भारतीय जनता पार्टी ने शनिवार को अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी का ऐलान किया। 38 नामों की लिस्ट में तारिक मंसूर और अब्दुल्ला कुट्टी पर सबकी नजर ठहरी, क्योंकि इन्हें BJP के नए मुस्लिम चेहरे के तौर पर देखा जा रहा है। पसमांदा मुस्लिम तारिक मंसूर को BJP का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है।
हिंदुत्व के नाम पर जीत रही BJP को मुस्लिम वोट की जरूरत क्यों है? कौन हैं पसमांदा मुस्लिम, जिन्हें BJP रिझाने की कोशिश कर रही है…
तारिक मंसूर मुस्लिम पसमांदा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। वह मई 2017 से अप्रैल 2023 तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति भी रह चुके हैं। उनके कुलपति रहते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में CAA और NRC के खिलाफ प्रदर्शन हुए थे।
उस समय पहली बार यूनिवर्सिटी कैंपस के अंदर पुलिस घुस गई थी। इस समय छात्रों के पक्ष में नहीं खड़े होने को लेकर उनकी आलोचना की गई थी। बाद में अप्रैल 2023 में तारिक मंसूर BJP की ओर से विधान परिषद सदस्य बने। इससे पहले BJP की ओर से 3 मुस्लिम नेता बुक्कल नवाब, मोहसिन रजा और दानिश आजाद अंसारी विधान परिषद सदस्य चुने गए थे।
ऐसा माना जाता है कि BJP जिस दारा शिकोह की कब्र को तलाश करने की बात करती है, उस थॉट को पहली बार इन्होंने ही दिया था। मंसूर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के भी करीब रहे हैं। इन्हीं वजहों से वह BJP के बड़े नेताओं की पसंद बन गए, जिसके बाद अब उन्हें पार्टी में उपाध्यक्ष का पद मिला है।
पसमांदा’ शब्द फारसी भाषा से लिया गया है, जिसका मतलब है- समाज में पीछे छूट गए लोग। भारत में पिछड़े और दलित मुस्लिमों को पसमांदा कहा जाता है।
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज’ के संस्थापक और राज्यसभा सांसद रहे अली अनवर अंसारी से बात की तो उन्होंने दावा किया कि फारसी और उर्दू के इस शब्द का पहली बार इस्तेमाल उन्होंने ही किया है।
अली अनवर कहते हैं कि मुस्लिम समाज भी जातियों में बंटा है। जो मुस्लिम जातियां सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ी हैं, उन्हें पसमांदा मुस्लिम कहते हैं। इनमें वो जातियां भी शामिल हैं जिनसे छुआछूत होती है, लेकिन यह हिंदू दलितों की तरह अनुसूचित जातियों यानी SC की सूची में शामिल नहीं हैं।
अलग-अलग जातियों में बंटे पिछड़े मुस्लिमों को ‘जाति से जमात’ की नीति पर एकजुट करने के लिए पसमांदा शब्द की शुरुआत हुई थी। अब भारतीय मुस्लिमों में पसमांदा मुस्लिमों की आबादी 80% से ज्यादा है।