विपक्ष संसद के नए भवन के उद्घाटन राष्ट्रपति से कराने पर अड़ा, सरकार ने इंदिरा-राजीव का हवाला दिया

कांग्रेस समेत विपक्ष की 19 पार्टियां संसद के नए भवन के उद्घाटन समारोह में शामिल नहीं होंगी। उन्होंने कहा, ‘जब संसद से लोकतंत्र की आत्मा को ही खींच लिया गया हो, ऐसे में हमें नई इमारत की कोई कीमत नजर नहीं आती है।’
वहीं बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कांग्रेस के दो प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और राजीव गांधी का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि जब इंदिरा संसद एनेक्सी का और राजीव संसद लाइब्रेरी का उद्घाटन कर सकते हैं तो पीएम मोदी क्यों नहीं?
विपक्षी पार्टियों को PM मोदी के हाथों संसद के लोकार्पण पर ऐतराज क्यों है, सरकार इंदिरा-राजीव का हवाला क्यों दे रही है और इस बारे में क्या है संविधान में प्रावधान? हरदीप सिंह पुरी के दावे में कितना दम है‌?
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा- पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नई संसद के शिलान्यास समारोह में नहीं बुलाया गया था। अब नए संसद भवन के उद्घाटन के लिए भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नहीं बुलाया जा रहा है। संसद भवन का उद्घाटन किसे करना चाहिए?
खड़गे ने कहा कि संसद भारतीय गणराज्य की सर्वोच्च लेजिस्लेटिव बॉडी है और राष्ट्रपति इसका सबसे बड़ी संवैधानिक अथॉरिटी। राष्ट्रपति अकेले सरकार और विपक्ष के साथ ही हर नागरिक का प्रतिनिधित्व करती हैं। वो भारत की प्रथम नागरिक हैं। नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति करतीं तो ये लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सरकार के कमिटमेंट का प्रतीक होता।”
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 22 मई को अपने ट्वीट में कहा था, ‘ऐसा लगता है कि मोदी सरकार ने दलित और आदिवासी समुदायों से राष्ट्रपति का चुनाव केवल चुनावी कारणों के लिए किया है।’
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा, ‘भारतीय संविधान के आर्टिकल 60 और 111 यह स्पष्ट करते हैं कि राष्ट्रपति संसद की प्रमुख हैं। यह काफी अजीब था कि जब नए संसद भवन का निर्माण शुरू हुआ तो प्रधानमंत्री ने भूमि पूजन किया, लेकिन अब राष्ट्रपति को नए संसद भवन के उद्घाटन के लिए नहीं बुलाना समझ से परे और असंवैधानिक भी है।’
21 मई को राहुल गांधी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा- संसद के नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ही करना चाहिए, प्रधानमंत्री को नहीं। 24 मई को ट्वीट कर कहा कि, ‘राष्ट्रपति से संसद का उद्घाटन न करवाना और न ही उन्हें समारोह में बुलाना- यह देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का अपमान है। संसद अहंकार की ईंटों से नहीं, संवैधानिक मूल्यों से बनती है।’
कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष की 19 पार्टियों ने बुधवार को एक जॉइंट स्टेटमेंट जारी किया। इसमें कहा गया कि सभी 19 पार्टियां संसद के नए भवन के उद्घाटन में शामिल नहीं होंगी।
BJP नेता और केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा, ‘कांग्रेस की आदत है कि जहां कुछ नहीं होता वहां विवाद खड़ा कर देती है। राष्ट्रपति देश के प्रमुख हैं तो प्रधानमंत्री सरकार के प्रमुख होते हैं और सरकार की ओर से संसद का नेतृत्व करते हैं, जिनकी नीतियां कानून के रूप में लागू होती हैं। राष्ट्रपति किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं जबकि PM हैं।’

पुरी ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा, ’24 अक्टूबर 1975 को उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसद एनेक्सी का उद्घाटन किया। वहीं 15 अगस्त 1987 को PM राजीव गांधी ने संसद लाइब्रेरी का उद्घाटन किया। अगर कांग्रेस सरकार के प्रमुख उद्घाटन कर सकते हैं, तो हमारी सरकार के प्रमुख ऐसा क्यों नहीं कर सकते?’
मई 2014 में लोकसभा सचिवालय द्वारा प्रकाशित एक डॉक्यूमेंट ‘पार्लियामेंट हाउस एस्टेट’ के मुताबिक आजादी के बाद संसद की गतिविधियां बढ़ी हैं। इस दौरान पार्टियों और समूहों की मीटिंग्स के लिए और ज्यादा हॉल, संसदीय समितियों के अध्यक्षों और दोनों सदनों के सचिवालयों के लिए कमरे और ऑफिस की जरूरत थी। इन मांगों को पूरा करने के लिए संसद भवन एनेक्सी का निर्माण किया गया था।
इस बिल्डिंग को केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के चीफ आर्किटेक्ट जे एम बेंजामिन ने डिजाइन किया था। इसकी आधारशिला 3 अगस्त 1970 को उस वक्त के राष्ट्रपति वीवी गिरी ने रखी थी। संसद भवन एनेक्सी का उद्घाटन इंदिरा गांधी ने 24 अक्टूबर 1975 को किया था। डॉक्यूमेंट के मुताबिक, इस बिल्डिंग में 3 विंग- फ्रंट, रियर और सेंट्रल ब्लॉक हैं। देखा जाए तो यह संसद भवन का एक हिस्सा मात्र है।
डॉक्यूमेंट के मुताबिक, संसद लाइब्रेरी बिल्डिंग की नींव 15 अगस्त 1987 को उस वक्त के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने रखी थी। भूमि पूजन 17 अप्रैल 1994 को उस वक्त के लोकसभा स्पीकर शिवराज वी पाटिल ने किया था। लाइब्रेरी बिल्डिंग का उद्घाटन 7 मई 2002 को उस वक्त के राष्ट्रपति के आर नारायणन ने किया था।

लोकसभा सचिवालय के डॉक्यूमेंट के मुताबिक, एयरकंडीशन्ड लाइब्रेरी बिल्डिंग 60,460 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैली है। सांसदों के लिए इसमें रीडिंग रूम, ऑडिटोरियम, एक रिसर्च और रेफरेंस डिवीजन, एक कंप्यूटर सेंटर और एक ऑडियो विजुअल लाइब्रेरी है।
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भारतीय संविधान का आर्टिकल 60 और 111 का हवाला दिया है। संविधान का आर्टिकल 60 राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण से संबंधित है। मैं, अमुक… मैं ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं भारत के राष्ट्रपति के पद का निर्वहन ईमानदारी से करूंगा और अपनी क्षमता के अनुसार संविधान की रक्षा और बचाव करूंगा साथ ही मैं भारत के लोगों की सेवा और भलाई के लिए समर्पित रहूंगा।
वहीं संविधान का आर्टिकल 111 विधेयकों को संसद में पारित कराए जाने के बाद राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता के बारे में है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान के जानकार विराग गुप्ता कहते हैं कि कानून बनाने, कानून का पालन करने और प्रक्रियाओं के बारे में संविधान में विस्तार से प्रावधान है।
हालांकि भवन का शिलान्यास और इसका उद्घाटन करना प्रशासनिक और परंपराओं की बातें हैं। इनके लिए संविधान में कोई प्रावधान नहीं है।
दुर्भाग्य से पिछले कई सालों से हर सरकार में यह परंपरा चालू हो गई है कि जिसकी सरकार उसी की फोटो। यह हम सरकारी विज्ञापनों से देख सकते हैं।

जब केंद्र या राज्य का कोई विज्ञापन आता है तो उसमें मुखिया होने के नाते राष्ट्रपति या राज्यपाल की फोटो नहीं होती है, बल्कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की आती है। या फिर उस पार्टी से जुड़े नेताओं और मंत्रियों की आती है।

संसद का जो सत्र बुलाया जाता है उसके आह्वान के बारे में राष्ट्रपति को अधिकार हैं। संसद के संयुक्त संत्र को संबोधित करने का अधिकार राष्ट्रपति को है। संसद के भीतर कार्यवाही कैसे होगी इसे लेकर अनेकों प्रावधान हैं।
हालांकि संसद का निर्माण, शिलान्यास, उद्घाटन जैसी बातों पर संविधान की बजाय राजनीति का पलड़ा ज्यादा भारी दिख रहा है। इसमें संविधान के इंटरप्रिटेशन की बजाय शालीन परंपराओं के स्थापना की ज्यादा गुंजाइश है।