बम कहीं पर जाति-धर्म देख कर नहीं फटता : अशोक पंडित

इस वक्त फिल्म ‘72 हूरें’ की काफी ज्यादा चर्चा है। हाल ही में फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ, जिसे लेकर विवाद हो गया। सेंसर बोर्ड ने फिल्म के ट्रेलर को सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया। इसी वजह से ट्रेलर को सिर्फ ऑनलाइन माध्यमों पर ही रिलीज किया गया।

जाहिर है कि फिल्म बहुत गंभीर विषय पर बनी है। जैसा कि ट्रेलर में दिखाया गया है कि कुछ मौलवी- मौलाना, लोगों को 72 हूरों का लालच दिखाकर आतंकवादी बनाते हैं। उन्हें सुसाइड बॉम्बर बना कर मासूम लोगों को मारने के लिए बरगलाते हैं।

इस फिल्म से जुड़े लोगों का मानना है कि उन्होंने ये फिल्म आतंकवाद को एक्सपोज करने के लिए बनाई है। प्रोड्यूसर अशोक पंडित ने कहा कि उनकी ये फिल्म किसी पंथ या समुदाय के खिलाफ नहीं है।

अशोक ने कहा कि इस फिल्म से सिर्फ उन लोगों को दिक्कत होगी जो आतंकियों को सपोर्ट करते हैं। जिन लोगों की इससे दुकान चलती है, ये फिल्म उन्हें कटघरे में जरूर खड़ा करेगी। जो लोग आतंकवाद के खिलाफ होंगे उन्हें ये फिल्म बिल्कुल पसंद आएगी।

इस फिल्म को देखने के बाद शायद एक खास वर्ग को इससे आपत्ति हो सकती है। अगर ऐसा होता है कि तो अशोक पंडित क्या करेंगे। जवाब में उन्होंने कहा, “ये फिल्म किसी धर्म विशेष के खिलाफ नहीं है। हमने बार-बार इस चीज को दोहराया है। अगर आप आतंकवाद संबंधी गतिविधियों का समर्थन करते हैं, तो आपको इस फिल्म से आपत्ति हो सकती है।
इस वक्त पूरी दुनिया आतंकवाद से पीड़ित है, इसलिए कोई फिल्म मेकर इस विषय पर फिल्म बनाता है तो सभी को इसका सपोर्ट करना चाहिए। अगर बम फटता है तो वो जाति धर्म देख कर नहीं फटता है। इससे नुकसान पूरी मानवता का होता है।”
अशोक से पूछा गया कि 72 हूरों का कॉन्सेप्ट क्या है, और उन्होंने इस कॉन्सेप्ट पर फिल्म बनाने की क्यों सोची? जवाब में वे कहते हैं, “आपको भी पता है 72 हूरों का मतलब क्या है, लोगों को इसकी लालसा दी जाती है, उन्हें कहा जाता है कि वहां भी खूबसूरत लड़कियां मिलेंगी, और भी काफी सुख- सुविधाएं मिलती है। फिर कुछ लोग इस लालच में पड़ जाते हैं।

वे सभी को काफिर की नजर से देखने लगते हैं और निर्दोषों की जान लेते हैं।” ये पूछे जाने पर कि क्या 72 हूरों जैसा कोई कॉन्सेप्ट किसी धर्म ग्रंथ में उल्लेखित है। जवाब में अशोक पंडित ने कहा, “72 हूरें एक रियल कॉन्सेप्ट है, हम हर दिन इसके बारे में सुनते हैं।”
फिल्म रिलीज से पहले अशोक पंडित का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड हो गया है। इस पर उन्होंने कहा, “ये मुद्दा तो आप लोगों को उठाना चाहिए कि मेरा ट्विटर अकाउंट क्यों सस्पेंड हुआ। जब मैंने फिल्म का टीजर लॉन्च किया तो मेरे अकाउंट पर 27 लाख व्यूज थे। टीजर लॉन्च करने के चार-पांच दिन बाद मेरा अकाउंट सस्पेंड हो गया।
मुझे लगता है कि ये कम्युनिस्टों और अर्बन नक्सलियों की साजिश है। एक बड़ा तबका है जो हमारे नैरेटिव के खिलाफ है, उन सभी ने मास रिपोर्ट करके मेरी आईडी सस्पेंड करा दी है।
हमने उन लोगों के नैरेटिव को ध्वस्त किया है, जो देश विरोधी हैं। जो JNU में देश विरोधी नारे लगाते हैं। जिनके तार बाहरी ताकतों के साथ जुड़े हुए हैं। 2014 के बाद हमें एक आवाज मिली। ऐसा पहली बार हुआ है कि हम उनके घर में घुस कर सवाल पूछ रहे हैं। सालों से बनाए हुए उनके नैरेटिव को हम एक्सपोज कर रहे हैं।
हम पिछले कुछ सालों से देख रहे हैं कि लीक से हटकर फिल्में बन रही है। उदाहरण के लिए द कश्मीर फाइल्स और द केरला स्टोरी जैसी फिल्में हैं। ऐसी फिल्में हमें पहले क्यों नहीं देखने को मिलती थीं।
जवाब में अशोक पंडित कहते हैं, “हमें पहले ऐसी फिल्में बनाने की स्वतंत्रता नहीं थी। अगर इन मुद्दों पर फिल्में बनती भी थीं, तो वो रिलीज नहीं हो पाती थीं। इन मुद्दों पर बनने वाली फिल्में बैन भी हो जाती थीं। अभी ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं कि देश में फ्रीडम नहीं है। मुझे तो लगता है कि फ्रीडम पिछली सरकारों के वक्त नहीं थी।”ये फिल्म द कश्मीर फाइल्स और द केरला स्टोरी से भी ज्यादा सेंसिटिव लग रही है। फिल्म की रिलीज के बाद अगर कोई विवाद होता है, तो उसका जवाब कैसे देंगे। अशोक पंडित ने कहा, “ये काम तो लॉ एंड ऑर्डर का है। हम तो बहस करने के लिए तैयार है। कायदे-कानून से विरोधियों को समझाने की कोशिश करेंगे। हम यहां लड़ाई करने के लिए थोड़ी बैठे हैं।
द कश्मीऱ फाइल्स और द केरला स्टोरी को लाखों लोगों ने देखा। कोई कुछ नहीं कर पाया। मुझे नहीं लगता है कि कोई बुद्धिजीवी या कोई पढ़ा-लिखा आदमी हमारी फिल्म का विरोध करेगा।
अशोक पंडित ने सेंसर बोर्ड के साथ हुए विवाद पर भी बात की। उन्होंने कहा, “सेंसर बोर्ड ने फिल्म के ट्रेलर को सर्टिफिकेट नहीं दिया जबकि ट्रेलर में वहीं दिखाया है जो फिल्म में है। इस फिल्म का इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (IFFI) में प्रीमियर भी हो चुका है। 2021 में फिल्म के डायरेक्टर संजय पूरण सिंह चौहान को नेशनल अवॉर्ड भी मिल चुका है।”
72 हूरों के कॉन्सेप्ट को सही से समझने के लिए हमने दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया सेंट्रल यूनिवर्सिटी में इस्लामिक स्टडीज के प्रोफेसर जुनैद हारिस से बात की।
उन्होंने कहा, “दुनिया के अंदर शांति कायम करने और बुराई खत्म करने के लिए एक कॉन्सेप्ट है, जिसे आख्रत कहते हैं। आख्रत में कहा गया है कि जीवन में आपके साथ भले ही कितनी भी ज्यादती हुई हो, लेकिन आप कभी किसी का बुरा मत करिए।

अब भले ही इस जीवन में आपको उसका फल नहीं मिलता है, लेकिन मरने के बाद एक नई दुनिया शुरू होती है। वहां आपके अच्छे कर्मों का पूरा फल मिलेगा। अगर आपके कर्म बुरे होंगे तो उसी हिसाब से आपके लिए सजा भी नियत की जाएगी। अच्छे कर्म करने वाले इंसान को जन्नत ( स्वर्ग) नसीब होगा।
जन्नत में हर मनचाही चीजें मिलेगीं। इंसान जिस भी चीज की इच्छा रखनी चाहे, उसे वहां वो सब मिलेगा। जाहिर सी बात है कि यौन इच्छा भी एक अहम चीज होती है। इसलिए उसके यौन इच्छाओं की भी पूर्ति होती है। हालांकि ये बात सिर्फ मर्दों के लिए लागू नहीं होती। महिलाओं की भी यौन इच्छाओं की समान रूप से पूर्ति होती है।
अब बात जहां तक नंबर की है, उसका कुरान में कहीं जिक्र नहीं है। 72 की संख्या काफी हद तक सिंबोलिक हो सकती है। अगर किसी मर्द या औरत की इच्छा एक से ज्यादा साथी के साथ रिलेशन बनाने की होगी, तो उसे वो भी मिलेगी।
ये बात कन्फर्म है कि मरने के बाद जन्नत में हूरों की व्यवस्था है, लेकिन अब ये कितनी हैं इस पर कोई बात नहीं की जा सकती। खैर मरने के बाद की जिंदगी तो खुदा ही जानता है लेकिन इंसान अपने पूरे जीवन में जो भोगता है, उसके कहीं ज्यादा बेहतर चीजें जन्नत में मिलती हैं। वहां इंसान को हर एक सुख-सुविधा मिलती है, जिसे वो सोच भी नहीं सकता।”
प्रोफेसर जुनैद ने ये भी कहा कि इंसान की मौत चाहे जिस भी समय हो। वो ऊपर जाकर एक जवान इंसान ही बनता है। उसकी उम्र 33 साल के बीच होती है। मतलब आप ये समझिए कि ये एक ऐसी अवस्था होती है, जब इंसान पूरी तरह जवान और स्वस्थ रहता है। ये सभी बातें मर्द और औरत दोनों के लिए समान रूप से लागू होती हैं।”