हिंदी सिनेमा में 40-50 के दशक की पॉपुलर डांसर और कैरेक्टर आर्टिस्ट मीनू मुमताज की आज 81वीं बर्थ एनिवर्सरी है। मीनू लीजेंड्री कॉमेडियन महमूद की छोटी बहन और लकी अली की बुआ हैं। महज 13 साल की उम्र में हिंदी सिनेमा में जगह बनाने वाली मीनू के पिता मुमताज अली भी बॉम्बे टॉकीज के मशहूर एक्टर और डांसर थे, लेकिन जब उनका करियर शराब की लत से बर्बाद हुआ तो बेटी मीनू मुमताज ने अपने 7 भाई-बहनों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई और नाटक मंडली से जुड़ गईं।
ये हिंदी सिनेमा के शुरुआती उन लोगों में शामिल हैं, जिनको बॉयकॉट किए जाने की मांग की गई थी। जब आर्थिक तंगी से जूझ रहीं मीनू ने अपने सगे भाई महमूद के साथ फिल्म में रोमांस किया तो लोग भड़ककर उन्हें फिल्मों से हटाने की मांग कर रहे थे। इसके बावजूद मीनू ने काम करना जारी रखा।
मीनू मुमताज का असली नाम मलिकुन्निसा अली था, जिनका जन्म 26 अप्रैल 1942 को मुंबई में हुआ। इनके 4 भाई और 4 बहने थे। लीजेंड्री कॉमेडियन महमूद, मीनू मुमताज के सगे भाई हैं। ये 40 के दशक के कैरेक्टर आर्टिस्ट और डांसर मुमताज अली की बेटी थीं। पिता मुमताज घर में कुछ लड़कियों को डांस सिखाया करते थे, जिसे देखकर मीनू भी बेहतरीन डांस करने लगीं।
जब मीनू की उम्र कम थी तब ही मुमताज को शराब की लत लग गई और उनका करियर बर्बाद हो गया। घर में गरीबी आई तो बड़ी बेटी मीनू को ही नाटकों में हिस्सा लेकर घर की जिम्मेदारी उठानी पड़ी, हालांकि वो सबसे बड़ी नहीं थीं। इनके बाद ही बड़े भाई महमूद भी फिल्मों में चाइल्ड आर्टिस्ट बनकर काम करने लगे।
मीनू मुमताज बेहद सुंदर और बोल्ड हुआ करती थीं, वहीं डांस में भी ये माहिर थीं। इनके नाम पर मुमताज अली नाइट नाम का एक शो चलता था। मीनू लगातार फिल्म स्टूडियो के चक्कर काटा करती थीं, ऐसे ही एक बार फिल्ममेकर नानूभाई वकील ने मीनू को देखते ही अपनी फिल्म सखी हकीम (1955) में काम दे दिया।
मीनू की मां उनके फिल्मों में जाने के सख्त खिलाफ थीं, लेकिन खुद एक्टर और डांसर रहे पिता मुमताज मान गए। उन्होंने कहा था, मछली का बच्चा मछली ही बनता है, झींगा नहीं। खैर मीनू फिल्मों में तो आईं, लेकिन मां की हिदायत के साथ कि यहां सिर्फ अपने काम से काम रखना। जब 1955 की फिल्म सखी हकीम से मीनू फिल्मों में आईं तो उनकी उम्र महज 13 साल थी।
मीनू मुमताज के बड़े भाई और कॉमेडियन महमूद ने मीना कुमारी की बहन मधु से शादी की थी। ऐसे में मीनू की भाभी की बहन मीना कुमारी ने उनकी काफी मदद की थी। जब मीनू मुमताज फिल्मों में आईं तो मीना कुमारी ने ही उनका नाम मलिकुन्निसा से मीनू मुमताज किया था।
1956 की फिल्म सीआईडी के गाने बूझ मेरा क्या नाम रे में मीनू की परफॉर्मेंस काफी पसंद की गई। उस समय मीनू महज 14 साल की थीं। आगे मीनू हावड़ा ब्रिज (1958), कागज के फूल (1959), चौदहवी का चांद (1960), साहिब बीवी और गुलाम (1962) में नजर आईं। यहूदी, ताज महल, घूंघट, घराना जैसी कई फिल्मों में भी मीनू ने अहम किरदार निभाए।
1958 में आई फिल्म हावड़ा ब्रिज के गाने ‘गोरा रंग चुनरिया काली’ में मीनू मुमताज को रोल मिला। 16 साल की मीनू को घर की देखरेख के लिए काम की जरुरत थी तो वो मान गईं, लेकिन इसी गाने में उनके सगे बड़े भाई महमूद उनके पार्टनर थे। इस गाने में दोनों एक-दूसरे के साथ रोमांस करते दिखे। फिल्म रिलीज हुई तो लोग हैरान रह गए। फिल्म रिलीज के बाद मीनू विवादों से घिर गईं। कई लोगों ने भाई-बहन को फिल्मों से हटाने की भी मांग की। लोग ये कहते हुए सड़कों पर उतर आए कि आखिर सगे भाई-बहन रोमांस कैसे कर सकते हैं, लेकिन समय के साथ ये बात भी दब गई।
एक दिन मीनू अपने परिवार के साथ मद्रास गई हुई थीं। वहां उनकी एक मुस्लिम परिवार से मुलाकात हुई। दोनों परिवारों के बीच बातों का ऐसा सिलसिला निकल पड़ा कि उन्होंने अपने बच्चों की शादी करवाने का फैसला किया। मीनू मुमताज की शादी फिल्म डायरेक्टर एस. अली अकबर से तय हो गई। शादी के बाद मीनू को फिल्मों में काम करना छोड़ना था, लेकिन उनके पास उस समय उनके पास फिल्म जहां आरा और पालकी जैसी कई फिल्में थीं। 1963 में मीनू ने अली अकबर से शादी कर ली और बाद में वादे के अनुसार ये फिल्में पूरी कीं।
फिल्म जहां आरा और पालकी की शूटिंग के समय मीनू मुमताज प्रेग्नेंट थीं। फिल्म पालकी बनने में पूरे 4 साल लगे जो 1967 में रिलीज हुई, जब तक मीनू फिल्में छोड़ चुकी थीं। फिल्म की शूटिंग करते हुए ही उनके दो बच्चे एजाज और महनाज हुए।
मीनू ने 8वें महीने की प्रेग्नेंसी के साथ भी फिल्म की शूटिंग की थी। मीनू को दिक्कत तो थी, लेकिन उन्होंने आखिरी फिल्म पूरी की। प्रेग्नेंसी के साथ शूटिंग करने के लिए डायरेक्टर ने ऐसे सीन डाल दिए, जिसमें उन्हें ऑनस्क्रीन प्रेग्नेंट लगना था।
मीनू मुमताज और अली अकबर के चार बच्चे हुए, एक बेटा एजाज और तीन बेटियां महनाज, शहनाज और गुलनाज। शादी के बाद मीनू ने इंडस्ट्री के बाद देश भी छोड़ दिया। शुरुआती कुछ समय वो कुवैत में रहीं और फिर टोरंटो जाकर बस गईं।
करीब 2003 के आस-पास एक रोज मीनू की आंखों के सामने अंधेरा छा गया और वो बेहोश हो गईं। मीनू ने लोगों को पहचानना बंद कर दिया और उनकी याददाश्त चली गई। अस्पताल ले जाया गया तो डॉक्टर्स ने परिवार को बताया कि उन्हें दिमाग में 4 इंच का ट्यूमर है और ये पिछले 15 सालों से बढ़ रहा है।
हालत बिगड़ने पर बॉम्बे के डॉक्टर झा ने उनका ऑपरेशन किया। घरवाले मीनू की हालत देखकर घबराए हुए थे। बच्चों ने तो ये सोचकर अलविदा कह दिया था कि मां अब ठीक नहीं हो सकेंगी। लेकिन जैसे ही उनका ऑपरेशन पूरा हुआ तो वो होश में आते ही सबको पहचानने लगीं। मीनू को लगा कि वो मौत के मुंह से बाहर आईं
ठीक होने के बाद मीनू परिवार के साथ टोरंटो में ही रहीं। कुछ सालों में उनके बच्चे भी बड़े हुए और सबने अपने-अपने घर बसा लिए। मीनू मुमताज के परिवार का कोई सदस्य फिल्मों में नहीं आया। मीनू साल में एक बार भारत जरूर आती थीं। बॉम्बे, पुणे, बेंगलुरू में घर ले रखे थे, जहां वो आकर रुका करती थीं। भारत आकर वो फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए लोगों से भी जरूर मिलती थीं। उनके बड़े भाई महमूद अली के बेटे लक्की अली जाने-माने सिंगर हैं। भारत दौरे के समय वो लकी के पास बैंगलोर जाकर भी रहती थीं।