तेजाबी जुबान का इस्तेमाल कर बखेड़ा खड़ा करना, विवाद गहरा देना कई सियासतदानों का शगल रहा है। विवाद-हंगामा-मुकदमा-ट्रोल का चलन, तो मानों सियासत में न्यू नॉर्मल होने के कगार पर है। बीते कुछ महीनों से यूपी के बड़बोले सियासी खिलाड़ियों की जमात में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य अव्वल पायदान पर कब्जा जमाए हैं। जो आग उगलती जुबान के मामले में सपा के फायर ब्रांड सपा नेता आजम खान के कई पुराने रिकॉर्ड तोड़ने की जोर आजमाइश करते दिखे।
सपा की साईकिल पर सवार स्वामी अपनी जुबानी तरकश से नित नए तीरों की बौछार करके कभी सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फॉर्मूले को आसान बनाने की जुगत करते नजर आते हैं, तो कभी साईकिल की राह में चुनौतियों की कीलें बिखेरते दिखते हैं।
शायद विज्ञान के क्रिया-प्रतिक्रिया का फलसफा सियासी अखाड़े में भी लागू होता है, तभी तो स्वामी के हर विवादित बयान पर पलटवार भी हो जाता है। कभी सियासी आलाकमान से झिड़िकियां इनके हिस्से में पहुंचीं, तो कभी मुकदमा दर्ज हुआ, नौबत हाथापाई और जूता फेंक की नूराकुश्ती तक भी पहुंच गई। ये बात दीगर है कि जिस भी दल में स्वामी प्रसाद मौर्य रहे अपने बयानों से उसके लिए मुसीबत का सबब भी बनते रहे।
साल 2014 बसपा के हाथी पर सवार स्वामी ने वैवाहिक आयोजन में गौरी-गणेश के पूजन को मनुवादी व्यवस्था का हिस्सा बताकर इसे दलितों-पिछड़ों को गुमराह करने का कुचक्र करार दिया, तो तत्कालीन बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ ने सवाल उछाला कि बसपा ने स्वयं चुनाव में यह नारा दिया था कि हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है और अब उसकी पूजा करने से मना कर रहे हैं, इसका क्या मतलब है?
विश्व हिंदू परिषद (VHP) के पुरुषोत्तम नारायण सिंह ने नाराजगी जताते हुए कहा कि मौर्य के विष से पूरा समाज विषैला हो गया है, इसकी सजा उन्हें समाज देगा। लोकसभा चुनाव मुहाने पर थे, ऐसे बयानों से होने वाले नुकसान की शिद्दत को भांपकर मायावती ने आनन-फानन में इसे स्वामी का निजी बयान बताकर अपना पल्ला झाड़ा और स्पष्टीकरण मांगकर स्वामी के पेंच कसे। पर जल्द सत्ताविहीन बसपा से स्वामी का मोहभंग हो गया। जिस पार्टी सुप्रीमो के सामने हमेशा दंडवत मुद्रा में नजर आए, उन्हीं मायावती को स्वामी ने ‘दौलत की देवी’ की संज्ञा से नवाज दिया।
साल 2017 में जातीय समीकरणों को साधने की जरूरत आन पड़ी तो स्वामी प्रसाद मौर्य के कथित सनातन विरोधी बयानों को लेकर भगवा खेमा स्मृतिलोप का शिकार हो गया। योगी सरकार की नींव पड़ी तो स्वामी प्रसाद की ताज़पाशी कैबिनेट मंत्री के तौर पर की गई। 28 अप्रैल, 2017 को स्वामी प्रसाद ने तीन तलाक पर बेहद आपत्तिजनक बयान देकर भगवा खेमे में अपने नंबर बढ़ाने का दांव चला, जिसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई।
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने स्वामी के बयानों को लेकर जमकर मजम्मत की। मुस्लिम समाज की ओर से उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त किए जाने की मांग बुलंद हुई, हालांकि बीजेपी आलाकमान ने सीधे कार्रवाई से तो किनारा कसा पर स्वामी को जुबान पर लगाम लगाने की नसीहत जरूर दी गई। पर विवादित बयान देने के आदी स्वामी प्रसाद ने 26 जून, 2017 को रायबरेली के अप्टा गांव में ब्राह्मण बिरादरी के पांच युवकों की नृशंस हत्या के मामले में विवादित बयान देकर बीजेपी नेताओ की सांसें अटका दीं
बीजेपी ने बचाव की मुद्रा अपनाई पर समाजवादी पार्टी ने स्वामी के बयानों पर करारा हमला बोला। पांच सालों तक बीजेपी के पाले में रहकर धार्मिक-सामाजिक पूर्वाग्रहों-बयानों को ठंडे बस्ते में रख स्वामी निष्कंटक सत्ता का आनंद लेते रहे।साल 2022 के विधानसभा चुनावों से ऐन पहले स्वामी प्रसाद को अपने तजुर्बे के बाईस्कोप से सपाई खेमा जीत की राह तय करते दिखा, तो बीजेपी से बगावत का बिगुल फूंककर अखिलेश यादव के बगलगीर हो लिए। खुद को नेवला और बीजेपी-RSS को नाग की उपमा दी और बयान दिया कि स्वामी रूपी नेवला उत्तर प्रदेश से भाजपा का सफाया करके रहेगा। पर इस सियासी दिग्गज का चुनावी आकलन फ्लॉप साबित हुआ। सत्ता से वंचित रह गए स्वामी फिर सामाजिक इंजीनियरिंग के नए प्रयोग में जुट लिए।दशकों पुराने दौर के बामसेफ के नारों को इतिहास के पन्नों से निकालकर झाड़ पोंछकर नए लफ्जों का जामा पहनाकर नई सियासी बिसात बिछाने लगे। इस उम्मीद के साथ शायद ये नब्बे के दशक में बसपा के मानिंद उनके सियासी भविष्य की राह को सत्तापथ तक पहुंचा दे।
इन्होंने रामचरितमानस की चौपाइयों की आलोचना करके नए विवाद के बीज रोपे। इस उम्मीद के साथ कि 85-15 के फॉर्मूले के हिसाब से वोटों का बंटवारा हुआ, तो चुनावी जीत के वारे न्यारे हो जाएंगे। शिवपाल सिंह यादव ने इस बयान को स्वामी का निजी बयान बताकर विवाद थामने की कोशिश जरूर की, पर सपाई खेमे में इसकी वजह से गुटबाजी उभर आई, अगड़ा बनाम पिछड़ा के खांचे दिखाई दिए।समाजवादी पार्टी के विधायक दल के मुख्य सचेतक मनोज पांडेय और पूर्व मंत्री व टीम अखिलेश के युवा चेहरे पवन पांडेय ने बयान के खिलाफ मोर्चा खोला, तो सपा विधायक तूफानी सरोज सहित कई नेता स्वामी प्रसाद के समर्थन में लामबंद हो गए। स्वामी के खिलाफ मुखर होने पर आगरा से सपा उम्मीदवार रहीं रोली तिवारी और प्रयागराज पश्चिम की सपा उम्मीदवार रही रिचा सिंह को अखिलेश ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
मौनं स्वीकृति: लक्षणम् यानी मौन रहना भी स्वीकार करना बताकर स्वामी प्रसाद मौर्य ने विवादित बयानों को लेकर साधी गई अखिलेश की चुप्पी को अपने पक्ष में बताने का प्रयास किया
सपा संगठन के मंच से दिखे नदारद हालांकि, 19 मार्च को कोलकाता में समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के मंच पर स्वामी प्रसाद मौर्य को जगह नहीं मिली, तो संदेश निकला कि सपा थिंकटैंक इस बड़बोले नेता के बयानों को लेकर सतर्क है और सियासी नुकसान की हदों को लांघने के मूड में नहीं है।
आस्था के मुद्दों के लेकर दिए गए बयानों ने स्वामी मौर्य की कानूनी मुश्किलें भी बढ़ा दी हैं। मुकदमे दर्ज हुए-चार्जशीट दाखिल हुई। लखनऊ में एक चैनल के डिबेट में महंत राजूदास से हाथापाई हुई, तो अब सपा के महाओबीसी सम्मेलन में जूता कांड से रुबरू होना पड़ा। हालांकि स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस घटना को दलित-पिछड़ों के स्वाभिमान से जोड़कर अपना पक्ष मजबूत करने की भरपूर कवायद की।
जानकार मानते हैं कि ज्यों ज्यों चुनावी बयार नजदीक आती जाएगी त्यों त्यों विवादित बयान-हंगामेदार कवायदों का तूफान उठता ही रहेगा। चूंकि हाल फिलहाल यूपी में विवादित बयानों के मामले में स्वामी ही बढ़त बनाए हैं। लिहाजा आने वाले दिनों में भी बड़बोले स्वामी की जुबान फिसलने के भरपूर आसार हैं। पर इसका नफा नुकसान किसे होगा इसे लेकर सियासी पंडित आकलन जरूर कर रहे हैं।
मऊ में स्याही कांड के बाद अब लखनऊ में जूता कांड हुआ है। सोमवार को सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या को वकील की ड्रेस पहनकर आए युवक ने जूता फेंककर मारा। स्वामी प्रसाद सपा के पिछड़ा वर्ग के महासम्मेलन में शामिल होने के लिए इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान पहुंचे थे। कार से उतरकर वह अंदर जा रहे थे, तभी युवक ने जूते से उन पर हमला कर दिया। जूता स्वामी प्रसाद को छूता हुआ दूर गिरा।