फिल्म मेकिंग में पिछले कुछ सालों में अगर सबसे ज्यादा कुछ बदला है, तो वो है गानों की कोरियोग्राफी। पहले फिल्मों के सेट पर ही गाने शूट हुआ करते थे, फिर दौर आया आउटडोर शूटिंग का और फिर विदेशी लोकेशंस पर। पहले साधारण स्टेप्स के साथ गाने फिल्माए जाते थे, अब एक एक्टर का अच्छा डांसर होना भी जरूरी है।
फिल्मों में डांसिंग का दौर लाने का क्रेडिट दो एक्टर्स को जाता है, पहले मिथुन चक्रवर्ती और दूसरे गोविंदा। गोविंदा ने अपने डांस से लाखों लोगों का दिल जीता। उनके डांस के समय चेहरे पर जो एक्सप्रेशन होते हैं, वो कोरियोग्राफर हबीबा रहमान की देन है। हबीबा को बॉलीवुड में 5 दशक से ज्यादा का समय हो चुका है। 14 की उम्र में फिल्म अभिमान में अमिताभ बच्चन को कोरियोग्राफ करने वाली हबीबा बताती हैं कि अब इस काम में बहुत बदलाव हो गया है।
शुरुआत में डायरेक्टर ही फिल्म के लिए कोरियोग्राफर सिलेक्ट करते थे। कोई भी उस सिलेक्ट किए हुए कोरियोग्राफर से डांस सीखने के लिए मना नहीं करता था। अब एक्टर्स की चॉइस पर कोरियोग्राफर का सिलेक्शन होता है।
जैसे कि फिल्म खिलाड़ियों का खिलाड़ी के गाने इन द नाइट नो कंट्रोल के लिए मैंने रेखा को कोरियोग्राफ किया था। इस गाने की कोरियोग्राफी के लिए रेखा ने नहीं बल्कि फिल्म के डायरेक्टर ने मुझे चुना था। रेखा ने इसके लिए खूब मेहनत की थी।
तैयारी की बात करें तो पहले डायरेक्टर हमें स्क्रिप्ट सुनाते हैं। वो हमें सिचुएशन बताते हैं। फिर उस हिसाब से हम डांस स्टेप को कंपोज करते हैं। पहले जब हम डांस स्टेप तैयार कर लेते थे, तो डायरेक्टर आकर उसको पहले देखते थे। जिस स्टेप पर उन्हें कोई कमी लगती थी, हम उनके हिसाब से फेरबदल करते थे। जब वो पूरे कंपोजिशन को ओके बोल देते थे, तो आर्टिस्ट को वो स्टेप किसी भी हाल में करना ही पड़ता था। डायरेक्टर की रजामंदी के बाद बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं होती थी। हां, कभी किसी स्टेप में आर्टिस्ट को बहुत ज्यादा मुश्किल होती तभी हम डायरेक्टर से पूछकर उसमें बदलाव करते थे।
वहीं आज बहुत सारे बदलाव हो गए हैं। अब आर्टिस्ट कोरियोग्राफर को वीडियो के जरिए डांस सीक्वेंस का प्रेफरेंस देते हैं, फिर कोरियोग्राफर उसी प्रेफरेंस के हिसाब से उन्हें ट्रेन करते हैं।
हम एक साथ 25 से 50 बैकग्राउंड डांसर्स को मैनेज कर लेते थे। उस वक्त एक ट्रेंड था जहां आर्टिस्ट के हुक स्टेप अलग होते थे और बैकग्राउंड डांसर्स के अलग। मतलब दोनों के मोमेंट्स अलग होते थे, ताकि आर्टिस्ट अलग दिखे, लेकिन समय के साथ ये सारी चीजें बदल गई हैं। आज बैकग्राउंड डांसर्स और आर्टिस्ट के सिर्फ कपड़े अलग होते हैं, लेकिन उनके डांस स्टेप्स एक जैसे ही होते हैं।
स्टेप फाइनल हो जाने के बाद फिल्म की कहानी के हिसाब से हेयर स्टाइल और काॅस्ट्यूम फाइनल किया जाता है। पहले हमें हर फील्ड में अपना आउटपुट देना पड़ता था, लेकिन आज के समय में ऐसा नहीं होता। अब आर्टिस्ट ही अपना कॉस्ट्यूम चुनते हैं। इस फील्ड में आर्ट डायरेक्टर ज्यादा फैसला लेते हैं।
बजट के हिसाब से प्रोड्यूसर डांसर्स और लोकेशन पर फैसला लेते हैं। गाने में जितने डांसर्स होते हैं, उन सभी का पूरा खर्च प्रोडक्शन टीम को ही उठाना पड़ता है। इस कारण बैकस्टेज डांसर्स को चुनने की आजादी सिर्फ हमारी नहीं होती।
कई बार प्रोड्यूसर हमारी बात मानते भी हैं जैसे कि फिल्म ‘रंगीलो मारो ढोलना’ के लिए मुझे 40 डांसर्स चाहिए थे। राजश्री प्रोडक्शन ने मुझे 40 की बजाय 60 डांसर्स रखने की परमिशन दी जिससे मेरा दिल खुश हो गया। जब प्रोड्यूसर आप पर इतना भरोसा करते हैं तो आप अपना काम बेस्ट करके देते हैं।
कोरियोग्राफर बनना हमारे वक्त में आसान नहीं था, लेकिन अब इस फील्ड में बहुत स्कोप हैं। कोरियोग्राफर बनने की बात करें, तो पहले हम डांसर्स बनते, अलग-अलग मास्टर्स के पास सीखकर असिस्टेंट बनते, फिर कुछ आर्टिस्ट के पहचान से कोरियोग्राफर बनते।
स्टेज पर परफॉर्म करना और सेट या फिल्म के लिए परफॉर्म करना दोनों में बहुत अंतर है। स्टेज पर हमारे पास रीटेक का ऑप्शन नहीं होता। वहां हमें बहुत लाउड मोमेंट देना होता हैं ताकि एक्सप्रेशन दूर बैठे सभी लोगों तक पहुंचे।
वहीं कैमरे के सामने हम अपना स्टेप बहुत ही सरलता के साथ करते हैं। रील और रियल में बहुत फर्क हैं। जिन्होंने स्टेज पर काम किया है, वह फिल्म में आसानी से काम कर सकते हैं, लेकिन सिर्फ फिल्म वाले कोरियोग्राफर और आर्टिस्ट स्टेज पर परफॉर्म आसानी से नहीं कर सकते।
मुझे याद है एक दिन हेलेन जी ने मेरा स्टेज परफॉर्मेंस देखा था जिससे वो काफी इम्प्रेस हो गई थीं। उन्होंने देखते ही कह दिया कि मैं स्टेज डांसर भी हूं। उन्होंने माना कि स्टेज परफॉर्मेंस कितनी मुश्किल होती है।जब मैंने अपनी करियर की शुरुआत की थी, तब से लेकर अब तक बहुत सारी चीजें बदल गई हैं। जब हम डांस करते थे, तब हमें स्क्रीन पर अपना काम देखने को भी नहीं मिलता था। हम स्क्रीन पर कैसे दिख रहे हैं, उसका पता बिल्कुल नहीं लगता। सेट पर बड़े-बड़े दिग्गज कैमरामैन होते थे, वो हमें स्क्रीन देखने भी नहीं देते थे।
हालांकि उस वक्त ये भी जरूरी था कि कोरियोग्राफर को कैमरा ऑपरेट करना भी आना चाहिए। इस काम में भी कोरियोग्राफर पूरी तरह से इन्वॉल्व हुआ करते थे। मैंने भी कैमरा चलाना सीखा था।
पहले कोरियोग्राफर्स का एक यूनियन होता था, जिसके हिसाब से हमारी फीस डिसाइड होती थी। मेल और फीमेल की फीस में कोई भेदभाव नहीं होता था। कभी-कभी प्रोडक्शन टीम काम से खुश होकर ज्यादा फीस भी देती थी।
वहीं आज कोई यूनियन नहीं है। हर कोरियोग्राफर अपने हिसाब से फीस चार्ज करता है। अब तो फीस 25 लाख तक है। मान लीजिए कि शाहरुख खान को मुझ से ही डांस सीखना है तो प्रोडक्शन टीम को मुझको ही कोरियोग्राफी के लिए हायर करना पड़ेगा। फिर मैं जो भी फीस मागूंगी, वो उन्हें देनी ही पड़ेगी।
मौके पर शर्मिला टैगोर के कपड़े को देखकर डांस स्टेप में बदलाव किए
अमिताभ और धर्मेंद्र की फिल्म ‘चुपके चुपके’ के एक गाने को भी मैंने कोरियोग्राफ किया था। उस वक्त मुझे याद है, धर्मेन्द्र जी का कॉल टाइम सेट पर थोड़ा लेट था। उनके सेट पर आने से पहले मैंने अमिताभ के साथ गाने का रिहर्सल किया, उन्हें पूरा सिखा दिया था।
शूट जब शुरू हुआ तो धर्मेंद्र ने आकर पूछा कि क्या क्या हुआ, मैंने बताना शुरू किया। तभी ऋषि दा ने मुझे टोका और कुछ भी कहने से मना कर दिया। ऋषि दा बोले – सब स्क्रीन पर दिखेगा।
फिर शर्मीला टैगोर को भी खूब डांट पड़ी थी क्योंकि कुछ कॉस्ट्यूम प्रॉब्लम की वजह से उन्हें सेट पर देरी हो गई थी। दादा ने चिल्लाकर शर्मीला को सेट पर बुलाया। फिर डांस की रिहर्सल शुरू हुई। कॉस्ट्यूम में दिक्कत थी तो मैंने उसी को देखकर तुरंत स्टेप में बदलाव किया और उसी के हिसाब से उन्हें डांस सिखाया
जीनत अमान का एक मुजरा सॉन्ग था, जिसके लिए मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी थी। उन्हें मुजरे का स्टेप करने में दिक्कत आ रही थी। जब मैं जितना ज्यादा टर्न लेने के लिए कहती, वह उससे कम करने के लिए कहती थीं। फिर मुझे कैमरामैन ने कहा कि आप उनसे दो टर्न कराएं, हम एडिटिंग करके स्पीड बढ़ा देंगे। ये टेक्निकल बातें मैंने उस समय सीखी थीं। कैमरे के जरिया हमने जीनत अमान का स्पीड टर्न किया था।
गोविंदा की फिल्म ‘तोहफा मोहब्बत का’ के लिए मैंने कोरियोग्राफ किया था। वो बहुत आसानी से सीख जाते थे। उन्हें दूसरा टेक करने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। सेट पर आते थे, टेक देकर चले जाते थे। उनकी मां ने उन्हें मुझसे सीखने की सलाह दी थी।
चांदीवली स्टूडियो में अमिताभ बच्चन के साथ शूट किया था। 7 बजे की शिफ्ट थी और मैं 7:10 पर सेट पर पहुंची थी। मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई। वो टाइम के बहुत पक्के थे। दूसरे दिन मैं 6.30 पर ही पहुंच गई थी। ये बात अमिताभ जी ने नोटिस किया था। ऐसे ही शशि कपूर भी टाइम के सख्त थे। वहीं गोविंदा और शत्रुघ्न सिन्हा टाइम के पंक्चुअल नहीं थे, लेकिन ये दोनों एक्टर्स कम वक्त में अपना काम खत्म कर लेते थे।
मैंने कथक अपनी गुरु मां कथक क्वीन सितारा देवी से सीखा था। बाद में उन्होंने ही मुझे कथक क्वीन के अवाॅर्ड से सम्मानित किया था। कोरियोग्राफी भी मैंने बतौर कथक डांसर ही शुरू किया। मेरी मां पहले से ही फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी हुई थीं। उन्होंने एक्ट्रेस मुमताज को डांस सिखाया था। फिल्मी डांस अपनी मां से सीखा था।
मुंबई के तेजपाल में एक हाॅल है। एक दिन वहां मैं कथक का परफॉर्मेंस दे रही थी, तभी ऋषिकेश मुखर्जी की नजर मुझ पर पड़ी। वो मेरे लिए पिता तुल्य थे। उन्हें मेरा डांस बहुत पसंद आया। फिर उन्होंने फिल्म अभिमान में एक डांस सीक्वेंस करने के लिए कहा। मां की हां के बाद मैंने भी हामी भर दी। उन्होंने कहा- आपने जो ड्रेस पहना है और जैसी हेयर स्टाइल है, कल ठीक वैसे ही सेट पर आ जाना और अपना शाॅट दे देना। फिल्म की शुरुआत में मेरा केवल 40 सेकेंड का कथक डांस दिखेगा।
इसी फिल्म के गाने ‘मीत ना मिला रे मन का’ के लिए मैंने पहली बार अमिताभ बच्चन को कोरियोग्राफ किया था। इस वक्त मैं सिर्फ 14 साल की थी। फिल्म में डांस के लिए मुझे 750 रुपए मिले थे, जो मैंने अपनी मां को दिए थे। फिर बाद में बिग बी को डांस सिखाने के लिए मेरे पास 2500 रुपए का चेक आया था।