10 अगस्त को सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर ये बात PM नरेंद्र मोदी ने कही है। दरअसल, विपक्षी सांसदों ने मणिपुर मामले में PM मोदी पर देश तोड़ने के आरोप लगाए थे। इसके जवाब में PM मोदी ने कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका को देने का मुद्दा उठाकर कांग्रेस पर हमला बोला है।
भारत के तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच काफी बड़ा समुद्री क्षेत्र है। इस समुद्री क्षेत्र को पाक जलडमरूमध्य कहा जाता है। यहां कई सारे द्वीप हैं, जिसमें से एक द्वीप का नाम कच्चाथीवू है।
श्रीलंका के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक कच्चाथीवू 285 एकड़ में फैला एक द्वीप है। ये द्वीप बंगाल की खाड़ी और अरब सागर को जोड़ता है।
ये द्वीप 14वीं शताब्दी में एक ज्वालामुखी विस्फोट के बाद बना था। जो रामेश्वरम से करीब 19 किलोमीटर और श्रीलंका के जाफना जिले से करीब 16 किलोमीटर की दूरी है। रॉबर्ट पाक 1755 से 1763 तक मद्रास प्रांत के अंग्रेज गवर्नर हुआ करते थे। इस समुद्री क्षेत्र का नाम रॉबर्ट पाक के नाम पर ही पाक स्ट्रेट रखा गया।
समुद्र के बीचों-बीच स्थित इस वीराने द्वीप पर भारत और श्रीलंका दोनों लंबे समय से अपना-अपना दावा करते रहे हैं। 19वीं सदी तक ये इलाका रामनाद साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था।
17वीं सदी में रघुनाथ देव किलावन ने खुद को रामनाद साम्राज्य का राजा घोषित कर दिया। इसके बाद कच्चाथीवू द्वीप पर उनका राज हो गया। 1902 में भारत की ब्रिटिश हुकूमत ने इस द्वीप पर शासन का अधिकार रामनाद या रामनाथपुरम साम्राज्य के राजा को दिया।
इसके बाद रामनाथपुरम के राजा यहां के लोगों से मालगुजारी वसूलते थे। वो अंग्रेज अधिकारी को इसके बदले में एक खास रकम देते थे। 1913 में भारत सरकार के सचिव और रामनाथपुरम के राजा के बीच एक समझौता हुआ था। इस समझौते के मुताबिक कच्चाथीवू को श्रीलंका के बजाय भारत का हिस्सा बताया गया है।
1921 में पहली बार इस क्षेत्र को लेकर भारत और श्रीलंका के बीच विवाद हुआ। उस समय ये द्वीप अंग्रेजों के अधीन था। अंग्रेजों ने इस विवाद पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। इसकी वजह से ये विवाद बढ़ता चला गया। इससे पहले दोनों देशों के मछुआरे इस द्वीप को जाल सूखाने के लिए इस्तेमाल करते थे।
1974 से 1976 के बीच उस समय की भारतीय PM इंदिरा गांधी और श्रीलंका की PM श्रीमाव भंडारनायके ने चार समुद्री जल समझौतों पर दस्तखत किए। इसके तहत भारत ने इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया। तब से श्रीलंका इस द्वीप पर कानूनी तौर पर अपना दावा ठोकता है।
जब भारत सरकार ने इस द्वीप को लेकर श्रीलंका के साथ समझौता किया था तो तमिलनाडु सरकार ने इसका विरोध किया था। तब तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने PM इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर कहा था कि ये द्वीप ऐतिहासिक रूप से रामनाद सम्राज्य की जमींदारी का हिस्सा है।
ऐसे में भारत सरकार को किसी भी कीमत पर ये इलाका श्रीलंका को नहीं देना चाहिए। हालांकि, इस समझौते के तहत भारतीय मछुआरों को यहां मछली मारने और जाल सुखाने की इजाजत दी गई थी।
इसी वजह से भारतीय मछुआरे वहां जाते रहते थे, लेकिन 2009 के बाद श्रीलंका नौसेना वहां जाने वाले भारतीय मछुआरे को गिरफ्तार करने लगी।
भारत और श्रीलंका के बीच हुए इस समझौते के 15 साल बाद ही 1991 में तमिलनाडु विधानसभा ने कच्चाथीवू को एक बार फिर से भारत में मिलाने की मांग की।
इसके लिए राज्य सरकार ने एक प्रस्ताव पास किया था। श्रीलंका के गृहयुद्ध के दौरान उसके उत्तरी सीमाओं पर तमिल उग्रवादी संगठन LTTE का कब्जा था।
इसकी वजह से तमिलनाडु के मछुआरे मछली पकड़ने के लिए इस द्वीप तक आसानी से पहुंचते थे। 2008 में जयललिता ने 1974 और 1976 के बीच हुए कच्चाथीवू द्वीप समझौतों को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
2009 में श्रीलंका की सरकार और LTTE के बीच की लड़ाई लगभग खत्म होने वाली थी। LTTE संगठन कमजोर हो रहा था। ऐसे में श्रीलंका सरकार ने अपनी सीमाओं पर सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत कर दिया। जब भी तमिलनाडु के मछुआरे मछली मारने के लिए इस द्वीप के करीब जाते थे, श्रीलंका की पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती थी।
इसी वजह से तटीय क्षेत्र में रहने वाले लोग इस द्वीप को वापस लेने की मांग एक बार फिर से करने लगे।
श्रीलंका सरकार का कहना है कि समुद्र में उसके जल क्षेत्र में मछलियों और दूसरे जलीय जीवों की कमी हुई है, जिससे उनके मछुआरों की आजीविका प्रभावित हुई है। ऐसे में भारत के मछुआरों को वो इस क्षेत्र में मछली मारने की इजाजत नहीं दे सकते हैं।