50 दिन गुजर जाने के बावजूद ये थमने का नाम नहीं ले रही है मणिपुर हिंसा

मणिपुर में 3 मई से हिंसा शुरू हुई और करीब 50 दिन गुजर जाने के बावजूद ये थमने का नाम नहीं ले रही है। 16 जून यानी शुक्रवार की रात भी हिंसा की 5 घटनाएं हुईं। इंफाल पश्चिम के इरिंगबाम थाने पर हमला कर भीड़ ने हथियार लूटने की कोशिश की, हालांकि सुरक्षाबलों ने उन्हें खदेड़ दिया।

उधर BJP विधायक विश्वजीत के घर में आग लगाने की कोशिश हुई। एक अन्य घटना में खोंगमन और सिंजेमाई में भीड़ ने BJP ऑफिस पर हमला किया। इंफाल के पोरमपेट में भीड़ ने BJP की महिला अध्यक्ष शारदा देवी के घर में तोड़फोड़ की। इसके अलावा इंफाल के ही पैलेस कंपाउंड में आग लगाने की कोशिश की गई।

पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स के मुताबिक, बिष्णुपुर जिले के क्वाकटा और चुराचांदपुर जिले के कंगवई इलाकों में भीड़ ने ऑटोमैटिक हथियारों से फायरिंग की है। एक दिन पहले ही BJP सांसद और केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री राजकुमार रंजन सिंह के इंफाल स्थित घर में आग लगा दी गई थी। राजकुमार रंजन सिंह ने कहा, ‘मैं हिंसा की घटनाओं से हैरान हूं। मणिपुर में कानून-व्यवस्था पूरी तरह फेल हो चुकी है।’
बीते 20 दिन में मणिपुर के मंत्री-विधायकों के घर पर हमले की 4 घटनाएं हो चुकी हैं। 14 जून को इंफाल के लाम्फेल में उद्योग मंत्री नेमचा किपजेन के सरकारी बंगले में आग लगा दी गई। 8 जून को BJP विधायक सोराईसाम केबी के घर पर बम से हमला हुआ। इससे पहले 28 मई को कांग्रेस विधायक रंजीत सिंह पर भी हमला हुआ था।
मैतेई समुदाय को रिजर्वेशन देने के मसले पर शुरू हुई हिंसा अब मणिपुर के विभाजन की मांग तक पहुंच गई है। 3 मई को चुराचांदपुर जिले में हुई एक रैली के बाद ये हिंसा भड़की। अब तक 60 हजार लोगों को रेस्क्यू किया गया है। करीब 110 लोगों की मौत हो चुकी है।
पहले 6 से 12 मई और फिर 2 से 6 जून के बीच मणिपुर के अलग-अलग इलाकों में रहे। हमने मैतेई बहुल इंफाल से लेकर कुकी बहुल चुराचांदपुर जाकर लोगों से बात की।
मणिपुर की राजधानी इंफाल का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘यम’ यानी सुंदर और ‘फाल’ यानी घर। इंफाल ऐसी घाटी है, जहां बहुत सुंदर घर हैं, लेकिन 6 मई को जब हम इंफाल पहुंचे, तो सड़कों पर सन्नाटा था। एयरपोर्ट से सिर्फ 200 मीटर दूर जली हुई गाड़ियों का ढेर नजर आया।

मैतेई दंगाइयों की भीड़ से बचने के लिए खुद मैतेई लोग ही घरों पर पोस्टर लगा रहे हैं। न जाने भीड़ किसका घर जला दे। घरों के बाहर ‘मैतेई हाउस’ और ‘मैतेई शॉप’ के पोस्टर चिपका दिए गए। इंफाल मैतेई बहुल है, कुकी समुदाय यहां अल्पसंख्यक है। इंफाल में चुन-चुनकर कुकी समुदाय के घरों को टारगेट किया जा रहा है। इंफाल में आयकर अधिकारी लेमिनथांग हाओकिप को घर से खींचकर उनकी हत्या कर दी गई।

इंफाल के सुपरमार्केट इलाके में रहने वाले सुभाष बताते हैं, ‘हिंसा की शुरुआत पहाड़ी इलाके से हुई। चुराचांदपुर में 3 मई को बवाल हुआ। इसके बाद फेसबुक, वॉट्सऐप पर वीडियो-फोटो आने लगे। हिंसा की तस्वीरें देखकर शहर में रहने वाले मैतेई भी भड़क गए। उस दिन से शुरू हुई हिंसा 50 दिन बाद आज तक नहीं रुकी है। कुकी और मैतेई दोनों तरफ के लोग एक-दूसरे के नेताओं तक को नहीं बख्श रहे हैं।
अकेले चुराचांदपुर जिले से सरकार में 4-5 विधायक हैं। यहीं के थोरबुंग गांव से हिंसा शुरू हुई थी। यह इलाका अब पूरी तरह से कुकी-मिजो के कब्जे में है। दुकानों पर अंग्रेजी में लिखा गया है कि दिस पार्ट ऑफ इंडिया इज ट्राइबल लैंड (भारत का ये हिस्सा ट्राइबल लैंड है)।
इस जिले में सरकार के सामने मांग रखने के लिए कुकी-मिजो ने एक संगठन बनाया है, जिसका नाम है- इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF)। ये संगठन यहां तक कहने लगा है कि ये इलाका अब मणिपुर का हिस्सा ही नहीं।
मणिपुर में कुल 16 जिले हैं, सबसे ज्यादा हिंसा इंफाल, चुराचांदपुर और बिष्णुपुर में हुई है। बिष्णुपुर इंफाल से 26 किमी और चुराचांदपुर करीब 60 किमी दूर है। 8 मई की सुबह हम इंफाल से चुराचांदपुर के लिए निकले थे। सबसे बड़ी दिक्कत थी कि हमारा ड्राइवर मैतेई समुदाय से था। चुराचांदपुर किसी मैतेई के लिए फिलहाल दुनिया की सबसे असुरक्षित जगह है।
इंफाल से निकलकर करीब 26 किमी चले, तो सबसे पहले बिष्णुपुर पड़ा। यहीं से कुकी बहुल इलाका शुरू हुआ। इंफाल घाटी और पहाड़ों के बीच कई ऐसे गांव हैं, जिनमें मैतेई और कुकी दोनों समुदाय की आबादी रहती थी।
अब इंफाल के चारों तरफ मौजूद ये तराई का इलाका (फुटहिल) ही जंग का मैदान बना हुआ है। थोड़ा आगे बढ़े तो तुईबोंग के हाओलाई खोपी गांव में BSF कैंप के पास जवानों ने रोक लिया। उन्होंने बताया कि आगे जाना खतरे से खाली नहीं है। हमारे मैतेई ड्राइवर ने आगे जाने से इनकार कर दिया, वो गाड़ी मोड़कर वापस इंफाल चला गया।
हम BSF कैंप से पैदल आगे चल दिए। कुछ ही देर में एक गाड़ी दिखी, जिस पर लिखा था ‘कुकी मीडिया’। एक लड़के ने पूछा ‘आर यू फ्रॉम दैनिक भास्कर?’ ग्रेसी नाम की लड़की ने हमें अपनी कार में बैठाया और हम आगे बढ़ने लगे।

सिर्फ एक किमी आगे हथियारबंद लोग सड़क के किनारे बैठे दिखे। लकड़ियों, पत्थरों और टीन के टुकड़ों से रास्ता बंद किया हुआ था। तीन-चार लोग कंधे पर राइफल और गोलियां लटकाए थे। यहां गाड़ियों की चेकिंग होती है, जहां ये सुनिश्चित किया जाता है कि कोई मैतेई इससे आगे न जाए। BSF चौकी से आगे अब ये एक इंटरनेशनल बॉर्डर जैसा है। कुकी इधर नहीं आ सकते और मैतेई उधर नहीं जा सकते।

चुराचांदपुर सिटी में मैतेई समुदाय के 3-4 मोहल्ले हैं। शहर का सबसे बड़ा मैतेई मोहल्ला कुमुजांबा अब राख हो चुका है। यहां मैतेई समुदाय के 100 से ज्यादा घर थे, जिन्हें लूटने के बाद जला दिया गया।
जले हुए घरों से कुछ ही दूर मैतेई समुदाय का एक मंदिर भी था। मंदिर की दीवार पर लिखा हुआ है ‘KILL MAITEI’। इस इलाके में अब कोई मैतेई परिवार नहीं बचा है। वे इंफाल में अपने रिश्तेदारों के पास भाग गए हैं।
कुकी-नगा और अन्य जनजातियों का मानना है कि मैतेई का मणिपुर की राजनीति और दूसरे पावर सेंटर्स में दबदबा है। ये पढ़ने-लिखने के साथ संपत्ति के मामले में भी आगे हैं। अगर मैतेई को भी जनजाति यानी एसटी का दर्जा मिल गया, तो ट्राइबल्स हाशिए पर चले जाएंगे। सरकारी नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी पहले से ही कम है।

एसटी का दर्जा मिलते ही मैतेई पहाड़ों पर जमीन खरीद सकेंगे, वे आर्थिक रूप से मजबूत हैं, ऐसे में वहां के संसाधनों पर उनका कब्जा हो जाएगा। ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर के मुताबिक, मैतेई समुदाय की भाषा संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल है।

इन्हें पहले ही अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति और इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन यानी EWS जैसे रिजर्वेशन का फायदा मिलता है। इन्हें ST समुदाय में शामिल करना सिर्फ पॉलिटिक्स है। हालांकि अब ये मांग मणिपुर के बंटवारे और अलग एडमिनिस्ट्रेशन तक पहुंच गई है।
मैतेई ट्राइब यूनियन की याचिका पर ही मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 19 अप्रैल को केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की 10 साल पुरानी सिफारिश फिर से पेश करने के लिए कहा था। इस सिफारिश में मैतेई को ST का दर्जा देने की बात है। शेड्यूल ट्राइब डिमांड कमेटी ऑफ मणिपुर ने ये सिफारिश साल 2012 में की थी।

मैतेई ट्राइब यूनियन ने कोर्ट से कहा है कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ, उससे पहले इस समुदाय को ST का दर्जा मिला हुआ था। इसके अलावा पूर्वजों की जमीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए ये दर्जा दिया जाना जरूरी है।

उनके पास सिर्फ इंफाल वैली में जमीन खरीदने का अधिकार है और ये पूरे मणिपुर का सिर्फ 10% हिस्सा है, ये अन्याय है। 50 दिन की हिंसा के बाद मैतेई भी अब NRC लागू करने और म्यांमार से आए कुकी को भगाने जैसी मांग कर रहे हैं।
28 मई को मणिपुर के CM एन. बीरेन सिंह ने दावा किया था कि पुलिस ने अब तक 40 मिलिटेंट्स का एनकाउंटर किया है। ये मिलिटेंट कौन थे और कहां से आए, इसकी छानबीन के लिए भास्कर की टीम मौके पर पहुंची।

5 दिन में हमने इंफाल से लेकर चुराचांदपुर इलाके को खंगाला। मैतेई, कुकी कम्युनिटी के लोगों से बात की। पुलिस के अलावा उन अस्पतालों तक पहुंचे, जहां हिंसा में मारे गए लोगों की बॉडी लाई गई है, या जहां घायलों का ट्रीटमेंट चल रहा है। जिन लोगों के परिजन हिंसा में मारे गए, उनसे भी बात की।
कुकी: इनका मानना है कि स्टेट पुलिस मैतेई कम्युनिटी को सपोर्ट कर रही है, क्योंकि इंफाल में मैतेई का दबदबा है। CM से लेकर मंत्री तक सब मैतेई हैं। कुकी कम्युनिटी के DGP थे, उन्हें हिंसा के वक्त हटा दिया गया। इन्हें राज्य से ज्यादा केंद्र सरकार पर भरोसा है।

इनका मानना है कि आबादी में कम होने के बावजूद 90% जमीन पर कुकी लोगों का कब्जा है। कुकी का म्यांमार से सीधा कनेक्शन है। वहां से मिलिटेंट इनके सपोर्ट के लिए आते हैं। असम राइफल्स को अपने बाहरी ऑपरेशन में कुकी की जरूरत होती है। इसलिए वो कुकी को सपोर्ट कर रहे हैं। ये लोग ड्रग्स का धंधा करते हैं।
हमने खबर की पड़ताल CM के दावे से ही की। मिलिटेंट के नाम पर मारे गए चुराचांदपुर के डालामथांगम, सेखोहाओ और एलेक्स, लालचिंग गांव के थांगखोचोंग और लेथोई के 5 केसेज की हमने उनके घरों तक जाकर छानबीन की। डालामथांगम एम्बुलेंस ड्राइवर थे, एलेक्स 19 साल का स्टूडेंट था। सेखोहाओ, थांगखोचोंग और लेथोई सामान्य किसान थे। इनके परिवार हैं और इनके किसी मिलिटेंट ग्रुप से जुड़े होने का कोई सबूत नहीं मिला।

सवाल यही था कि क्या हिंसा में मिलिटेंट इन्वॉल्व हैं? पुलिस एनकाउंटर में जो लोग मारे गए, वो कौन हैं? जवाब में राज्य के टॉप पुलिस ऑफिसर ने ऑफ रिकॉर्ड बताया कि, ‘महामहिम (इशारा CM बीरेन सिंह की तरफ था) ने जो कहा, वो बोगस है।’

चौंकाने वाली बात ये है कि मारे गए लोगों की कोई डिटेल पुलिस नहीं दे पाई। ट्राइबल कम्युनिटी के लिए काम करने वाले ITLF से डिटेल मिली। उनकी लिस्ट के मुताबिक, ट्राइबल कम्युनिटी के 80 लोग मारे गए हैं। 50 मौतें अन्कनफर्म्ड भी हैं। अगर सरकार कह रही है कि टोटल मौतें 100 के करीब हैं, तो उनमें से 80 कुकी होना कई सवाल खड़े करता है।

केंद्र बनाम राज्य की राजनीति सिर्फ मैतेई और कुकी कम्युनिटी के बीच ही नहीं चल रहीं। पड़ताल में हमें मणिपुर पुलिस की एक FIR, जिसका नंबर 33(6) 2023 सुगनू पीएस U/S166/186/189/342/353/506/34 मिली। यह FIR सुगनू थाने में असम राइफल्स के कर्नल अहलावत के खिलाफ लिखी गई है। FIR सुगनू में कर्नल और उनकी टीम के गैरकानूनी तरीके से कार्रवाई करने पर रजिस्टर की गई है।
इससे पता चल रहा है कि मणिपुर में केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसीज के बीच तालमेल की भारी कमी है। उधर, चीफ ऑफ डिफेंस यानी CDS अनिल चौहान ने 30 मई को कहा था, ‘मणिपुर में मौजूदा हिंसा का उग्रवाद से कोई लेना-देना नहीं है और यह मुख्य रूप से दो जातियों के बीच संघर्ष है।’
40 मिलिटेंट्स के मारे जाने का दावा गलत निकलने के बाद से ही भास्कर लगातार CM एन बीरेन सिंह से बात करने की कोशिश कर रहा था। 15 जून को CM ने बात की, लेकिन फोन डिस्कनेक्ट होने से बात अधूरी रह गई।
CM एन. बीरेन सिंह: मणिपुर में बाहर से लोग आ गए हैं। ये म्यांमार से आए हैं। हम उन्हें भगाने का काम कर रहे हैं। घुसपैठियों को इंडियन सिटिजनशिप नहीं लेने देना है। पहले भी इसके लिए कदम उठाए थे, अब भी उठा रहा हूं।

सवाल: आप कह रहे हैं कुकी-मैतेई का झगड़ा नहीं, उधर कुकी अलग एडमिनिस्ट्रेशन की मांग कर रहे हैं। क्या उन्हें मणिपुर सरकार पर भरोसा नहीं?
CM एन. बीरेन सिंह: घर में झगड़ा होने पर भी ऐसा बोल देते हैं। उन्होंने भी बस गुस्से में बोल दिया कि अलग एडमिनिस्ट्रेशन चाहिए। ऐसा सच में पॉसिबल नहीं है। पूरा मणिपुर एक है, भारत एक है, एक ही रहेगा।
CM एन. बीरेन सिंह: एडमिनिस्ट्रेशन में IAS-IPS ऑफिसर कौन हैं, ये तो पॉपुलेशन के हिसाब से नियुक्त होते हैं। कुकी को उनके अधिकार मिले हुए हैं। 90% एरिया उनका है, वहां कोई मैतेई जमीन नहीं खरीद सकता। जबकि जिस 3% इलाके में मैतेई रह रहे हैं, वहां तो कुकी-ट्राइबल-मैतेई सब जमीन खरीद सकते हैं और रह रहे हैं।बातचीत में CM ने दावा किया है कि ये कुकी-मैतेई की लड़ाई नहीं, बल्कि म्यांमार से आए घुसपैठिए हिंसा फैला रहे हैं। CM ने कुकी समुदाय की अलग एडमिनिस्ट्रेशन की मांग को भी सिरे से खारिज कर दिया। पढ़िए
मणिपुर में BJP विधायक वुंगजागिन वाल्टे CM एन बीरेन के साथ मीटिंग करके घर जा रहे थे। तारीख 4 मई थी। तीन बार के विधायक वाल्टे कुकी कम्युनिटी से हैं, उनकी गाड़ी चला रहा ड्राइवर भी कुकी था। अचानक उनकी गाड़ी को भीड़ ने रोक लिया और हमला कर दिया।

उनके बेटे जोसेफ कहते हैं, पापा को पहले टेजर गन से मारा, फिर सिर पर किसी नुकीली चीज से बार-बार मारा गया। वाल्टे को जैसे-तैसे कुछ लोगों ने हॉस्पिटल पहुंचाया और उसी रात एयरलिफ्ट कर दिल्ली भेज दिया गया।
जोसेफ कहते हैं, ‘पापा अब किसी बच्चे की तरह हो गए हैं। उनकी आवाज चली गई है। वे बिना सहारे के चल नहीं पाते। बोल नहीं पाते। उनका पूरा चेहरा डैमेज हो गया।’ वाल्टे की हालत अब भी बहुत क्रिटिकल है। उनके ड्राइवर की मौत हो चुकी है। विधायक का परिवार अब इंफाल एयरपोर्ट पर आर्मी की प्रोटेक्शन में रह रहा है।8 साल का तोंसिंग मां मीना हैंगिंग और रिश्तेदार लिदिया लोरेम्बम के साथ कंग्चुप में असम राइफल्स के कैंप में रह रहे थे। कैंप के एक तरफ मैतेई, दूसरी तरफ कुकी बसे थे। 4 जून की शाम को कैंप के आसपास गोलीबारी शुरू हो गई। एक गोली तोंसिंग के सिर में लगी। उसे तुरंत ऑक्सीजन दी गई, लेकिन हालत क्रिटिकल होती जा रही थी, इसलिए हॉस्पिटल भेजने का डिसीजन लिया गया।

ये हॉस्पिटल मैतेई बहुल इंफाल में था। तोंसिंग की मां मीना मैतेई कम्युनिटी से थीं, जबकि पिता कुकी कम्युनिटी से थे। इसलिए फैसला लिया गया कि एम्बुलेंस में मैतेई मां के साथ बच्चे को भेजने में दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि मैतेई अपनी कम्युनिटी पर हमला नहीं कर रहे। कुछ ही देर में एम्बुलेंस आ गई।

तोंसिंग, उनकी मां मीना और एक मैतेई रिश्तेदार लिदिया लोरेम्बम इंफाल के लिए रवाना हो गए। कुछ दूर तक असम राइफल्स ने सुरक्षा दी। आगे का जिम्मा पुलिस ने संभाल लिया। इरोइसेम्बा इलाके में एम्बुलेंस को भीड़ ने घेर लिया और आग लगा दी। एम्बुलेंस में सवार तीनों लोग जिंदा जल गए।
कन्वॉय में शामिल एक मेल नर्स ने बाद में खुलासा किया कि, ‘भीड़ को हटाने के लिए पुलिस ने फायरिंग नहीं की। ड्राइवर और मुझे मैतेई होने की वजह से एम्बुलेंस से नीचे उतार दिया था। एम्बुलेंस को लेकर अफवाह उड़ा दी गई थी कि उसमें कुकी मिलिटेंट को लाया जा रहा है, इसलिए भीड़ ने हमला कर दिया।’लेमिनथांग हाओकिप, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में ऑफिसर थे। इंफाल में अपने ऑफिशियल क्वार्टर में रह रहे थे। 4 मई को मैतेई भीड़ ने उन्हें घर से बाहर निकाला और तब तक पीटा, जब तक उनकी जान नहीं चली गई। इस बात की जानकारी खुद इंडियन रेवेन्यू सर्विस एसोसिएशन ने दी। लेमिनथांग की फोटो भी पब्लिश की।

लोकल जर्नलिस्ट्स के मुताबिक, लेमिनथांग के पेरेंट्स की डेथ कई साल पहले हो चुकी थी। छोटी बहनों की परवरिश की जिम्मेदारी लेमिनाथांग पर ही थी। उनकी मौत से बहनें भी अनाथ हो गईं।
13 जून की रात करीब 10 बज रहे थे। जगह थी, मणिपुर की राजधानी इंफाल के ईस्ट में बसा खामेनलोक। कुछ लोगों ने रात का खाना खाया ही था, कुछ सो भी चुके थे। हथियारों से लैस संदिग्ध उग्रवादियों ने ग्रामीणों पर हमला कर दिया। ताबड़तोड़ गोलीबारी की गई। इसमें नौ लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में सभी मैतेई कम्युनिटी के थे। कुछ मरने वालों की बॉडी पहाड़ से नीचे भी गिर गई
खामेनलोक मैतेई बहुल इलाका है। पुलिस का कहना है कि हमला कुकी उग्रवादियों ने किया था। उन्होंने बम फेंके। गांव के लोग जान बचाकर भागे, लेकिन वहां ट्राइबल मिलिटेंट उनका इंतजार कर रहे थे। उन्हें देखते ही गोलियां बरसाईं गईं।
फोटो 15 जून, गुरुवार की है। मणिपुर में कुकी उग्रवादियों के हमले में 9 लोगों की मौत का बदला लेने के लिए भीड़ ने इंफाल में एक समुदाय के दो घरों में आग लगा दी थी।सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मणिपुर में अब तक आगजनी की 4300 से ज्यादा घटनाएं हुई हैं। अब तक 1040 आर्म्स, 13,601 गोला-बारूद और 230 से ज्यादा बम रिकवर किए जा चुके हैं। हिंसा के बाद 60 हजार से ज्यादा लोगों को घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा
अब इनका ठिकाना रिलीफ कैंप हैं। 272 रिलीफ कैंप, जो बंटे हुए हैं कुकी और मैतेई के बीच। कोई कुकी, मैतेई के कैंप में नहीं रुक रहा और कोई मैतेई कुकी के कैंप में नहीं जा रहा। दोनों कम्युनिटी के अलग कैंप हैं। ये अपने-अपने इलाकों में बनाए गए हैं।

CM एन बीरेन सिंह भले दावा करें कि हिंसा कुकी-मैतेई के बीच नहीं है, पर भास्कर की पड़ताल और कुकी-मैतेई के एक-दूसरे पर हमले की घटनाएं बताती हैं कि CM का दावा गलत है।