आने वाले दिनों में शुरू होने वाले हैं। इसमें सबसे पहले पीएम मोदी के जन्मदिन पर शुरू हो रहा सेवा पखवाड़ा शामिल है।
अगर बीजेपी वर्कर फर्स्ट की पॉलिसी नहीं अपनाती, तो उसके सामने कई चुनौतियां खड़ी हो सकती थी। सबसे बड़ी चुनौती तो यही होती कि यदि किसी नए व्यक्ति को जिले की कमान दी जाती, तो उसे इन अभियानों के बारे में समझने में ही काफी वक्त लग जाता। जबकि पार्टी का ये मानना है कि अब उसके पास चुनाव को लेकर समय नहीं है। क्योंकि अक्टूबर महीने में ही बीजेपी चुनावी मोड में चली जाएगी।
वर्तमान अभियानों के साथ कई नए अभियान और कार्यक्रम पार्टी शुरू करेगी। इसीलिए जिलाध्यक्ष बनाने में पार्टी ने एक क्राइटेरिया ये रखा कि जिला संगठन में काम कर रहे पदाधिकारियों को ही प्रमोट करके जिला अध्यक्ष बनाया जाए।
इससे जहां कार्यकर्ता का मनोबल उठेगा, तो वहीं उसे पार्टी के अभियानों के बारे में पहले से ही जानकारी रहेगी, उसे कुछ समझाना नहीं होगा और बेहद कम समय में ही वह अपने आप को एडजस्ट कर लेगा। इससे न तो पार्टी के अभियान पर कोई फर्क पड़ेगा और न ही लोकसभा चुनाव की तैयारी पर।
जो 66 जिलाध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं। उनमें हर एक क्षेत्र में जिला संगठन के ही पदाधिकारी को प्रमोट करके जिला अध्यक्ष बनाया गया है। करीब 26 से ज्यादा जिला संगठन के ऐसे पदाधिकारी हैं, जिन्हें अलग-अलग जिलों में जिला अध्यक्ष की कमान सौंप गई है।
मुरादाबाद महानगर के अध्यक्ष बनाए गए संजय शर्मा पहले से ही उपाध्यक्ष थे।
मुरादाबाद जिलाध्यक्ष बनाए गए आकाश पाल भी क्षेत्रीय उपाध्यक्ष रहे।
बिजनौर के जिलाध्यक्ष बनाए गए भूपेंद्र चौहान जिला महामंत्री थे।
बुलंदशहर के जिलाध्यक्ष विकास चौहान जिले में ही उपाध्यक्ष रहे।
संभल के जिला अध्यक्ष हरेंद्र सिंह भी जिला महामंत्री थे।
हापुड़ के जिलाध्यक्ष नरेश तोमर जिला उपाध्यक्ष के तौर पर पहले से ही जिला संगठन में थे।
लखनऊ महानगर के अध्यक्ष बनाए गए आनंद द्विवेदी महानगर उपाध्यक्ष के तौर पर काम कर रहे थे।
लखनऊ जिलाध्यक्ष विनय प्रताप सिंह भी जिला उपाध्यक्ष थे।
सीतापुर जिलाध्यक्ष राजेश शुक्ला जिले में महामंत्री रहे थे।
हरदोई जिलाध्यक्ष अजीत बब्बन जिला महामंत्री रहे हैं।
अयोध्या महानगर अध्यक्ष कमलेश श्रीवास्तव भी क्षेत्रीय मंत्री रहे हैं।
गाजीपुर जिलाध्यक्ष सुनील सिंह पहले से ही जिला महामंत्री थे।
प्रतापगढ़ के जिलाध्यक्ष आशीष श्रीवास्तव जिला मंत्री के तौर पर काम कर रहे थे।
प्रयागराज गंगापार की जिलाध्यक्ष कविता पटेल जिला महामंत्री रही थीं।
चंदौली के जिला अध्यक्ष काशीनाथ सिंह जिला उपाध्यक्ष रहे हैं।
कुशीनगर के जिलाध्यक्ष दुर्गेश राय पहले से ही जिला उपाध्यक्ष थे।
लालगंज के जिलाध्यक्ष सूरज श्रीवास्तव जिला महामंत्री थे।
मऊ की जिलाध्यक्ष नूपुर अग्रवाल जिला महामंत्री थीं।
कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र
शिवराम सिंह जिन्हें कानपुर महानगर अध्यक्ष बनाया गया है, वो महामंत्री थे।
कानपुर देहात के जिलाध्यक्ष मनोज शुक्ला भी जिला उपाध्यक्ष थे।
फतेहपुर जिला अध्यक्ष मुखलाल पाल क्षेत्रीय उपाध्यक्ष थे।
झांसी जिलाध्यक्ष अशोक गिरी जिला उपाध्यक्ष थीं।
जालौन की जिलाध्यक्ष बनाई गईं उर्विजा दीक्षित महिला मोर्चा की क्षेत्रीय अध्यक्ष थीं।
अलीगढ़ के जिलाध्यक्ष कृष्ण पाल सिंह जिला मंत्री थे।
बरेली महानगर अध्यक्ष अधीर सक्सेना भी जिला महामंत्री थे।
आंवला जिलाध्यक्ष आदेश प्रताप सिंह भी जिला महामंत्री थे।
शाहजहांपुर महानगर की अध्यक्ष शिल्पी गुप्ता भी जिले में महिला मोर्चा की अध्यक्ष थीं।
अलीगढ़ महानगर के अध्यक्ष बनाए गए राजीव शर्मा भी क्षेत्रीय मंत्री थे।
मथुरा जिलाध्यक्ष बनाए गए निर्भय पांडे भी किसान मोर्चा के जिला अध्यक्ष के तौर पर जिले में सक्रिय थे।
ये सभी पार्टी की पॉलिसी के अभियानों के बारे में पहले से ही जान रहे हैं। ऐसे में न तो ये जिले और ना ही जिले के कार्यकर्ता इनके लिए नए हैं और ना ही ये जिले के कार्यकर्ताओं के लिए नए हैं।
लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा ने इतने बड़े पैमाने पर जिलों में अपने अध्यक्ष तो बदल दिए। मगर पार्टी मिशन 80 के अपने लक्ष्य को लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। इसीलिए अब पार्टी ने जिलों में जिन अध्यक्षों को हटाया है। उनके लिए भी एक प्लान तैयार किया है। सूत्रों की माने, तो प्रदेश में जल्द ही जो निगम बोर्ड और आयोग है। उनमें खाली पदों को भी भरा जाएगा। वहां पर भी अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी। इनमें प्राथमिकता इन हटाए गए जिला अध्यक्षों को दिया जा सकता है।
दरअसल, 66 जिला और महानगर अध्यक्षों को पार्टी ने हटाया है। मगर इनमें से कुछ जिला अध्यक्षों को निगम, बोर्ड और आयोग में जब अध्यक्ष और मेंबर्स की नियुक्ति की जाएगी, तो वहां पर भी एडजस्ट करने की पार्टी की प्लानिंग है। इसके अलावा कुछ पूर्व जिला अध्यक्षों को क्षेत्रीय टीम में भी शामिल किया जा सकता है। वहीं कुछ को अलग-अलग मोर्चों में भी जगह दी जा सकती है।