राजेंद्र कुमार का लकी चार्म बदनाम भूत बंगला था, बुरे दिनों में राजेश खन्ना को बेचा अपना घर

1960 के दशक में एक हीरो ऐसा था जिसने करीब दर्जन भर फिल्में बैक-टू-बैक ऐसी दीं, जिन्होंने थिएटर में सिल्वर या गोल्डन जुबली मनाई। इतनी जुबली हिट फिल्में की फैंस ने उस एक्टर का नाम ही रख दिया जुबली कुमार। इनका असली नाम था राजेंद्र कुमार। करियर की 80 फिल्मों में से 35 ऐसी फिल्में थीं, जिन्होंने सिनेमाघरों में 25 से लेकर 50 हफ्ते तक गुजारे। राजेंद्र कुमार फिल्मों में सफलता की गारंटी माने जाते थे। राजेश खन्ना के आने के पहले तक हिंदी सिनेमा में राजेंद्र कुमार ही सबसे व्यस्त एक्टर रहे।
कभी एक्स्ट्रा कलाकार की तरह छोटे रोल से करियर की शुरुआत करने वाले राजेंद्र कुमार कुछ ही फिल्मों के बाद प्रोड्यूसर-डायरेक्टर्स की पहली पसंद हो गए थे। अविभाजित भारत के सियालकोट, पंजाब में जन्मे राजेंद्र कुमार बंटवारे के बाद परिवार के साथ भारत आ गए थे। मुफलिसी से शुरू हुआ दौर सफलता के उस मुकाम तक पहुंच गया कि स्ट्रगल के दिनों में मुसाफिर खाने में जिस खाट पर वो सोते थे, वो खाट भी फेमस हो गई और लोग उस पर सोने के लिए भी ज्यादा रकम चुकाने लगे।
हालांकि, बुलंदी पर पहुंचे सितारे जमीन पर भी आए और अपने आखिरी दिनों में उन्होंने काफी बुरा वक्त भी देखा। अपना पसंदीदा बंगला, जिसे लेने के बाद उन्होंने दो दर्जन से ज्यादा हिट फिल्में दी थीं, वो राजेश खन्ना को बेचना पड़ा। लोग उसे भूत बंगला कहते थे और कोई उसे खरीदने को तैयार नहीं था। तब राजेंद्र कुमार ने उसे खरीदा था, लोग कहते थे कि इस बंगले ने ही उनकी किस्मत बदली थी और जब राजेश खन्ना ने वो बंगला खरीदा तो उनकी भी किस्मत बदल गई। एक के बाद एक उन्होंने भी 15 सुपहिट फिल्में दीं।
20 जुलाई 1927 को सियालकोट, पंजाब में जन्में राजेंद्र कुमार के पिता एक बड़े कपड़ा व्यापारी थे और दादाजी मिलिट्री कॉन्ट्रैक्टर। रईस घराने में उनकी जिंदगी मजे में कट रही थी कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे ने उनके परिवार से सबकुछ छीन लिया। दंगों के बीच कारोबार चोपट हो गया और पूरे परिवार को अपना सब कुछ छोड़कर भारत आना पड़ा। परिवार ने दिल्ली में बसना मुनासिब समझा।
दिल्ली में हाथ-पैर मारकर राजेंद्र कुमार ने पुलिस में भर्ती होने की तैयार कर ली, लेकिन एक दिन अचानक उनका मन बदल गया। दिन-रात फिल्में देखने वाले राजेंद्र कुमार फिल्मी दुनिया से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने पुलिस की नौकरी छोड़कर फिल्मों में जाने की ठान ली, लेकिन दिल्ली से मुंबई जाने के लिए न जेब में रुपए थे न कोई मदद। यही सोचते हुए उनकी नजर उनकी कलाई में बंधी उस कीमती घड़ी पर पड़ी, जो उनके पिता ने उन्हें दी थी। राजेंद्र कुमार की वो घड़ी उनका समय बदलने वाली थी। उन्होंने उस घड़ी को 63 रुपए में बेचा। 13 रुपए में बॉम्बे की टिकट खरीदी और 50 रुपए जेब में लिए निकल पड़े।
दिल्ली से मुंबई आए राजेंद्र कुमार बॉम्बे गेस्ट हाउस के एक कमरे में ठहरे थे, जो कम कीमत पर सोने के लिए खाट देता था। ये वही गेस्ट हाउस था, जहां संघर्ष के दिनों में धर्मेंद्र, राज कुमार जैसे स्टार्स भी ठहर चुके थे। जब कुछ सालों बाद राजेंद्र कुमार स्टार बने तो गेस्ट हाउस वालों ने उस खाट को भी फेमस बना दिया। गेस्ट पहुंचे लोगों को बताया जाता था कि यही वो खाट है जिस पर राजेंद्र साहब सोते थे। ये सुनते ही लोग दोगुनी कीमत में उस खाट पर सोने के लिए तैयार हो जाया करते थे
खैर, राजेंद्र कुमार मुंबई पहुंचे तो उन्हें लगा कि वो हीरो बनने के लिए ठीक नहीं है। कुछ समय बाद गीतकार राजेंद्र कृष्णन ने उन्हें डायरेक्टर एच.एस.रवैल के पास 150 रुपए महीना के वेतन पर असिस्टेंट का काम दिलवा दिया। पतंगा, सगाई, पॉकेट मार जैसी कई फिल्मों में उन्होंने बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया, लेकिन डायरेक्टर एच.एस.रवैल समझ चुके थे कि उनमें हीरो बनने के गुर हैं। उन्होंने सबसे पहले राजेंद्र कुमार को फिल्म पतंगा में एक छोटा सा रोल दिया। ये देखकर दूसरे डायरेक्टर भी उन्हें अपनी फिल्मों में छोटे-मोटे रोल देने लगे।

डायरेक्टर केदार शर्मा ने राजेंद्र कुमार को 1950 की फिल्म जोगन में दिलीप कुमार और नरगिस के साथ कास्ट किया। जब फिल्म रिलीज हुई तो राजेंद्र कुमार के छोटे से रोल ने हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया, उन लोगों में प्रोड्यूसर देवेंद्र गोयल भी शामिल थे। देवेंद्र ने उनके हुनर को परखते हुए उन्हें फिल्म वचन (1955) से लॉन्च किया। इस फिल्म के लिए उन्हें महज 1500 रुपए फीस दी गई थी।
ये फिल्म 25 हफ्तों तक सिनेमाघरों में रही थी। पहली फिल्म के समय ही कहा गया कि हिंदी सिनेमा में एक नए सितारे का जन्म हुआ है। आगे राजेंद्र कुमार ने मदर इंडिया से देशभर में ऐसी पहचान और कामयाबी हासिल की, कि उन्हें कभी पलटकर नहीं देखना पड़ा। 4 दशकों के एक्टिंग करियर में उन्होंने करीब 80 फिल्मों में काम किया। 60 के दशक में उनकी फिल्में धूल का फूल, घराना, दिल एक मंदिर, मेरे महबूब, संगम, आई मिलन की बेला, आरजू, सूरज, झुक गया आसमान, तलाश और गंवार जैसी फिल्में इतनी बड़ी हिट हुआ करती थीं कि 25 हफ्तों तक सिनेमाघरों में दर्शकों की भीड़ रहती थी। यही कारण था कि राजेंद्र कुमार को जुबली कुमार नाम दिया गया था। 35 फिल्में सिल्वर या गोल्डन जुबली हिट रहीं।
राजेंद्र कुमार हिंदी सिनेमा में नए-नए आए थे और उन्हें कामयाबी नहीं मिली थी। उसी समय उनका एक रिश्तेदार उनके पास आया, जिसने उनकी मुलाकात अपने दोस्त से करवाई।
उस दोस्त ने मुलाकात के दौरान राजेंद्र कुमार से कहा- मेरी एक बेटी है, अगर तुम उसे अपने काबिल समझो तो उससे शादी कर लो।
राजेंद्र कुमार ने कहा- देखिए मैं अभी मुंबई में स्ट्रगल कर रहा हूं। क्या आपकी बेटी मुफलिसी के हालातों में मेरा साथ दे पाएगी?
राजेंद्र कुमार की तरफ से रजामंदी मिलने पर उस आदमी ने अपनी बेटी शुक्ल कुमार से उनकी बातचीत करवाई। एक बातचीत के बाद ही दोनों की शादी पक्की करवा दी गई।
कुछ समय बाद जब वो अपने दिल्ली स्थित घर लौटे तो देखा कि घरवाले एक दूसरी लड़की पसंद कर चुके हैं। परिवार से सम्मानपूर्वक इनकार करते हुए उन्होंने कह दिया कि वो पहले ही किसी को शादी करने का वचन दे चुके हैं और वो उसी लड़की से शादी करेंगे। कामयाबी मिलने के बाद परिवार के आशीर्वाद के साथ राजेंद्र कुमार ने शुक्ला कुमार से शादी हुई, जो हिंदी सिनेमा के बहल परिवार से ताल्लुक रखती हैं। वो रमेश बहल और श्याम बहल की बहन हैं और गोल्डी बहल की आंटी हैं। इस शादी से उन्हें एक बेटा कुमार गौरव और दो बेटियां काजल और डिंपल हुईं।
60 के दशक के शुरुआत की है जब राजेंद्र कुमार फिल्मों में जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे। एक दिन कार्टर रोड से गुजरते हुए उनकी नजर वहां एक खंडरनुमा बंगले पर पड़ी। उन्हें पहली नजर में ही वो बंगला इतना भा गया कि उन्होंने उसे खरीदने का मन बना लिया। कुछ लोगों ने समझाया कि वो भूतिया बंगला खरीदने लायक नहीं है, लेकिन वो मन बना चुके थे। लेकिन अब बात पैसों पर आकर अटक गई। वो बंगला एक्टर भारत भूषण का था जिसकी उस समय कीमत 60 हजार रुपए थी। उनके पास उतने पैसे नहीं थे कि वो उसे खरीद पाएं। लेकिन इसी बीच अचानक एक दिन उनके घर पर राज कपूर की एंट्री हुई।
राज कपूर ने अचानक उन्हें एक फिल्म ऑफर कर दी और एडवांस की रकम भी अदा कर दी। जब उन्हें पता चला कि राजेंद्र कुमार बंगला खरीदना चाहते हैं तो राज कपूर ने उन्हें 2 और फिल्मों के लिए एडवांस दे दिया। उस रकम से राजेंद्र कुमार ने वो भूत बंगला खरीद लिया। भूत बंगले नाम से मशहूर उस बंगले में रहने पहुंचने के बाद से ही राजेंद्र कुमार ने एक के बाद एक हिट फिल्में दीं। उस बंगले का नाम उन्होंने अपनी बेटी डिंपल के नाम पर रखा था। वो इसे अपने लिए लकी मानते थे।
60 के दशक में राजेंद्र कुमार ने सायरा बानो के साथ आई मिलन की बेला (1965), झुक गया आसमान (1968) और अमन (1967) जैसी फिल्में ब्लॉकबस्टर साबित हुईं। साथ काम करते हुए सायरा बानो, राजेंद्र कुमार को पसंद करने लगीं। दोनों की नजदीकियां तो बढ़ रही थीं, लेकिन सायरा बानो के परिवार को दोनों के रिश्ते से ऐतराज था। क्योंकि सायरा बानों बचपन से ही दिलीप कुमार की फैन थीं, तो परिवार ने दिलीप कुमार से मदद मांगी और कहा कि वो सायरा को समझाएं कि वो शादीशुदा राजेंद्र कुमार से अलग हो जाएं।
सायरा के परिवार की खातिर जब दिलीप कुमार उन्हें समझाने पहुंचे तो बात पूरी तरह पलट गई। जिद में सायरा ने कह दिया कि क्या अगर में राजेंद्र कुमार से अलग हो जाऊं तो क्या आप मुझसे शादी करेंगे। दिलीप कुमार ने उन्हें समझाने के लिए हामी भर दी, क्योंकि इस मुलाकात में वो भी सायरा को पसंद कर बैठे थे। इस तरह सायरा ने राजेंद्र कुमार ने किनारा कर दिलीप कुमार से शादी कर ली।
एक समय था जब राजेंद्र कुमार नूतन को पसंद करते थे। एक बार तो वो नूतन का हाथ मांगने सीधे उनकी मां शोभना समर्थ के पास पहुंच गए। शोभना ने उस समय ना सिर्फ शादी से इनकार किया बल्कि उनकी खूब बेइज्जती भी की। इसके बाद से ही नूतन और राजेंद्र कुमार ने साथ काम करना छोड़ दिया। ये दुश्मनी सालों बाद सावन कुमार ने खत्म करवाई।
70 के दशक की बात थी जब राजेंद्र कुमार का करियर ढ़लान पर था। राजेश खन्ना के आते ही उनका स्टारडम फीका पड़ गया था। करियर पर ब्रेक लगने की वजह से उन्होंने अपने घर से निकलना तक छोड़ दिया था। एक दिन सावन कुमार अपनी फिल्म साजन बिना सुहागन का ऑफर लेकर राजेंद्र कुमार के घर पहुंच गए। सावन जानते थे कि अगर फिल्म में नूतन रहेंगी तो वो इनकार नहीं करेंगे। जब सावन पहुंचे तो राज कपूर साहब पहले ही घर पर मौजूद थे। सावन ने उन्हीं के सामने उन्हें 11 हजार रुपए का चेक थमाया और बात पक्की कर ली।
सावन कुमार ने जवाब दिया- आप फिल्म का क्लैप देने नहीं सिल्वर जुबली अवॉर्ड देने आइएगा।
वाकई साजन बिना सुहागन सिल्वर जुबली रही और राज कपूर ने ही सिल्वर जुबली अवॉर्ड सावन को दिया। इस फिल्म के जरिए असल जिंदगी में पति-पत्नी न बन सके राजेंद्र कुमार-नूतन पर्दे पर पति-पत्नी बने।
70 के दशक के आते-आते राजेंद्र कुमार के करियर का बुरा दौर शुरू हुआ। उनकी कई फिल्में फ्लॉप हुईं और नए ऑफर मिलने भी बंद हो गए। आर्थिक तंगी का दौर आना शुरू हुआ तो राजेंद्र कुमार को न चाहते हुए भी बंगला बेचना पड़ा। जैसे ही राजेश खन्ना को पता चला कि वो सीफेस बंगला बिक रहा है तो वो तुरंत 60 हजार रुपए लेकर राजेंद्र के पास पहुंच गए और बंगला खरीद लिया। जिस दिन वो लकी बंगला बिका, उस रात राजेंद्र कुमार उसे खोकर रातभर रोते रहे
राजेश खन्ना ने उस बंगले की मरम्मत करवाकर उसे आशीर्वाद बंगला नाम दिया, जहां वो खुद रहते थे। राजेश खन्ना जब उस बंगले में रहने पहुंचे तो उन्होंने बैक-टु-बैक 15 हिट फिल्में दी थीं। ये बंगला राजेश को इतना प्यारा था कि उन्होंने जिंदगी के आखिरी कुछ साल यहीं गुजारे। 18 जुलाई 2012 को हुई राजेश की मौत के बाद ये बंगला बिजनेसमैन शशि किरण शेट्टी ने 90 करोड़ रुपए में खरीदा था। आज उस जगह 5 मंजिला इमारत है।
कुमार गौरव पिता की राह पर चलकर हमेशा से ही एक्टर बनना चाहते थे। पढ़ाई पूरी कर जब कुमार गौरव घर लौटे तो खुशी में परिवार ने साथ खाना खाया। खाने की टेबल पर कुमार ने जो कहा वो सुनकर हर कोई दंग रह गया।

कुमार गौरव- पापा मैं भी आपकी तरह हीरो बनना चाहता हूं। आपका इंडस्ट्री में बड़ा रुतबा है, बड़े लोगों से कॉन्टेक्ट है। मेरी मदद करिए और मुझे फिल्मों में काम दिलवा दीजिए। हीरो बनना मेरा सपना भी है और जिद भी
पहला टेस्ट हुआ और कुमार गौरव सही तरह डायलॉग नहीं बोल सके। राजेंद्र कुमार ने ये देखा तो अपने हाथ पीछे खींच लिए। राज कपूर, राजेंद्र कुमार के पक्के दोस्त थे। कुमार गौरव ने उन्हीं को असिस्ट करना शुरू कर दिया। दो साल बाद एक दिन फिर कुमार गौरव ने चिढ़कर पिता से कह दिया, मुझे हीरो बनना है। शर्त अब भी वही थी कि पहले स्क्रीनटेस्ट दो। इस बार कुमार गौरव का स्क्रीनटेस्ट आरके स्टूडियो में हुआ, जहां राज कपूर भी मौजूद थे।

राज कपूर को सामने देखकर कुमार गौरव इतना नर्वस हो गए कि डायलॉग बोलना तो दूर वो कुछ बोल ही नहीं सके। अब राजेंद्र कुमार की बर्दाश्त की हद खत्म हो गई थी। उन्होंने सबके सामने चिल्लाते हुए बेटे पर फट पड़े- तुम राज कपूर जैसी शख्सियत के साथ काम करने के बावजूद फिसड्डी ही रह गए, तुम हीरो बनने के लायक ही नहीं हो।
राज कपूर ने स्थिति संभाली और कहा कि इसे रोशन तनेजा के एक्टिंग स्कूल भेज दो। जब कुमार लौटे तो राजेंद्र कुमार ने पहले ही बेटे के लिए फिल्म लव स्टोरी प्रोड्यूस करने की तैयारी कर रखी थी। लव स्टोरी में राजेंद्र कुमार, कुमार गौरव के पिता के रोल में नजर आए थे।
1981 में रिलीज हुई फिल्म लव स्टोरी से कुमार गौरव मशहूर तो हुए, लेकिन कुछ फ्लॉप फिल्मों से वो अपना स्टारडम बरकरार नहीं रख सके। फिल्में मिलनी बंद हो गईं और कुमार गौरव परेशान रहने लगे। अब कुमार गौरव फिर पिता के सामने जिद पर अड़ गए। वो चाहते थे कि पिता उनके लिए फिल्म प्रोड्यूस करें, लेकिन वो पहले ही आर्थिक तंगी में थे और उनका बंगला भी बिक चुका था।
घर में तनाव बना रहा और कुमार गौरव जिद छोड़ने को तैयार नहीं थे। जब पत्नी शुक्ल कुमार ने पति को समझाया कि बेटे की जिद पर एक फिल्म बना दें, तो राजेंद्र कुमार ने 1983 में कुमार गौरव के लिए फिल्म लवर्स बनाई। इसके लिए उन्होंने अपना बंगला गिरवी रखा था। तमाम कोशिशों के बावजूद कुमार गौरव हिंदी सिनेमा में टिके रहने में फेल हो गए और उन्होंने इंडस्ट्री छोड़ दी।
12 जुलाई 1999 को अपने 72वें जन्मदिन के ठीक 8 दिन पहले राजेंद्र कुमार का निधन हो गया। राजेंद्र कुमार की जिंदगी के आखिरी 2 साल बेहद दर्दनाक रहे। कभी ब्लड ट्रांसफ्यूजन के लिए अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ते तो कभी खून की कमी हो जाती थी। आखिरी समय में राजेंद्र कुमार इतना परेशान रहने लगे कि उन्होंने इलाज करवाने और दवाइयां खाने से साफ इनकार कर दिया। 11 जुलाई को बेटे कुमार गौरव के जन्मदिन के दिन जब राजेंद्र कुमार सोने गए तो अगले दिन सुबह उठे ही नहीं। उन्हें नींद में ही हार्ट अटैक आया था। बता दें कि कुमार गौरव ने सुनील दत्त- नरगिस की बेटी नम्रता दत्त से शादी की थी।