कौन हैं दीपक तिजोरी जिसे आप सभी जानते हैं, पढ़िए उनकी जिंदगी के कुछ किस्से

90 के दशक की बॉलीवुड फिल्मों ‘आशिकी’, ‘खिलाड़ी’, ‘जो जीता वही सिकंदर’, ‘सड़क’ या ‘कभी हां कभी ना’, जैसी सभी फिल्मों में आपने बॉलीवुड एक्टर दीपक तिजोरी को तो देखा ही होगा। इन फिल्मों में भले ही वे हीरो के रोल में नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपनी एक्टिंग से फिल्मों के हीरो को बराबर की टक्कर दी थी। कम ही फैंस यह बात जानते होंगे कि दीपक तिजोरी मूल रूप से गुजराती हैं।
दीपक तिजोरी के पिता गुजराती वैष्णव थे जबकि उनकी मां पारसी ईरानी थीं। परिवार में तीन भाइयों में दीपक तिजोरी सबसे छोटे हैं। दीपक तिजोरी कहते हैं- मेरे परदादा और दादा मेहसाणा के रहने वाले थे। हमारा मूल सरनेम ‘तिजोरीवाला’ था, क्योंकि मेरे परदादा का मूल व्यवसाय तिजोरियां बनाना था और इसी से हमें यह उपनाम मिला
तिजोरीवाला से ‘तिजोरी’ कैसे निकला? इस सवाल के जवाब में दीपक मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘मुझे स्कूल और कॉलेज में ‘तिजोरीवाला’ की जगह ‘तिजोरी’ उपनाम दिया गया था और तब से यह उपनाम मेरे साथ जुड़ा हुआ है। हालांकि, मेरे पिताजी को यह ‘तिजोरी उपनाम’ बिल्कुल पसंद नहीं था और वे अक्सर गुस्से में कहते थे कि ‘मैंने अपना उपनाम यानी की ‘तिजोरीवाला’ बर्बाद कर दिया। लेकिन, मैंने तिजोरी उपनाम ही बरकरार रखा।’
दीपक दिलचस्प तरीके से कहते हैं, ‘मैं गुजराती माहौल में बड़ा हुआ हूं। मेरे दादाजी के सात बेटे-बेटियां थे। इस तरह मैं उन सभी के परिवारों के साथ इतने बड़े परिवार में रहा हूं। बचपन में मेरी मां ने मुझे पारसी तो परिवार से मैंने गुजराती भाषा सीखी।
अपने परिवार के बारे में दीपक तिजोरी कहते हैं, ‘परिवार में कोई भी एक्टिंग की फील्ड में नहीं था, लेकिन मां को एक्टिंग का शौक था। शादी से पहले मां फिल्मों में काम करना चाहती थीं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मेरी मां ने बलराज साहब (सुनील दत्त) के साथ एक रेडियो नाटक किया था। उस समय सुनील दत्त को सभी लोग ‘बल्ली’ कहकर बुलाते थे।
मेरे पिताजी का परिवार बहुत रूढ़िवादी था। इसके चलते उन्होंने मम्मी का फिल्मों में काम करना रोक दिया। पिता ने उनसे कहा- ‘मैं तुम्हारे लिए एक फिल्म बनाऊंगा, लेकिन तुम कभी फिल्म में काम नहीं करोगी। पिता के आदेश के बाद मां ने अपने सपने को अधूरा छोड़ पूरा ध्यान परिवार पर केंद्रित कर लिया।

हालांकि, दिल से मां हमेशा चाहती थीं कि हम तीन भाइयों में से कोई एक तो एक्टिंग के फील्ड में जाए। इसलिए बचपन से ही मेरे मन में फिल्म के प्रति कुछ प्रेम था। मैंने स्कूल और कॉलेज में प्ले करना भी शुरू कर दिया था। इस वक्त मां ने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया। मैं डांस भी करता था। ‘कॉलेज में आने के बाद हम क्लास बंक करके डांस सीखने चले जाते थे।’
कॉलेज लाइफ के बारे में बात करते हुए दीपक कहते हैं, ‘कॉलेज में परेश रावल, फिरोज खान अब्बास मेरे सीनियर थे और आमिर खान, शरमन जोशी मेरे जूनियर थे। आशुतोष गोवारिकर मेरे बगल वाले कॉलेज में पढ़ते थे। कॉलेज के दौरान हम सभी ने ‘एमेच्योर थिएटर’ में एक साथ काम भी किया।
इंटर-कॉलेज के नाटकों में काम करते हुए मुझे लगा कि यही मेरा जुनून है। कॉलेज में मैं हीरो का किरदार निभाया करता था, उस वक्त मुझे लगता था कि बॉलीवुड बहुत अच्छा होगा, लेकिन जब मैंने असल दुनिया में पहला कदम रखा तो मुझे एहसास हुआ कि जैसा हम सोचते हैं वैसा कभी नहीं होता। जब मैंने कॉलेज के बाद बाहर की दुनिया में कदम रखा तो मुझे एहसास हुआ कि मैंने कॉलेज में जो ‘हीरोगिरी’ की थी, उसका यहां कोई मतलब नहीं है।’
‘कॉलेज में जब हर कोई मेरे नाटकों की तारीफ करता था तो मुझे लगता था कि मुझे सीधे फिल्म में एंट्री मिल जाएगी। लेकिन जैसे जब हम नौकरी की तलाश में जाते हैं, तो लोग पूछते हैं कि आपके पास कितना अनुभव है?
ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। इसी दौरान कई लोगों ने मुझसे कहा कि तुम्हें पहले एक्टिंग स्कूल जॉइन करना चाहिए। लेकिन मैं उनसे यही कहता था कि मैंने हार्ड कोर थिएटर किया है। हालांकि, बाद में मुझे एहसास हो गया कि किसी एक्टिंग स्कूल का सर्टिफिकेट होने पर ही फिल्मों में एंट्री मिलेगी
बिना किसी गॉडफादर या किसी की पहचान के इंडस्ट्री में कदम रखना कितना मुश्किल है, इसकी हकीकत के बारे में बात करते हुए दीपक कहते हैं, ‘संघर्ष के दौरान दिन में ही तारे दिखने लगे थे। क्योंकि, यह पूरी तरह से अलग दुनिया थी। आप इस इंडस्ट्री में टिक पाएंगे या नहीं, यह तब पता चलता है जब आप यहां अपना पहला कदम रखते हैं।
यहां बड़ा सवाल ये था कि पहला कदम कैसे उठाया जाए, क्योंकि यहां तो पैर रखने की जगह भी नहीं होती। मैंने सभी एक्टर्स के संघर्षों के बारे में पढ़ा, उनसे प्रेरित हुआ और फैसला किया, ‘अगर उन्होंने छोटे-छोटे रोल से शुरुआत की तो मैं भी वही करूंगा। हालांकि मां इससे खुश नहीं थीं।
उन्हें भी लगने लगा था कि मेरे लिए फिल्म इंडस्ट्री सही जगह नहीं है। वे हमेशा कहती थीं कि तुम्हें आगे पढ़ाई करनी चाहिए और डिग्री लेनी चाहिए। इसलिए मैंने पोस्ट ग्रेजुएशन किया और फिर लॉ किया। इसके बाद भी में फिल्मों के लिए ट्राई करता रहा तो पाता कहते थे कि अगर एक्टिंग ही करनी थी तो पढ़ाई में इतना पैसा क्यों बर्बाद किया?’
घर की आर्थिक स्थिति के बारे में खुलकर बात करते हुए दीपक तिजोरी कहते हैं, ‘उस वक्त हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। पिताजी की आमदनी कुछ ख़ास नहीं थी। इसलिए घर की जिम्मेदारी बड़े भाई पर आ गई थी। इसके साथ ही कुछ जिम्मेदारी मुझ पर भी आ गई। मैंने रात में बांद्रा के होटल सी रॉक फ्रंट ऑफिस में काम करना शुरू किया। करीब एक साल तक यहां नाइट ड्यूटी की। मैं सुबह कॉलेज जाने के बाद इंडस्ट्री में काम पाने के लिए प्रोड्यूसर के ऑफिस भी जाता था। मैं भी अपनी सैलरी बड़े भाई की तरह अपनी मां को सौंप देता था। इसी से हमारा घर का खर्च चलता था।
दीपक बताते हैं- इसके बाद मैंने सिने ब्लिट्ज मैगजीन में स्पेस सेलिंग (सेल्स रिप्रेजेंटेटिव) के तौर पर काम किया। किसी पत्रिका में काम करने के बजाय, मैंने एक विज्ञापन कंपनी के लिए काम किया। जब मैं वहां गया तो एजेंसी के लोगों और खासकर अलकाबेन और भरत दाभोलकर ने एक दिन मुझसे मॉडलिंग करने के बारे में कहा। मैं यह काम करने के लिए तैयार था और यहीं से मेरा मॉडलिंग का सफर शुरू हुआ
‘मॉडलिंग करते समय मुझे एहसास हुआ कि मैं अब मैं दूसरा काम नहीं कर सकता। मुझे खुद को एक उत्पाद के रूप में बेचने के लिए एक एजेंसी से दूसरी एजेंसी तक जाना पड़ता था। मैंने मां से कहा कि ‘अब अगर मैं नौकरी छोड़ दूं तो?’ जब मां ने घर के खर्च को लेकर चिंता जताई तो मैंने समझाया कि ‘मैं जो काम करूंगा, उसमें तीन महीने का पैसा एक साथ मिलेगा।’ इससे घर में कोई दिक्कत नहीं होगी। मां की मंजूरी मिलने के बाद मैं पूरी तरह से मॉडलिंग के फील्ड में आ गया।
‘अचानक एक दिन एक्टर अवतार गिल का मुझे फोन आया। उन्होंने कहा, ‘भट्ट साहब (महेश भट्ट) आपको ढूंढ रहे हैं तो उनसे मिलने की कोशिश करें। मैं तुरंत भट्ट साहब से मिलने पहुंचा और उन्होंने फिल्म में मुझे एक्टर के दोस्त का रोल ऑफर किया। मैंने बहुत उदास चेहरे के साथ भट्ट साहब से कहा, ‘ठीक है। मैं यह रोल कर लूंगा। मेरे बर्ताव से भट्ट साहब नाराज हुए। उन्होंने मुझसे कहा- ‘तुम ऐसी बात क्यों कर रहे हो?’ तो मैंने अपने दिल की बात कही। क्या आप मुझे थोड़ा एक्टर बनाएंगे? उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया कि जो रोल मैं तुम्हें दे रहा हूं वह छोटा नहीं है।
‘मैं अब भी राहुल रॉय के संपर्क में हूं’
फिल्म के कलाकारों के साथ जुड़ाव पर दीपक कहते हैं, हम सभी एक-दूसरे के साथ सहज थे। किसी को भी किसी तरह का एटीट्यूड नहीं था। राहुल रॉय से तो मैं बहुत आसानी से जुड़ गया था। मैं आज भी राहुल के टच में हूं। हम एक-दूसरे से फोन पर बात करते हैं और अक्सर मिलते भी हैं।
‘मेरे समय में कास्टिंग डायरेक्टर का चलन नहीं था। हीरो ही तय करते थे कि किसे लेना है और किसे नहीं। डेविड धवन की फिल्म ‘कुली नंबर 1′ में मुझे गोविंदा के दोस्त दीपक का किरदार निभाना था। किरदार का नाम मेरे नाम पर ही रखा गया था। हालांकि, फिर किसी वजह से यह फिल्म एक्टर हरीश को दे दी गई और यहां तक कि फिल्म में किरदार का नाम भी नहीं बदला गया।’
आमिर के साथ ‘जो जीता वही सिकंदर’ और ‘गुलाम’ में काम किया। तो ‘जो जीता वही सिकंदर’ में मैं पहला नहीं था। फिल्म की 70 प्रतिशत शूटिंग अन्य अभिनेताओं के साथ की गई थी और फिर अभिनेता और निर्देशक के बीच झगड़ा हुआ, भट्ट ने मुझसे कहा, ‘आप मंसूर खान से मिलने जा रहे हैं।’ इस फिल्म के लिए मैं पहले ही ऑडिशन दे चुका था, लेकिन तब मुझे एक्सेप्ट नहीं किया गया।’ भट्ट सर ने तब मुझसे कहा, ‘आमिर ने तुम्हारा नाम सुझाया है और अब तुम यह फिल्म करो।’ कुछ ऐसा ही ‘गुलाम’ के ‘चार्ली’ का भी रोल मिला। यहां भी आमिर ने ही मेरा नाम दिया था। तब मुझे एहसास हुआ कि हीरो और प्रोड्यूसर के बीच एक मजबूत रिश्ता होता है।’
जब दीपक तिजोरी से पूछा गया, ‘क्या आपको कभी ऐसा लगता है कि आप सिर्फ हीरो के दोस्त की छवि में फंस गए हैं?’ तो उन्होंने मुस्कुराते हुए स्वीकार किया कि ‘हां, मुझे बहुत फील हुआ, इसलिए मैंने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था। इस तरह 10 साल तक काम करने के बाद मैंने ब्रेक ले लिया। इसके बाद हमने एक फिल्म बनाई ‘पहला नशा’। इसमें शाहरुख, आमिर खान, सैफ अली, पूजा भट्ट, रवीना टंडन, सुदेश बैरी थे।
यह फिल्म आशुतोष गोवारिकर की पहली निर्देशित फिल्म थी। यह फिल्म किसी हॉलीवुड फिल्म से प्रेरित थी और अपने समय से बहुत आगे थी। शायद इसलिए नहीं चली। इस फिल्म से मैंने अपनी छवि बदलने की कोशिश की, लेकिन फिल्म ही फ्लॉप रही।
मैंने साल 2000 तक अपनी छवि अलग करने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा। इसके बाद मैं टीवी प्रोड्यूसर और फिर डायरेक्टर बन गया। ‘दो साल तक टीवी प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया। मैंने ‘सैटरडे सस्पेंस’, ‘थ्रिलर@10’, ‘डायल 100′ जैसे टीवी शो प्रोड्यूस किए। इस शो ने टीवी अवॉर्ड भी जीते। हालांकि, जब सास-बहू के सीरियल्स शुरू हए तो मैं पीछे हट गया।’
अपनी पहली निर्देशित फिल्म ‘ऊप्स’ के बारे में बात करते हुए दीपक तिजोरी कहते हैं, ‘मैंने यह फिल्म 20 साल पहले बनाई थी। इस फिल्म में जो दिखाया गया वो असल जिंदगी की कहानी थी। यह फिल्म भी अपने समय से बहुत आगे की थी। फिल्म अश्लील नहीं थी, लेकिन कंटेंट ऐसा था कि इसे सेक्स और एडल्ट कंटेंट कहकर प्रचारित किया गया। मैं निर्देशन में बिल्कुल नया था इसलिए मुझे मार्केटिंग के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी और जब मुझे एहसास हुआ, तब तक काफी देर हो चुकी थी।
‘मैंने फिल्म का इंग्लिश एडिशन राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए भेजा था। आपको यकीन नहीं होगा कि दिल्ली में जब कुछ लोग फिल्म की स्क्रीनिंग में गए तो फिल्म देखकर हैरान रह गए। उन्हें लगा कि उन्होंने यह क्या देख लिया। वे फिल्म को लेकर बिल्कुल भी निगेटिव नहीं थे। वहां सभी 60 से 65 साल के बंगाली थे। आम तौर पर बंगाली समय से आगे हैं और उनकी सिनेमा विचारधारा भी हमसे आगे रही है।
उन लोगों को तो फिल्म देखने में मजा आया लेकिन मेरे लिए यह बहुत शॉकिंग थी, उस वक्त इंग्लिश कैटेगरी में राहुल बोस और कोंकणा सेन की ‘मिस्टर एंड मिसेज अय्यर’ थी। इन दोनों फिल्मों के बीच क्लैश हुआ। मुझसे कहा गया था कि ‘अगर आपकी फिल्म को नेशनल अवॉर्ड मिलेगा तो हम फिल्ममेकर्स को मैसेज भेजेंगे कि इस तरह की फिल्में बनाओ।’ शायद इसीलिए इस फिल्म को अवॉर्ड नहीं मिला। बस इसी एक सोच ने अवॉर्ड रद्द कर दिया। बाद में फिल्म रिलीज हुई।
“लोग ‘ऊप्स’ को फ्लॉप कहते हैं, लेकिन वह फ़िल्म फ्लॉप नहीं थी। फिल्म सभी टेरेटेरी में बिकी थी। इस फिल्म के बारे में एक इमोशनल बात कहूं तो मैं एक दोस्त के ऑफिस में लंच के लिए गया था, उनके सीईओ ने मुझे केबिन में बुलाया और कहा मुझे यह फिल्म बहुत पसंद आई। पुरुष अपनी जिंदगी में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि घर की महिलाओं को समय ही नहीं दे पाते। वे उन्हें गिफ्ट्स और पैसे ही भेजते रहते हैं। आपने फिल्म में महिलाओं का दर्द दिखाया है और इसके लिए आपको धन्यवाद। आपकी फिल्म की गहराई पसंद आई। ये फिल्म वाकई में इमोशनल थी।
दीपक तिजोरी ने हर बड़े स्टार के साथ काम किया है। इस अनुभव के बारे में बताते हुए वह कहते हैं, ‘मेरे समय में अमिताभ बच्चन के अलावा कोई बड़ा स्टार नहीं था। मेरी मां के दो पसंदीदा अभिनेता दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन।
वह हमेशा चाहती थीं कि मैं उनके साथ काम करूं। लेकिन, दिलीप कुमार के साथ काम करना संभव नहीं था। अमिताभ के साथ दो फिल्में कीं, ‘मृत्युदाता’ और ‘डिपार्टमेंट’। मैं इस फिल्म में केवल अमिताभ बच्चन के साथ काम करना चाहता था।’ वे एक्टिंग के इंस्टीट्यूट हैं। उनके साथ काम करने में बहुत मजा आया।’
‘आज पीछे मुड़कर देखें तो 2000 के बाद मैंने कई फिल्में कीं जो सिर्फ रिश्तों की वजह से कीं। मैंने उस समय अपने मित्रों को लाभ पहुंचाने के लिए ऐसा किया था। हालांकि, अब मैं एक अभिनेता के तौर पर अलग-अलग भूमिकाओं वाली फिल्में कर रहा हूं। डिजिटल प्लेटफॉर्म की वजह से अब हर किसी के पास नौकरी है। अब मैं वे भूमिकाएं नहीं निभाऊंगा जो मैंने पहले निभाई हैं।’ मैं ऐसे किरदार करूंगा, जो मेरी उम्र और व्यक्तित्व के अनुरूप हों।’ फिल्म ‘इत्तर’ एक मिडिल एज की प्रेम कहानी के बारे में बात करती है।
इस फिल्म से जुड़े चार से पांच लोग राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हैं। मैं ‘इत्तर’ के निर्देशक के साथ एक और फिल्म ‘तथ्य’ भी कर रहा हूं। ‘टिप्सी’ में मैं डायरेक्टर और प्रोड्यूसर हूं। यह थ्रिलर फिल्म पांच लड़कियों की जिंदगी पर आधारित है। फिलहाल कुछ स्क्रिप्ट पढ़ रहा हूं। मैं अभी बहुत सारा काम करना चाहता हूं। अभी अभिनय के लिए सबसे अच्छा समय है। मैं अपने ऑल टाइम फेवरेट हीरो संजीव कुमार की फिल्म ‘कोशिश’, ‘खिलौना’ जैसी फिल्में करना चाहता हूं।’
हम अभी जो गुजराती फिल्म कर रहे हैं, उनमें से कई फिल्में बहुत खूबसूरत बनी हैं, ‘हेल्लारो’ देखने के बाद मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी अच्छी फिल्म हमारी भाषा में बनी है।’ अब मेरा इंटरेस्ट गुजराती में काम करने में है। अब यहां अलग-अलग विषयों पर फिल्म बन रही है। अब तो तकनीकी रूप से अच्छी फिल्में भी गुजराती में बनती हैं। दर्शक अब गुजराती फिल्में देखने के लिए सिनेमाघरों का रुख कर रहे हैं।
गुजराती दर्शकों को गर्व है कि हमारे पास भी सिनेमा है। मुझे हमेशा आश्चर्य होता था कि गुजराती उद्योग क्यों पिछड़ रहा है। मराठी लोग फिल्में बनाकर इतना पैसा कमा रहे हैं, हम ऐसा क्यों नहीं कर रहे? हमारे पास थिएटर में इतने सारे नाटक हैं, इतनी कहानी और पटकथा है कि हमें दूसरों से कुछ भी लेने की ज़रूरत नहीं है। जिस तरह से गुजराती फिल्म आगे बढ़ रही है उससे मैं बहुत खुश हूं।
कास्टिंग काउच के बारे में बात करते हुए दीपक तिजोरी कहते हैं, ‘कास्टिंग काउच 100 प्रतिशत है। ऐसा नहीं है। लेकिन ऐसा हर किसी के साथ नहीं होता। ऐसा नहीं है कि ऐसा सिर्फ बॉलीवुड में ही है। अगर बात कॉर्पोरेट इंडस्ट्री की करें तो वहां भी ऐसा ही होता है। यह सार्वभौमिक है, जो लोग अपना ख़्याल रख सकते हैं, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। जैसे जब हम पैदा होते हैं तो हमें पता नहीं होता कि यह दुनिया कैसी है, हम धीरे-धीरे सीखते हैं। तो यह भी वैसा ही है कि आप दुनिया में आते हैं और या तो बेहतर हो जाते हैं या फिर बदतर हो जाते हैं। आप क्या चुनते हैं यह आप पर निर्भर है। इसके दो पहलू हैं, अच्छा और बुरा। आपको बुरे पक्ष में जाने की जरूरत नहीं है. अगर हमें मालूम हो कि यहां गड्ढा है तो हम उस तरफ नहीं जाएंगे। ऐसी परिस्थितियां हर किसी के जीवन में आती हैं, फिर यह हम पर निर्भर करता है कि हम कौन सा रास्ता चुनते हैं।’
अपने बर्थडे सेलिब्रेशन के बारे में बात करते हुए दीपक तिजोरी कहते हैं, ‘मैं पार्टी एनिमल नहीं हूं। मैं कोई सोशल एनिमल नहीं हूं। मैं एक बहुत ही सामान्य शाकाहारी और बोरिंग आदमी हूं। शराब और सिगरेट को हाथ नहीं लगाता। मैं गिनती के दोस्तों के साथ जन्मदिन मनाता हूं। मेरी बेटी हमेशा मुझे केक खिलाने के लिए आती है और वही पल मेरे लिए सबसे कीमती है।