राजधानी के हुसैनाबाद इलाके में बुधवार को जनाब-ए-मुस्लिम की शहादत पर ताबूत जुलूस निकला। ये पारंपरिक जुलूस रौजा-ए-हजरत मुस्लिम से निकलकर घंटा घर वाली सड़क पर पहुंचा। जहां पर बड़ी संख्या में मौजूद लोगों ने नम आंखों से हजरत मुस्लिम को श्रद्धांजलि दी।
जुलूस से पहले रौजा-ए-हजरत मुस्लिम में मजलिस हुई। मजलिस खत्म होने के बाद हजरत मुस्लिम के नाम का ताबूत सजाकर जुलूस निकाला गया। जहां पर आम लोगों ने जुलूस में शामिल होकर ताबूत के दर्शन किए। ताबूत कुछ देर तक लोगों के लिए बाहर लाया गया, जिसे बाद में वापस रौजे के लिए रवाना कर दिया गया। इस दौरान जुलूस में मौजूद लोगों ने हजरत मुस्लिम की याद में मातम भी किया।
जनाब-ए-मुस्लिम इमाम हुसैन के चचेरे भाई थे। इराक के कूफा शहर के लोगों ने इमाम हुसैन से रिश्ते बनाने के लिए उन्हें खत भेजा था। जिसके बाद हजरत मुस्लिम को इमाम हुसैन ने कूफा शहर भेजा। वहां उनको कूफियों से वादा लेना था। जिसके मुताबिक वो यजीद के खिलाफ जंग में इमाम हुसैन का साथ देंगे। 10 हजार कुफियों ने जंग में साथ देने का वादा किया। लेकिन कूफा के राजा इब्ने जियाद ने उन सब को खरीदकर हजरत मुस्लिम के खिलाफ कर दिया। फिर कूफा शहर में ही इस्लामिक महीने जिलहिज की 9 तारीख को हजरत मुस्लिम को शहीद कर दिया गया था।
मुस्लिम समाज, खासकर शिया समुदाय में इनकी खास मान्यता है। उनके मुताबिक जनाब-ए-मुस्लिम की शहादत के बाद कर्बला की जंग शुरू हो गई थी। इन्हें कर्बला की जंग का पहला शहीद माना गया है। आज से 1400 साल पहले जनाब-ए-मुस्लिम पर जो जुल्म हुए थे।
उनको जिस अत्याचार से प्यासा शहीद किया गया था। उन्हीं सब घमों को याद करते हुए शिया समुदाय ये जुलूस निकालता है। जुलूस में उनके नाम का ताबूत सजाया जाता है। फिर ताबूत को उनके रौजे से बाहर निकालकर लोगों के दर्शन के लिए लाया जाता है। जुलूस में नम आंखों के साथ मातम कर हजरत मुस्लिम को श्रद्धांजलि दी जाती है।